Thursday, September 23, 2021

अमन लायब्रेरी

    जीते जी तो नहीं, मरने के बाद मेरे मित्र अमन का सपना पूरा हो गया। अभी-अभी मैं उसके घर से लौटा हूं। अमन के उम्रदराज पिता ने बाकायदा सभी मित्रों को निमंत्रण-पत्रिका भी भिजवायी थी, जिसमें अमन के सपने का उल्लेख था। अमन मेरा सबसे प्रिय दोस्त था। हमराज था। सुख-दु:ख का पक्का साथी था। भले ही उम्र में वह मुझसे काफी छोटा था। हम दोनों काफी समय एक साथ बिताते थे। एक-दूसरे से कुछ भी नहीं छुपाते थे। पिछले साल बहुतों की तरह कोरोना ने उसे भी अंतिम यात्रा पर भेज दिया। अमन ने अपनी मेहनत के दम पर चंद वर्षों में करोड़ों रुपये कमाये थे। प्रापर्टी और थोक कपड़े के व्यापार में उसका खासा नाम था। सफल व्यापारी होने के बावजूद भी वह बेहद भावुक इंसान था। धन से ज्यादा उसकी नज़र में रिश्तों का मान था। दोस्त भी उसके लिए रिश्तेदार से कम न थे। उसने अपने ही चचेरे भाइयों से विषैला धोखा खाया था। अपनी ही जायदाद के लिए महीनों कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटे थे। जीत आखिर सच की ही हुई थी...।
    अपने दस हजार वर्गफुट के पुराने घर को ढहाकर आलीशान बंगला बनाना प्रारंभ कर दिया था उसने। उसकी एक खासियत और भी थी, गीत-गजलों और कविताओं का बेहद दिवाना था। पुरानी फिल्में देखने का भी उसे जबरदस्त शौक था। हिन्दी के विख्यात गजलकार दुष्यंत कुमार के गजल संग्रह ‘साये में धूप’ तथा मुनव्वर राणा की कालजयी कृति ‘मां’ की सैकड़ों प्रतियां दोस्तों तथा रिश्तेदारों को उपहार स्वरूप अर्पित करने वाला अमन चालीस साल की आयु में अस्सी साल के विविध खट्टे-मीठे अनुभवों को अपने अंदर समेट चुका था। यह सब हुआ था उन किताबों और पत्रिकाओं की बदौलत, जिन्हें पढ़े बिना उसे चैन नहीं आता था। लोग त्योहारों के अवसर पर नये-नये कपड़े खरीदते हैं, वह नये-पुराने लेखकों की किताबे खरीद कर आनंदित होता था। बड़े से बड़े पढ़ाकू साहित्यकार के यहां आने वाली साहित्यिक पत्रिकाओं से ज्यादा पत्रिकाएं डाक से अमन के घर के पते पर आती थीं। वह इनका नियमित पाठक और सहृदयी शुल्कदाता था। कला मंच, व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़े मित्र उसकी शेरो-शायरी तथा साहित्य की गहरी समझ से विस्मित रहते थे। अक्सर वे सोचा करते थे कि इतना व्यस्त रहने वाला कारोबारी गीत-गज़लों तथा उपन्यासों को पढ़ने के लिए समय कैसे निकालता होगा। वह वाकई किसी पहेली से कम नहीं था। अमन सिर्फ नाम का ही अमन नहीं था। वह जब धर्म-कर्म के नाम पर लोगों को एक दूसरे पर टूटते देखता तो बिखर कर रह जाता था। शहर के अनाथालयों में गुप्तदान देने और वृद्धाश्रमों में समय-समय पर जाकर सहायता का हाथ बढ़ाने तथा असहाय स्त्री-पुरुषों का आशीर्वाद लेना वह कभी नहीं भूलता था। नये बंगले में उसने अपनी खास प्रायवेट लायब्रेरी बनवानी प्रारंभ कर दी थी। वह अक्सर मुझसे कहता कि अपनी घरेलू लायब्रेरी का उद्घाटन आपसे करवाऊंगा और सभी मित्र छुट्टी के दिनों में गज़लों कविताओं, शेरो-शायरी के रस सागर में डूबने का आनंद लेंगे। कोविड-19 का आतंक जब सभी को डराने लगा था और मौतों की झड़ी लगने लगी थी, तब वह सभी दोस्तों को सतर्क और सुरक्षित रहने के सलाह देता नहीं थकता था, लेकिन किसे पता था कि दूसरों की चिंता-फिक्र करने वाला अमन खुद कोरोना के नुकीले पंजों में ऐसा फंसेगा कि हफ्तों अस्पताल में भर्ती रहने के बाद भी बच नहीं पायेगा। रिश्तेदार, दोस्त, सभी चाहने वाले रोते-बिलखते रह जायेंगे।
    उसकी मौत की खबर मेरे लिए अत्यंत असहनीय थी। कई दिनों तक मैं गम में डूबा रहा था। अमन की मोती-सी चमकती आंखें और मुस्कुराता चेहरा आज भी तब मेरे सामने था, जब उसके पिता के साथ खड़ा मैं आलीशान बंगले के विस्तृत बरामदे से जुड़े कमरे में बनी लायब्रेरी के उद्घाटन का फीता काट रहा था। मेरी आंखें दो चेहरों पर जमी थीं। पैंसठ वर्षीय अमन के पिता, जिन्होंने अपने बेटे के सपने को साकार करने के लिए किसी उत्सव की तरह पूरे घर को सजाया था। उनकी आंखों में ठहरे आंसुओं को देखकर मेरी आंखे बार-बार नम हो रही थीं। नये बने बंगले का विशाल बरामदा पीपल के सूखे पत्तों से पटा था, जिन्हें अब कभी भी हरा नहीं होना था। फिर भी बेटे के सपने को एक पिता ने साकार कर दिखाया था। अमन के पिताश्री ने हम सभी का परिचय चाय की ट्रे लिए घूमती उस युवती से करवाया, जिससे उनका दुलारा शादी करने वाला था, लेकिन किस्मत दगा दे गयी। पैंतीस-छत्तीस साल की डॉक्टर रागिनी के बारे में हम सबने खबर पड़ी थी... कि कैसे उसने मौत के कगार पर झूलते एक गंभीर कोरोना मरीज को अपने मुंह से कृत्रिम सांस देकर बचाया था। बाद में वह खुद भी कोरोना की शिकार हो कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ी रही थी। लायब्रेरी का उद्घाटन सम्पन्न होने के बाद जब सभी मेहमान चले गये थे, तब बुजुर्ग पिता ने मुझे यह भी बताया था कि डॉ. रागिनी उनकी बेटी से भी बढ़कर है। जिस दिन अमन ने अंतिम सांस ली, तब भी वह उसके साथ थी। उन्होंने कई बार उसे अपने घर लौट जाने को कहा, लेकिन वह नहीं मानी। बस यही कहती है, आपको अकेला नहीं छोड़ सकती। इस बेटी ने तो मेरे अंदर नई आशा और ऊर्जा भर दी है। अब तो मैं अमन के फैलाये बड़े कारोबार को धीरे-धीरे समेटने में लगा हूं और मेरी दिली तमन्ना है कि रागिनी की शादी किसी अच्छे नौजवान से हो जाए, जो इसे हर तरह से खुश रख सके। रागिनी के लिए कोई सर्वगुण संपन्न युवक देखने के उनके अनुरोध के जवाब में मैंने कहा था कि रागिनी तो काफी समझदार है। वह अपना जीवनसाथी खुद तलाश कर लेगी। तो उनका जवाब था कि वह तो अब शादी ही नहीं करना चाहती, लेकिन मुझे हर हाल में पिता होने का फर्ज निभाना है। क्या पता कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए। मैंने तो अपनी और बेटे की सारी जायदाद इसके नाम कर दी है। मेरे यह पूछने पर कि दोनों ने समय रहते शादी क्यों नहीं की तो उनका कहना था कि दोनों पिछले दस वर्ष से एक-दूसरे के प्यार में गिरफ्तार तो थे, लेकिन अमन को अपने व्यापार में तो रागिनी को अपने अस्पताल से फुर्सत ही नहीं थी। मैं चिन्तित रहता था। अमन की मां भी कब की स्वर्गवासी हो चुकी है। आखिरकार मैंने ही पिछले साल उनके परिणय सूत्र में बंधने की तारीख पक्की कर दी थी, लेकिन कोविड-19 ने अपनी मनमानी और अनहोनी कर दी।
    ‘‘अमन ही जब इस दुनिया में नहीं रहा तो इस लायब्रेरी के अब क्या मायने हैं?’’ मेरे इस सवाल का जवाब देने के लिए उन्हें ज्यादा सोचना नहीं पड़ा था।
    ‘‘यह लायब्रेरी अब उसके सभी दोस्तों और सभी पुस्तक प्रेमियों के लिए हमेशा खुली रहेगी। किताबें पड़ते युवा चेहरों में मैं अपने अमन को देखूंगा। मैंने लायब्रेरी में आने-जाने के लिए अलग रास्ता भी बना दिया है, जिसकी जब इच्छा हो यहां आ सकता है...।’’ मैं जब से उनसे मिलकर लौटा हूं तब से डॉ. रागिनी के बारे में सोच रहा हूं। ताज्जुब... आज भी ऐसे प्रेमी और प्रेमिकाएं जिन्दा हैं, जिन्हें कब का किताबों में कैद किया जा चुका है। आते वक्त मैं खुद से प्रश्न कर रहा था। अमन ने इतनी बड़ी बात मुझसे क्यों छुपाये रखी? वह तो हमेशा डॉ. रागिनी को अपनी अच्छी दोस्त भर बताता था...। अब कुछ और सवाल भी मुझे भटकाये हैं। इस अद्भुत रिश्ते पर मैं लम्बी कहानी लिखना चाहता हूं। पिछले चार घण्टों में बीस-पच्चीस पन्ने लिख-लिख कर फाड़ चुका हूं। कहानी की शुरूआत ही नहीं हो पा रही है। पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ? जब भी लिखने बैठा दिमाग से तेज कलम दौड़ती रही। आज कलम रेंग ही नहीं रही!

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