Thursday, March 3, 2022

हत्यारे

    कोरोना से अभी पूरी तरह से दुनिया को मुक्ति मिली भी नहीं कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का आगाज हो गया। दो प्रतिद्वंद्वी मुल्कों की आपसी लड़ाई ने पूरे विश्व को भयभीत कर तीसरे विश्वयुद्ध के खतरे की शंका से झकझोर डाला। तोपों, बम-बारूदों वाली अंधी लड़ाई ने फिर से उन युद्धों की याद दिला दी, जिनमें लाखों लोगों की जानें जा चुकी हैं। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे खूनी संघर्ष में एक से बढ़कर एक डरावने मंज़र दिल दहला रहे हैं। देखते ही देखते इंसान को राख में बदलने वाले बम गिराये जा रहे हैं। देश और दुनिया के उन अभिभावकों की नींदें उड़ चुकी हैं, जिनके बच्चे यूक्रेन में फंसे हैं। यह वो बच्चे हैं, जो खुशी-खुशी अपने सपनों को साकार करने के लिए यूक्रेन गये थे। यूक्रेन के जापोरीज्या चिकित्सा महाविद्यालय में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे आशीष ने वीडियो कॉल कर इंदौर निवासी अपने माता-पिता से थरथराते स्वर में बताया कि जहां वह रह रहा है वहां से पांच किलोमीटर दूर हो रहे धमाकों की आवाज उसे डरा रही है। हर तरफ जबर्दस्त अफरा-तफरी का माहौल है। दुकानों में राशन और एटीएम में नगदी पूरी तरह से खत्म हो गई है। दुकानदारों ने कार्ड से भुगतान लेने से मनाही कर दी है। उत्तरप्रदेश के बिजनौर निवासी सना उर्ररहमान जो कि इवानो फ्रेंकविस्क इंटरनेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस में प्रथम वर्ष का छात्र है, उसकी भी आपबीती आशीष से जुदा नहीं। अपने वर्तमान और भविष्य को लेकर आशंकित सना का कहना था कि सुपर मार्केट में लोगों ने दाल, आटा, फल, ब्रेड, मैगी, जूस सबकुछ खरीद कर अपने-अपने घरों में जमा कर लिया है। ऐसे में हमें मैगी, फल, ब्रेड या जूस से गुजारा करना पड़ रहा है। इनका भी जल्द ही खत्म हो जाने का अंदेशा है। इसके बाद हमारा क्या होगा, हमें नहीं पता। कर्नाटक के 21 वर्षीय नवीन शेखरप्पा की तो जान ही छिन गयी। नवीन खार्किव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में फोर्थ ईयर का छात्र था। वह खाना खाने का सामान लेने के लिए स्टोर के पास खड़ा था। तभी किसी बंदूक की गोली ने उसके प्राण ले लिए। ऐसे हजारों आशीषों और सना उर्ररहमानों की दिल दहला देनेवाली हकीकतों ने उनके परिजनों की भूख और प्यास छीन ली। जब मैंने जाना कि यूक्रेन में भारत के करीब 14,000 मेडिकल छात्र हैं तो मैं स्तब्ध रह गया। अपने देश में तो मेडिकल कॉलेजों की भरमार है, तो कौन-सी वजह उन्हें विदेश तक खींच कर ले गयी? वही राजनेताओं, मंत्रियों, धन्नासेठों की धन की भूख और लूटमार। जिसने भारत देश को गर्त में ले जाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। अपने यहां निजी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री लेने के लिए मां-बाप को कम से कम एक करोड़ रुपये की रिश्वती कुर्बानी देनी पड़ती है। इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था आम परिवारजन तो सपने में भी नहीं कर सकते। इसलिए भारत में गरीब लड़के, लड़कियां डॉक्टर और इंजीनियर बनने के सपने देखते रह जाते हैं। यूक्रेन में डॉक्टर बनने के लिए मात्र बीस से पच्चीस लाख का ही खर्च आता है। यूक्रेन से मिली डॉक्टरी की डिग्री की पूरी दुनिया में मान्यता है। इसलिए भारत के साथ-साथ कई अन्य देशों के छात्र भी यहां अपने सपने पूरे करने के लिए आते हैं। मेडिकल छात्र की मौत के लिए क्यों न उन धनलोलुपों को कसूरवार माना जाए, जिनकी वजह से भारतमाता के लाल डॉक्टर बनने के लिए विदेश जाने को विवश होते हैं? रूस के साथ-साथ यह धनपशु भी भारतीय प्रतिभा के हत्यारे ही हैं। अब वक्त आ गया है, जब शोषक हत्यारों की शिनाख्त कर कड़ी से कड़ी सज़ा देनी चाहिए।
    जब सभी को किसी भी तरह से अपनी जान बचाने और सुरक्षित अपने देश पहुंच की पड़ी थी तब हरियाणा की एक सत्रह वर्षीय लड़की ने तो मानवता का जीवंत ग्रंथ ही लिख डाला। हिंदुस्तान के हजारों छात्र-छात्राओं की तरह दादरी जिले की रहने वाली नेहा सांगवान भी यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। युद्ध के शुरू होते ही उसके परिजनों ने उसकी वापसी की व्यवस्था कर दी थी, लेकिन नेहा ने यूक्रेन छोड़ने से इसलिए स्पष्ट इंकार कर दिया, क्योंकि उसका मकान मालिक युद्ध लड़ने के लिए जा चुका है। अब उसकी पत्नी और तीन बच्चे ही घर में अकेले हैं। नेहा को अपनी तकलीफ से कहीं ज्यादा उनकी तकलीफ का तीव्र अहसास हुआ और उसने उन्हें इस मुश्किल की घड़ी में अकेले छोड़ना कतई मुनासिब न समझते हुए तब तक आग में जलते यूक्रेन में रहने का पक्का इरादा कर लिया जब तक मकान मालिक वापस नहीं लौट आता। नेहा के पिता भी एक वीर सैनिक थे। वह भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चल रही है। उसका मानना है कि यह सारी दुनिया ही एक परिवार है। संकट काल में अपने परिवार के काम आना ही इंसान होने की निशानी है।
    सच तो यह है कि जब अपनी जान खतरे में हो तो इंसान को अपनी जान बचाने के सिवाय और कुछ नहीं सूझता। आज तो सोशल मीडिया के दौर में जब आदमी सामने मर रहा होता है और लोग तमाशबीन बने रहते हैं। अपनी सारी अक्लमंदी उसकी तस्वीरें खींचने और वीडियो बनाने में लुटा देते हैं। ऐसे में नेहा को सलाम करना ही चाहिए, जिसके लिए इंसानियत, कर्तव्य, नैतिकता और मानवीयता महज शब्द नहीं, जीवन जीने के मूलमंत्र हैं। दरअसल, भारत ही ऐसा देश है, जो प्रेम और इंसानियत का दामन कभी भी नहीं छोड़ता। सभी को पता है कि युद्ध के नतीजे कभी भी अच्छे नहीं होते। फिर भी रूस के हुक्मरान पागल कुत्ते की तरह यूक्रेन को खंडहर बनाने पर तुले हैं। रूस के राष्ट्रपति ब्लदिमीर पुतिन की यह धमकी कि कोई बीच में आया तो ऐसा हश्र करूंगा, जो पहले कभी नहीं देखा होगा, उसके घोर जिद्दी और अहंकारी होने का प्रमाण है। हालांकि वह अच्छी तरह से जानता है कि यह युद्ध उसके देश की भी कमर तोड़कर रख देने वाला है। फिर भी बारूद के ढेर पर बैठकर खुद को महाबली दर्शाने की सनक के नशे में वह गहरे तक डूबा है। उसके देश के ही कई लोग उसकी इस जिद का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर चुके हैं। युद्ध किस तरह से सर्वनाशी होता है इसे शासक नहीं सैनिक ही अच्छी तरह से जानते हैं। डॉ. वी.पी. सिंह, जो कि एक बहादुर सैनिक (कर्नल) होने के साथ-साथ सजग कवि भी हैं, लिखते हैं कि यह युद्ध कोई अंतिम युद्ध नहीं। हम विध्वंस से कुछ भी नहीं सीखते। इसलिए युद्ध लड़ने को अभिशप्त हैं...
‘‘फिर कहीं शासक चढ़े हैं अहम रथ पर
फिर कहीं सैनिक बढ़ेंगे मरण पथ पर
फिर चलेंगी चीखती पागल हवाएं
सिर धुनेंगी फिर कहीं झुलसी दिशाएं
फिर कहीं संबंध का व्यापार होगा
फिर धरा का अश्रु से सिंगार होगा
फिर जवानी लड़ेगी, बलिदान देगी
कोई झंडा कहीं रौंदा जाएगा
कोई झंडा गगन में लहराएगा।
खेल यह वर्चस्व का चलता रहेगा
विश्व भीषण आग में जलता रहेगा
निरर्थक बहता रहे, वो रक्त हैं हम।
युद्ध लड़ने के लिए अभिशप्त हैं हम!!’’

    कई तस्वीरें नि:शब्द करते हुए देश प्रेम के असली मायने बता रही हैं। सैनिक हाथ में बंदूक थामे गली से गुज़र रहा है। एक ढाई-तीन साल का मासूम दीवार से लगे खंभे की ओट में खुद को बचाने के लिए दुबका खड़ा है। इसी तस्वीर के साथ विख्यात गज़लकार राजेश रेड्डी की ये पंक्तियां हैं,
‘मिरे दिल के किसी कोने में
इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देखकर दुनिया
बड़ा होने से डरता है...।’

    सोशल मीडिया पर एक बच्ची का वीडियो वायरल हो रहा है। गुस्से में उबलती बच्ची विदेशी सैनिक से चीख-चीखकर कह रही है, यह मेरा देश है। तुम्हारा मेरे देश में क्या काम...! फौरन भागो यहां से नहीं तो मैं तुम्हारा मुंह नोच लूंगी। देश और दुनिया का हर सजग लेखक, कवि बहुत दूर की सोचता है। उसे आज के साथ आने वाले कल की चिंता भी सतत घेरे रहती है। कालजयी कवि, गीतकार गोपालदास नीरज ने तीसरे युद्ध की आशंका को देखते हुए वर्षों पूर्व एक लंबी कविता लिख दी थी। उसी कविता की कुछ पंक्तियां...
‘‘मैं सोच रहा हूँ अगर तीसरा युद्ध हुआ तो,
इस नई सुबह की नई फसल का क्या होगा।
मैं सोच रहा हूं गर जमीं पर उगा खून,
इस रंगमहल की चहल-पहल का क्या होगा।
किलकारी भरते हुये दूध से ये बच्चे,
निर्भीक उछलती हुई जवानों की ये टोली।
रति को शरमाती हुई चांद सी ये शकलें,
संगीत चुराती हुई पायलों की ये बोली।
क्या इन सब पर खामोशी मौत बिछा देगी,
क्या धुंध धुआं बनकर सब जग रह जायेगा।
क्या कूकेगी कोयलिया कभी न बगिया में,
क्या पपीहा फिर न पिया को पास बुलायेगा।
मैं सोच रहा हूं क्या उनकी कलम न जागेगी,
जब झोपड़ियों में आग लगायी जायेगी।
क्या करवटें न बदलेंगी उनकी कब्रें जब,
उनकी बेटी भूखी पथ पर सो जायेगी।’’

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