Thursday, March 17, 2022

आजमाइश

    इतिहास गवाह है कि आम आदमी ही इतिहास रचा करता है। उदाहरण हमारे सामने हैं। फिर भी हम पूरे मन से गौर करने को तैयार नहीं। वर्षों से यही ढोल बजता चला आ रहा है कि अपने देश में चुनावी जंग जीतने के लिए धन का होना जरूरी है। ईमानदारी यहां काम नहीं आती। गरीब आदमी सिर्फ दूसरों के लिए तालियां पीटता रह जाता है। सत्ता तो जोड़-जुगाड़ुओं के हिस्से में आती है। हममें से कइयों ने यही मान लिया है कि इस देश का लोकतंत्र राम भरोसे ही चलते रहने वाला है, लेकिन मैं यह हरगिज नहीं मानता। बिना कोशिश के हार मान लेने वालों को नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल की संघर्षों भरी यात्रा की किताब के पन्ने-दर-पन्ने को कम-अज़-कम एक बार जरूर पढ़ लेना चाहिए। दोनों ने देश और दुनिया को बार-बार चौंकाया है। केजरीवाल तो शुरू-शुरू में खूब मजाक के पात्र बने। मजाक तो उनका आज भी उड़ाने वाले उड़ाते हैं, भले ही उन्होंने दिल्ली के बाद पंजाब की सत्ता पर काबिज होने का इतिहास रच डाला है। दिल्ली नगर-राज्य की तर्ज पर पंजाब में भी केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने ऐसे-ऐसे प्रत्याशी चुनाव में उतारे जो न तो बाहुबलि थे और न अपार धनपति फिर भी उन्होंने धुरंधरों को हराकर अभूतपूर्व कमाल कर दिखाया। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जिन्हें, अपनी कांग्रेस पार्टी और खुद पर आसमान की ऊंचाई से भी ज्यादा भरोसा और अहंकारी अभिमान था, उन्हें आम आदमी पार्टी के जिस 35 वर्षीय लाभ सिंह उगोसे ने औंधे मुंह गिराया वह मोबाइल फोन दुरुस्त करने की छोटी-सी दूकान का मालिक था। उसकी मां सरकारी स्कूल में सफाई कर्मी तो पिता अदने से ड्राइवर, जिनकी कमायी और संपत्ति का कोई भी बड़ी सहजता से अंदाज लगा सकता है। लाभ सिंह के पास भी कुल 75 हजार रुपये थे, जिनकी चुनावी लड़ाई में कोई पूछ-परख और अहमियत नहीं होती। धनवान प्रत्याशी तो चंद मिनटों में लाखों रुपये फूंक देते हैं। लाभ सिंह उगोसे की मां ने बेटे के विधायक बनने के बाद भी स्कूल में जाना और झाड़ू लगाना नहीं छोड़ा है। उनका कहना है कि वे जीवनपर्यंत यही काम करती रहेंगी। यही उनकी ड्यूटी है। फर्ज है। जीवन का अहम हिस्सा है। विधायक के मेहनतकश पिता दर्शन सिंह बोले कि हम पहले की तरह अपना जीवन जीएंगे। हमारी तो बस यही इच्छा है कि बेटा जनकल्याण में किसी भी तरह का भेदभाव न करते हुए अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभा।
    मेरा तो यही मानना है कि परिवार ही वो पाठशाला है, जहां इंसान अच्छे और बुरे की शिक्षा पाता है। अपने देश भारत में अधिकांश माता-पिता और रिश्तेदार यही मानते हैं कि सरकारी नौकरी और विधायकी, सांसदी और मंत्री की कुर्सी अंधाधुंध कमायी का जरिया है, जिसने यहां धन नहीं बनाया उससे बड़ा निकम्मा और बेवकूफ तो और कोई हो ही नहीं सकता। पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहकर मालामाल हुए प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे शिरोमणि दल के नेता सुखवीर सिंह बादल को भी आम आदमी पार्टी के सहज-सरल चेहरों ने धूल चटवायी, तो वहीं राजाओं-महाराजाओं की तरह मौज करने वाले पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को 19 हजार मतों से हराने वाला आप का चेहरा भी धन और रूतबे के मामले में जीरो है, लेकिन मतदाताओं ने उसे जीत का सेहरा पहनाकर बता दिया कि अब हमें अहंकारी राजनेताओं की कतई जरूरत नहीं है। पंजाब के बड़े नेताओं में शामिल और बात-बात पर छक्कों की तरह ताली ठोकने वाले नवजोत सिंह सिद्धू और काले धनवाले धनवान विक्रम सिंह मजीठिया की राजनीति की पूरी की पूरी दूकान झाड़ू ने साफ कर दी। ध्यान रहे कि कैप्टन अमरिंदर की दिली चाहत थी कि सिद्धू किसी भी हालत में जीतने न पाए वहीं सिद्धू भी यही चाहते थे, लेकिन पंजाब के सजग मतदाताओं ने दोनों को खाली हाथ कर यह संदेश दे दिया है कि आज की राजनीति में बिन पेंदी के लोटे तो कचरे में ही फेंकने के काबिल हैं। जोकरगिरी से जबरन नेता बने पंजाब कांग्रेस के मुखिया नवजोत और अकाली दल के कद्दावर चेहरे मजीठिया को होशियारपुर में जन्मी जीवनजोत कौर ने शर्मनाक तरीके से धूल और कचरे के हवाले किया है। इन दोनों को तो अब डूबकर मर जाना चाहिए, लेकिन बेशर्मों की चमड़ी बड़ी मोटी है। ‘सवा लाख से इक लड़ाऊं’ की लोकप्रिय छवि वाली जीवनजोत कौर का यह पहला चुनाव था। उनके नाना स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। जीवनजोत कौर ने कुछ समय पहले ही एलएलबी की है। वे प्रारंभ से गरीबों और असहायों के लिए कुछ खास कर गुजरना चाहती थीं। अरविंद केजरीवाल उन्हें भले इंसान लगे। 2015 में ही वे आम आदमी पार्टी से जुड़ गई थीं। दो दिग्गजों को मात देने के बाद भी जीवनजोत को कोई गरूर नहीं। हां, उनमें आत्मविश्वास लबालब है। अब तो बस पंजाब के जन-जन के काम आना है। अरविंद केजरीवाल ने पंजाब की जनता को नशा खत्म करने, अधिक से अधिक सरकारी अस्पताल खोल/मुफ्त इलाज की सुविधा दिलवाने, बेहतर रोजगार और स्कूल-कॉलेज खोलने का जो वादा किया है, उसे पूरा करने का अब समय आ गया है।
    पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को नशे के गर्त में डूबे अपने पंजाब प्रदेश को ‘रंगला पंजाब’ बनाने में ज्यादा देरी नहीं करनी चाहिए। भांगड़ा, गिद्धा और कुश्ती के शौकीन पंजाब के लोगों ने उनकी बुराइयां गिनाने वालों की पूरी तरह से अनदेखी कर अपार भरोसे के साथ उन्हें सत्ता के सिंहासन पर विराजमान किया । यह अभूतपूर्व जनादेश उन्हें वक्त गुजारने के लिए नहीं मिला। सरकारी कार्यालयों में सिर्फ शहीद भगतसिंह और संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की तस्वीरें भर लगा देने से कुछ नहीं होगा। तस्वीरें और प्रतिमाएं तो शांति के दूत महात्मा गांधी की भी इस देश में जहां-तहां लगायी गईं। उनके नाम का जाप करते हुए वर्षों तक वोट भी हथियाये गये, लेकिन तब के सत्ताधीशों के शासन में देशवासियों को अशांति, अराजकता, भ्रष्टाचार, असुविधाएं और भयावह तकलीफें ही मिलीं। भगवंत को शहीदे आजम भगतसिंह और बाबासाहब के दिखाये और सुझाये मार्ग पर चलकर उनके तथा जनता के मान पर किसी भी तरह की आंच नहीं आने देनी है। यही उनकी असली आजमाइश का वक्त है। पंजाब में व्याप्त कितने-कितने अंधेरों का दूर करने की उनकी जिम्मेदारी है। इक्कीसवीं सदी का भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह खुद को पूरी तरह समर्पित कर देने वाले सत्ताधीश चाहता है, जिनकी नीयत में कोई खोट न हो। सफलता और असफलता अपनी जगह हैं, लेकिन आपकी नीयत में हेरफेर नहीं आना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही सभी चुनावी वादे पूरे न कर दिखाये हों, लेकिन वे सतत कर्मवीर की भूमिका में नजर आते हैं। उनके विरोधी भी कहते हैं कि हमने ऐसा परिश्रमी पीएम पहले कभी नहीं देखा। दिन-रात बस काम ही काम। विश्राम नाम का शब्द तो उनकी सोच में ही शामिल नहीं है। इसलिए अधिकांश भारतीय उन्हें संत-महात्मा का दर्जा देने से भी नहीं सकुचाते। उन्हें पक्का यकीन है इस योद्धा के होते हुए उन्हें अंदर और बाहर का कोई भी गद्दार और शत्रु छू नहीं सकता।

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