Thursday, March 31, 2022

इनसे सावधान रहना है

    कुछ लोग देते हैं, बात-बात पर तनाव। गुस्सा ही गुस्सा। बेवजह की उदासी। अनहोनी का डर। उनका काम ही है अपना काम छोड़कर दूसरों के फटे में टांग अड़ाना। बिना मांगे सलाह देना। जिसे जानते तक नहीं, उसकी तरक्की पर जल-भुन जाते हैं। हरदम नकारात्मक विचारों की घेराबंदी में सांस लेने वालों की तादाद इन दिनों कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है। ऐसा भी लगता है कि यह लोग सोशल मीडिया में उलझे रहने और बकबक करने के सिवाय और कोई काम ही नहीं करते। दूसरों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए किसी भी हद तक गिरने वालों में आम लोग भी शामिल हैं और खास भी। जहां-तहां तू-तड़ाक और गंदी अश्लील भाषा की बरसात की जा रही है और उसमें ऊपर से नीचे तक भीगने के बाद भी कहीं कोई खुलकर ऐतराज नहीं है। सोशल मीडिया पर दिन-रात वायरल होते असंख्य वीडियो गुंडागर्दी और डॉनगीरी का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। इन गुंडों और डॉनों के नामों से भी अधिकांश लोग परिचित हैं। उन्हीं कुख्यात नामों में एक नाम है, हिंदुस्तानी भाऊ का। इसका असली नाम कुछ और है। इस भाऊ की भड़काऊ, विषैली जबान जब भी खुलती है तो मां, बहन बेटी की गंदी-गंदी गालियां ही उगलती है। इसके दिमाग में शायद ही कभी अच्छे विचार आते होंगे। सोशल मीडिया का यह दादा कभी किसी दैनिक अखबार में क्राइम रिपोर्टर था। वह खुद को सच्चा देश सेवक बताता है और उसके तमाम आभासी मित्रों को भी उसके इस दावे में सच नज़र आता है। उसके 30 लाख फालोअर्स हैं। जो उसके अश्लील और अभद्र तेवरों को पसंद करते हैं। वह कभी ब्राह्मण होने का शोर मचाता है, तो कभी कुरान की आयतें बोलकर अपने चाहने वालों को प्रभावित करने की कवायद में लग जाता है।
    खुद को सोशल मीडिया का अकेला अलबेला नायक समझने वाला हिंदुस्तानी भाऊ यह मान चुका था कि वह कुछ भी कहता... बकता रहे शासन-प्रशासन उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। वह तो अंधा और बहरा है। उसका यह हसीन भ्रम अंतत: टूट ही गया, जब कुछ दिन पहले विद्यार्थियों को भड़काने और आंदोलित करने के आरोप में महाराष्ट्र पुलिस ने उसे डंडों की पिटायी के साथ जेल की हवा खिलवा दी। हुआ यह कि राज्य की शिक्षा मंत्री ने कोरोना के थमने पर दसवीं और बारहवीं की परीक्षा ऑनलाइन की जगह ऑफलाइन करने का ऐलान कर दिया था। इस देशप्रेमी ने इंस्टाग्राम में फौरन एक वीडियो अपलोड कर दिया, जिसमें सरकारी निर्णय के विरोध में छात्रों को सड़कों पर उतरकर तीव्र प्रदर्शन करने के लिए उकसाया, जिससे मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद, उस्मानाबाद, नांदेड़, जलगांव में हजारों छात्र सड़कों पर उतर गए। यहां तक कि शिक्षा मंत्री के घर का घेराव कर जोरदार नारेबाजी की गयी। शासन और प्रशासन ने फुर्ती दिखायी और सड़कों पर तांडव मचवाने वाले भाऊ को गिरफ्तार कर ऐसी मेहमान नवाजी की, जिससे उसकी सारी हेकड़ी जाती रही। वह हाथ-पैर जोड़ते हुए कहता रहा कि सड़क पर उतरने वाले आंदोलनकारियों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। मैंने तो बस यूं ही कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिये थे।
    सोशल मीडिया पर धमाल कर लोकप्रिय बनने की सनक केवल पुरुषों पर ही सवार नहीं है। कई महिलाएं, लड़कियां भी खुद को लेडी डॉन, रानी, महारानी और भी पता नहीं क्या-क्या समझते हुए सोशल मीडिया पर बेहयायी का नंगा नाच करती देखी जा रही हैं। सोशल मीडिया के भाऊ को अपना प्रेरणास्त्रोत मानने वाली दो लड़कियों की भी पुलिस ने हेकड़ी उतारकर रख दी। यह सोलह-सत्रह साल की लड़कियां कहने को तो दसवीं-बारहवीं में पढ़ती हैं, लेकिन गंदी-गंदी गालियों वाले धमकी भरे वीडियो बना कर अपलोड करने में अपना सारा समय बिताती थीं। छंटे हुए सड़क छाप गुंडे-बदमाशों की तरह किसी अनजान लड़की को रातों-रात उठवा कर उसका बुरा हाल कर देने की धौंस भी जमाती रहती थीं। मध्यमवर्गीय परिवार की इन छात्राओं के भड़काऊ और अश्लील वीडियो देखकर किसी को यकीन ही नहीं होता था कि किसी स्कूल में पढ़ रही छात्राओं की यह निर्लज्ज कारस्तानी है। किसी खूंखार डॉन को अपना जीवनसाथी बनाने का सपना देखने और जेल को पुण्य भूमि बताने वाली इन लड़कियों को जब पुलिस ने दबोचा तो वे मासूम बच्चों की तरह रोने-गाने लगीं कि हमें तो पता ही नहीं था कि हम कोई अपराध कर रही हैं! हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई है, हमें माफ कर दिया जाए।
    इस तरह के छिछोरे गालीबाजों में और भी कई चेहरे शामिल हैं, जिन्हें लगता है कि इस देश को वही बचाये रख सकते हैं। दूसरे तो बस इसे डुबोने में लगे हैं। पिछले दिनों ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म की सफलता के बाद हम सबने कितने तमाशे और तमाशबीन देखे। एक भले इंसान ने दबा-छिपा कर रखे गये दस्तावेजों और खून से रंगी सच्चाइयों पर एक फिल्म क्या बना दी कि हंगामा खड़ा कर दिया गया! कश्मीर और गुजरात पर पहले भी फिल्में बनी थीं। किताबें भी लिखी गयीं, लेकिन वे अधूरा सच थीं, जिन्हें न भीड़ मिली और ना ही पाठक। मिलते भी कैसे? उनकी नीयत में ही खोट था। उन्हें गुजरात दंगों में मारे गये मुसलमान तो याद रहे, लेकिन रेल के डिब्बे में राख कर दिये हिंदू याद ही नहीं आए। कुछ महान आत्माओं का तो फिर से मारकाट और दंगे करवाने का खतरनाक मकसद था। हर भारतीय को पता है कि जख्मों को कुरेदने से खुशी और खुशहाली तो मिलने से रही, लेकिन इसी देश की धरती पर रह रहे कुछ देशद्रोही बीते वक्त में हुई गलतियों को सुधारने और सबक लेने की बजाय वर्तमान में भी खून-खराबे और दंगे होते देखने को लालायित हैं। ‘द कश्मीर फाइल्स’ के निर्माता को धमकियां दी जा रही हैं कि तुमने पूरा सच दिखाने की हिम्मत कैसे और क्यों की? दूसरे फिल्म वालों की तरह अपनी फिल्म में कश्मीर की हरी-भरी वादियों और किसी नयी प्रेम कहानी का चमकदार दीदार करवा देते तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाता! कुछ भड़के हुए लोग तो उन्हें मौत के हवाले करने को पगलाये हैं। यही वजह है कि सरकार को फिल्म निर्माता को ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा देने को मजबूर होना पड़ा है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि कश्मीर की हकीकत सामने लाने की कोशिश करने तथा उसे भारत का हिस्सा बताने वालों को धमकाने-चमकाने, मारने, पीटने की शुरुआत तो आजादी के तुरंत बाद ही हो गई थी। इसके बारे में इतिहास के पन्नों में बहुत कुछ दर्ज है, जिन्हें पढ़कर सबक लेने की जरूरत है।

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