Thursday, June 16, 2022

धर्म का धर्म

    मैंने सिद्धू मूसेवाला का पहले कभी नाम नहीं सुना था। मेरी तरह और भी बहुत से लोग होंगे, जिन्हें इस पंजाबी गायक की मौत पर मातम मनाने वाली अथाह भीड़ ने चौंकाया होगा और यह सच भी समझ में आया होगा कि सिद्धू की शोहरत बेमिसाल थी। गायक शुभदीप सिंह उर्फ सिद्धू मूसेवाला की जिन्दगी का सफर बहुत छोटा रहा। मात्र 28 बरस के ही थे, जब उनके लाखों चाहने वालों को उन्हें अंतिम विदायी देनी पड़ी। उनकी हत्या को लेकर तरह-तरह की बातें और सवाल-जवाब हैं। मधुर कर्णप्रिय आवाज के धनी मूसेवाला ने 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में मनसा सीट से कांग्रेस की टिकट पर अपना भाग्य आजमाया था, लेकिन पराजय उनके हिस्से में आयी थी। उनकी अपार लोकप्रियता वोटों में तब्दील नहीं हो पायी। गायक को इस बात का यकीनन गम रहा होगा, लेकिन उन्होंने कभी जाहिर नहीं होने दिया। वे अपने गीत-गानों में ही मस्त और व्यस्त थे। गायन और राजनीति में उनके प्रतिस्पर्धी मौके की तलाश में थे और जैसे ही उन्होंने मूसेवाला को अकेले पाया, गोलियों से भुनवा दिया।
    यह भी कितने-कितने ताज्जुब की बात कि भारत में जेल में बैठकर गैंग चलाये जा रहे हैं। कनाडा-आस्ट्रिया से फिरौती की कॉल की जाती है। मर्डर का आर्डर पाकर किसी मां-बाप की औलाद छीन ली जाती है। अपनी स्वर लहरी में अपने दिल की बात कहने वाले गायक के आखिरी सफर में पंजाब ही नहीं, अन्य राज्यों के भी लाखों प्रशंसक शामिल हुए। 43 डिग्री की झुलसाने वाली गर्मी में क्या पुरुष, क्या महिलाएं, क्या बूढ़े, क्या बच्चे... सब गमगीन हो अश्रु बहा रहे थे। शुभदीप के मनपसंद ट्रेक्टर पर जब उनकी अंतिम यात्रा निकली तो बेगानों में भी अपने किसी बेहद करीबी के असमय चल देने के भाव उमड़ रहे थे। उनका अंतिम संस्कार श्मशान घाट की बजाय गांव में ही उनके खेत में किया गया। सुबह 11 बजे से उमड़ी प्रशंसकों की लाखों की भीड़ ढाई बजे तक संस्कार होने तक टस से मस नहीं हुई। जननायक... गायक बेटे के चाहने वालों का यह अपनत्व और प्यार ही था, जिसने उनके पिता बलकार सिंह को अपनी पगड़ी उतार कर आभार जताने को विवश कर दिया। अंतिम यात्रा से पहले दर्द में डूबे मां-बाप का अपने लाल को दूल्हे की तरह तैयार करना, बार-बार माथा चूमना, उसकी मूच्छों को ताव देना और मां का एकटक निहारना पत्थर से पत्थर दिल को भी अश्रु की तीव्र धारा में बहाता रहा। जिस मां-बाप का जवान बेटा छीन लिया गया हो उन पर क्या गुजरी उसे दुनिया की कोई कलम बयां नहीं कर सकती। सिद्धू मूसेवाला के अंतिम संस्कार के बाद हुए भोग संस्कार को देखकर उनके एक फैन ने आत्महत्या कर ली। भोग का लाइव कार्यक्रम देखते हुए युवक ने कोई जहरीला पदार्थ खाकर मौत को गले लगा लिया। दरअसल वह सिद्धू के दुखी माता-पिता को देखकर तनाव में आ गया। जसविंदर नामक यह युवक मूसेवाला को दिलो-जान से चाहता था। गायक के अंतिम संस्कार के बाद भी एक सच्चे प्रशंसक ने फिनाइल पीकर आत्महत्या की कोशिश की थी। 19 साल का अवतार सिंह अपने आदर्श गायक के दिन-रात गाने सुनता था। यहां तक कि उन्हीं के नाम की टी-शर्ट पहनता था।
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इन दिनों धर्मांध, गुंडे-बदमाश, हत्यारे और इंसानियत के दुश्मन कुछ ज्यादा ही बेखौफ हो गये हैं। मानसिक तनाव भी लोगों को बुरी तरह से पराजित कर रहा है। कोलकाता फिल्म उद्योग की तीन मॉडल की रहस्यमय मौत की गुत्थी अभी सुलझी भी नहीं थी कि एक और 18 वर्षीय सिने मॉडल ने पंखे पर लटक कर खुद को परलोक पहुंचा दिया। कोई यूं ही मौत को गले नहीं लगाता। यह भी सच है कि किसी की हत्या और आत्महत्या के पीछे भी कोई न कोई वजह तो होती ही है, लेकिन अपनी जान देना और किसी की जान ले लेना अनुचित है। इंसानियत के शत्रु, धार्मिक उन्माद के जन्मदाता आखिर चाहते क्या हैं? देश के अमन-चैन के दुश्मन बन कर उन्हें भले ही संतुष्टि और प्रचार मिल रहा हो, लेकिन भारत माता बेहद अशांत और निराश है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। ऐसा दिखाया जा रहा है कि, हिंदू-मुसलमान आमने-सामने आने को उतारू हैं। जुबानी तलवारें जमकर चल रही हैं। तीखे बयानों के खंजर भी बेखौफ चलाये जा रहे हैं। एक से एक भस्मासुर पैदा हो रहे हैं। बीते दिनों एक टीवी चैनल पर डिबेट के दौरान भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने मो.पैगंबर पर ऐसी टिप्पणी कर दी, जिससे देश और विदेश के मुसलमान बुरी तरह से गुस्सा गये और हंगामा बरपा हो गया। यह मानना बेवकूफी होगी कि नूपुर को हंगामा होने का पूर्वाभास नहीं था। नूपुर की असावधानी देश को बहुत भारी पड़ी है। ऐसी भड़काऊ शाब्दिक चालें अक्षम्य हैं, लेकिन यह भी अक्षम्य है कि क्रिया की प्रतिक्रिया दिखाते हुए जहां-तहां पथराव और आगजनी करते हुए आपसी भाईचारे का गला ही घोट दिया जाए। नूपुर ने माफी तो मांग ही ली थी। भाजपा आलाकमान ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से बाहर भी कर दिया, लेकिन फिर भी अश्लील गालियां देने और उनको मौत के घाट उतारने वाले को एक करोड़ का इनाम देने के क्या मायने हैं? यकीनन अपने देश में कुछ लोग हैं, जो इसकी बरबादी के सपने देख रहे हैं। इसमें हिंदू भी हैं और मुस्लिम भी। जिनके लिए अफवाहें और वैमनस्य फैलाने के लिए सोशल मीडिया एक सहज-सुलभ हथियार है। अगर आप ध्यान से देखें तो यही पायेंगे कि इनकी अपने समाज में भी कोई इज्जत नहीं। मान न मान मैं तेरा मेहमान की तर्ज पर खुद को मसीहा दर्शाने की कसरत करते रहते हैं। भाईचारे का कत्लेआम इन्हें अपार प्रसन्नता दिलाता है। कहने और दिखाने को तो ये अपने धर्म के वास्ते कुर्बान होने की नाटक-नौटंकी करते हैं, लेकिन इन्हें न तो हिंदू होने और ना ही मुस्लिम होने के धर्म का पता है। यह विडंबना ही है कि जिन देशों में लोकतंत्र का नामोनिशान नहीं, केवल मजहब के नाम पर शासन चलता है वे भी हिंदुस्तान को नसीहतें देने पर उतर आये। दुनिया का कोई भी धर्म हिंसा करने की सीख नहीं देता। किसी भी धार्मिक ग्रंथ में नहीं लिखा है कि जहां की धरती का अन्न खाओ, वहीं से गद्दारी करो। उसे खून से नहलाने की साजिशें रचते रहो। हर पोथी प्यार-मोहब्बत के पन्नों से भरी है, जिसने इन्हें ध्यान से पढ़ा है वह इंसानियत की हत्या करने की सोच ही नहीं सकता।

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