Thursday, June 23, 2022

कुछ तो शर्म करो दंगावीरो

    भारत में कुछ लोग विरोध करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। लोगों को सड़कों पर लाने और दंगे भड़काने के लिए सतत बेचैन रहते हैं। जब से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी है और कर्मवीर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से इन विघ्न संतोषियों की तो नींद ही उड़ गई है। मोदी सरकार की हर जनहित योजना में कमियां और खामियां निकालने बैठ जाते हैं। इनके पाले-पोसे उपद्रवी गुंडे-बदमाश डंडे और झंडे लहराते हुए तोड़फोड़ और आगजनी पर उतर आते हैं। हिंसक जाट आंदोलन, शाहीन बाग, किसान आंदोलन और नूपुर शर्मा विवाद में सजग देशवासियों ने जन्मजात विरोधियों के कितने-कितने विषैले रंग देखे हैं। राजनीति के कुटिल खिलाड़ियों को बार-बार मर्यादाहीन और विवेक शून्य होते देखा है। अभी हाल ही में सैन्य सुधार के लिए भारत सरकार ने 17 से 23 साल की ऊर्जावान युवा शक्ति को देश की सेवा में तल्लीन करने के दूरगामी उद्देश्य से अग्निपथ योजना की घोषणा की तो उसका बिना सोचे-समझे विरोध शुरू हो गया। सरकार की तो यही मंशा रही कि भारतीय सेना को अधिक से अधिक युवा बनाया जाए। दो-ढाई साल का कीमती समय तो कोरोना निगल गया। सरकार को इस महामारी से पूरी ताकत के साथ लड़ना पड़ा, जिससे देशहित के कई अन्य जरूरी दायित्व पीछे छूट गये। अब सरकार तेजी से जनहित की योजनाओं को साकार करना चाहती है।
    देश के तरुणों और युवाओं में देश सेवा की भावना को जगाने तथा और बलवति बनाने का सशक्त माध्यम है अग्निवीर योजना। इस तरह की योजनाओं को और भी कई देशों में लागू किया जा चुका है। इजराइल, सिंगापुर, ब्रिटेन ऐसे देश हैं, जहां पर बारहवीं के बाद लड़कों तथा लड़कियों को कुछ समय के लिए सेना में भर्ती किया जाता है और वे सेना की सेवा कर गर्वित होते हैं। भारत सरकार भी यही चाहती है, लेकिन यहां तो अग्निपथ योजना को पूरी तरह से जाने समझे बिना ही विरोध के डंडे और लाठियां चलने लगीं। जिन्हें सेना में भर्ती होकर देश के लिए बहुत कुछ करना था वही उपद्रवी बन गये या बना दिये गए, जिससे देश की सैकड़ों करोड़ की सम्पत्ति का नुकसान हो गया। प्रश्न तो ये भी है कि अपनी बात मनवाने के लिए ऐसी हिंसा क्यों... जो बेहद शर्मनाक होने के साथ-साथ युवा शक्ति के प्रति क्रोध और अविश्वास जगाती है। लोकतंत्र में असहमति और विरोध जताने का अधिकार सभी को है, लेकिन यह तरीका अपराध भी है और अक्षम्य भी है। सरकारी और निजी संपत्ति को बेदर्दी से फूंके जाने, पेट्रोल बम और टायर जलाकर दहशत मचाने के दृश्य देखकर भले ही कुछ लोगों को अच्छा लगता हो, उन्हें अपनी भावी राजनीति की खिचड़ी पकती दिखती हो, लेकिन आमजन को तो बहुत कष्ट और पीड़ा पहुंचती है। दरभंगा में एक निजी बस हुड़दंगियों की भीड़ में एक घंटे तक फंसी रही। उस बस में स्कूली बच्चे खिड़की का बाहर का दृश्य देखकर भय से कांप रहे थे। आठ-नौ साल के ये बच्चे भूखे-प्यासे स्कूल से घर लौट रहे थे। स्कूल बस में बच्चों के भयभीत होने और रोने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होती रहीं और संवेदनशील जागरूक भारतीयों को गुस्सा दिलाती रहीं।
    तथाकथित छात्र बेखौफ होकर हाथ में डंडे लहराते हुए आगजनी कर सरकार के विरोध में नारेबाजी कर हंगामा मचाये थे। जलते टायरों के उठते धुएं के कारण बस में कैद बच्चों को सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही थी। उनका बुरी तरह से दम घुट रहा था, लेकिन हंगामेबाज अपनी जिद और मस्ती में अंधे और बहरे बन खौफ और आतंक मचाते रहे। अदिति के पापा को कैंसर हो जाने के कारण पटना के अस्पताल में भर्ती किया गया था। बीस दिन से अपने पापा का चेहरा देखने के लिए तरस रही अदिति अपने परिजनों के साथ कई घंटों से पाटलीपुत्र स्टेशन पर ट्रेन की राह देख रही थी, लेकिन ट्रेन को तो उपद्रवियों और शैतानों ने रोक रखा था। उनके हाथों में पेट्रोल की बोतलें थीं और उनके चेहरे गमछों से ढके थे। डरी-सहमी दस वर्षीय अदिति ने आगजनी की तस्वीरें लेते अखबार के संवाददाता से धीरे से पूछा, ‘‘अंकल ये कौन लोग हैं, जो ट्रेन में आग लगा रहे हैं?’’ पटना स्टेशन के बाहर एक युवक बच्चों की तरह रोते हुए भीड़ का ध्यान अपनी तरफ खींच रहा था। उस बेरोजगार गरीब युवक की मोटरसाइकिल दंगाइयों ने फूंक कर राख कर दी थी। ऐसे न जाने कितनी-कितनी अदिति और युवक हैं, जिनको रेलगाड़ियों के पहिये रोक देने के कारण तरह-तरह की असुविधाएं और नुकसान झेलना पड़ा। समय पर इलाज न हो पाने के कारण अपनों को खोना पड़ा। खून-पसीने की कमायी अपनी आंखों के सामने धू...धू कर जलती देखनी पड़ी। इस आतंक के मंजर को दंगाई तो भूल जाएंगे, लेकिन जिनको अपनी तबाही देखनी पड़ी वे तो ताउम्र नहीं भूल पायेंगे। उनके तो जीवन भर आंसू बहते रहेंगे और खून भी खौलता रहेगा। हिंदुस्तान के विख्यात कवि, गज़लकार श्री अशोक अंजुम ने जलती गाड़ियों, रोते-बिलखते बच्चों, जवानों, बूढ़ों की तकलीफ, चिंता और पीड़ा से रूबरू होने के बाद जो व्यंग्य गीत लिखा है उसे आप भी और वो भी पढ़ें और जानें कि देशवासी कितने गुस्से में हैं। यकीनन यह व्यंग्य गीत मनोरंजन के लिए तो नहीं लिखा गया है...
‘‘दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर
वक्त है न चूक तू
वाहनों को फूंक तू
यदि कहें हिमायती
आसमान पे थूक तू
दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर
बन नज़ीर... बन नज़ीर... बन नज़ीर
दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर
फोर्स हों बड़ी-बड़ी
घेर कर तुझे खड़ी
तू निडर, न डर, न डर
इम्तिहान की घड़ी
छोड़ तीर, छोड़ तीर... छोड़ तीर
दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर
छवि दिखा तू रोष की
यह घड़ी है जोश की
क्या सही है, क्या गलत
बात कर न होश की।
रख न धीर, रख न धीर, रख न धीर
दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर
बस्तियों को लूट ले
आग लगा फूट ले,
खा पुलिस की लाठियां
फिर भले ही टूट ले
ये शरीर... ये शरीर... ये शरीर
दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर।’’

    भोले-भाले लोगों को उकसाने, भड़काने तथा दंगे की आग लगाने में और कोई नहीं, नेताओं की खून-खराबा पसंद बिरादरी की बहुत अहम भूमिका होती है, जो कभी स्पष्ट दिखती है, तो कभी छिपी रहती है। कुछ हफ्ते पूर्व कानपुर में हुई हिंसा के दौरान बच्चों ने भी जमकर पथराव और बमबाजी की थी। इसके पीछे का सच तब सामने आया जब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आदेश पर पुलिस ने गहन जांच शुरू की। कुछ शातिर स्थानीय नेताओं और मोहल्ले के हिंसा पसंद लोगों ने बच्चों को रुपये बांटे थे। इतना ही नहीं मजहबी कट्टरता का पाठ पढ़ाने वालों ने बच्चों को मिठाई और बिरयानी भी बांटी। कश्मीर में पत्थरबाजी करने के लिए आतंकवादी यही खेल खेलते रहे हैं।

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