Thursday, June 2, 2022

आदमखोर

    25 जून, 2022 की दोपहर से ही न्यूज चैनलों ने बताना प्रारंभ कर दिया था कि कुछ ही देर बाद आतंकवादी यासीन मलिक की किस्मत का फैसला आने वाला है। करीब तीन दशक के लंबे इंतजार के बाद खूंखार हत्यारे को सुनायी जाने वाली सज़ा पर सभी की निगाहें लगी थीं। सभी यही दुआ कर रहे थे कि इस बर्बर जानवर को फांसी से कम की सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। उसके गुनाहों की बड़ी लंबी फेहरिस्त है। 1999 में कश्मीर घाटी में एयरफोर्स के चार लोगों की हत्या, कश्मीरी पंडितों के क्रूरतम नरसंहार और उन्हें अपनी ही जड़ों और ज़मीन से चले जाने को मजबूर करने वाले इस राक्षस ने खुद को बचाने के लिए मुखौटे पर मुखौटे लगाकर मान-सम्मान और सहानुभूति पाने के लिए न जाने कितनी चालें चलीं। गिरगिट की तरह रंग बदलता रहा, लेकिन जिन्हें इसने गहरे जख्म दिए, जीते-जागते इंसानों को लाशों में बदला, उनके परिजन इसे कैसे माफ कर सकते हैं! देशभर के विभिन्न न्यूज चैनलों पर स्क्वॉर्डन लीडर रवि खन्ना की उम्रदराज हिम्मती पत्नी निर्मला खन्ना अपने दर्द की परतें खोल रही थीं और देश के लाखों लोगों की तरह मेरी आंखें बार-बार भीग रही थीं और खून भी खौल रहा था। 25 जनवरी, 1990 को श्रीनगर के एयरफोर्स बेस जा रहे रवि खन्ना समेत तीन अन्य वायुसेना अधिकारियों को यासीन मलिक ने अन्य आतंकियों के साथ मिलकर गोलियों से भून दिया था। देश के नायक शहीद रवि खन्ना की पत्नी निर्मला खन्ना का बस यही कहना था कि उन्हें तो तभी शांति मिलेगी, जब इस आदमखोर दरिंदे को फांसी के फंदे पर लटकाये जाने की सज़ा सुनायी जाएगी। इसने मेरे पति पर 28 गोलियां बरसायीं और उनकी जान ले ली। मैं अपनी आखों देखा वो रक्त से सना मंज़र कैसे भूल सकती हूं? मुझे अफसोस यह भी है कि, यासीन ने उन्हें एक बार मारा, लेकिन हुकुमतें मुझे 32 साल से मारती चली आ रही हैं। सोच कर ही हैरत होती है कि, मेेरे पति को मारने के बाद भी वह अभी तक जिन्दा है! जब तक खून का बदला खून नहीं, तब तक मैं चैन से नींद नहीं ले पाऊंगी, चाहे कुछ भी हो जाए मुझे अंतिम सांस तक उस दिन का इंतजार करते रहना है, जब इसे फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा।
    शाम होते-होते तक जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी उत्पाती, शैतान, हत्यारे यासीन मलिक को टेरर फंडिग सहित अन्य मामलों में दस लाख रुपये के जुर्माने के साथ उम्र कैद की सज़ा सुनायी गई तो कई लोगों की तरह मुझे भी घोर निराशा हुई। देश के करोड़ों भारतीयों की तरह एनआईए ने भी दरिंदे के लिए मौत की सज़ा की मांग की थी। विशेष जज प्रवीण सिंह ने यूपीए और आईपीसी के अपराधों में उसे अलग-अलग सज़ा सुनाई। देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने, आतंकवाद के लिए धन जुटाने, आपराधिक साजिश रचने और गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल रहे इस खूंखार जानवर को उम्रकैद के अलावा 10 मामलों में दस-दस साल की सज़ा भी सुनाई गई। यह सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। यानी उसे अंतिम सांस तक जेल में ही सड़ना होगा। जम्मू कश्मीर का यह दूसरा ऐसा मामला है, जिसमें किसी कश्मीरी आतंकवादी को हत्या के मामले में उम्र कैद हुई है। 2001 में अदालत ने कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता हृदय नाथ वांचू के कत्ल के मामले में कश्मीरी अलगाववादी नेता और दुख्तरान-ए-मिलत की सर्वेसर्वा दरक्शा अंद्राबी के पति डॉक्टर कासिम फक्तू को मरते दम तक जेल में रहने की सज़ा सुनाई थी। तभी से दोनों पति और पत्नी जेल में अपने पापों का दंड भुगत रहे हैं।
    उम्र कैद की सज़ा ने यासीन मलिक के चेहरे पर चमक ला दी। उसे इस कदर राहत महसूस हुई कि, उसने फैसला सुनने के तुरंत बाद अपने वकील को गले लगा लिया। तय है कि उसे भी फांसी के फंदे पर लटकाये जाने की चिंता खाये जा रही थी, लेकिन बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी? कई हंसते-खेलते घर-परिवार उजाड़ चुके यासीन पर अभी भी अदालत में कई संगीन मुकदमें चल रहे हैं, जो निर्मला खन्ना की खून का बदला खून की मांग को साकार करने को बेताब हैं। आतंकी यासीन को उम्र कैद की सज़ा मिलने पर पाकिस्तान में मातम छा गया। कश्मीर में आतंकी वारदातों के लिए फंडिग और तबाही का सामान उपलब्ध कराने वाले पाकिस्तान के शासकों और विभिन्न नेताओं के तन-बदन को आग लग गई। वे एकजुट होकर चीखते-चिल्लाते रहे कि यह सज़ा बनावटी आरोप के आधार पर सुनायी गई है। हमारा यासीन तो बेगुनाह है। उसे सभी आरोपों से मुक्त कर खुली हवा में सांस लेने को छोड़ दिया जाए। यासीन मलिक की पैंतरेबाजी और धूर्तता का भी जवाब नहीं। सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली की तर्ज पर मदमस्त इस दानव को असंख्य हत्याएं करने के बाद स्वयं को महात्मा गांधी का सच्चा अनुयायी घोषित करने में जरा भी लज्जा नहीं आई। उसे लग रहा था कि देशप्रेमी भारतीयों की याददाश्त बहुत कमजोर है। गांधीवादी की छवि उसके गुनाहों पर ऐसा पर्दा डालने में सहायक होगी, जिससे भारत का कानून भी उसके प्रति नर्मदिली दिखाने को मजबूर हो जाएगा। पहले की सरकारें भी उसको पुचकारती और आदर सम्मान देती रहीं, जैसे वह वाकई गांधी का सच्चा भक्त और एकदम भला मानुष हो। उसने अपने जीवन में कोई गुनाह ही न किया हो। सच्चे मन से देखा और सोचा जाए तो भारत माता के अमन-चैन के दुश्मनों का तो हर किसी को तिरस्कार करना चाहिए, लेकिन हमारे ही देश में ऐसे कुछ लोग हैं, जिनका राष्ट्रद्रोहियों को फटकारने और अवहेलना करने का मन ही नहीं होता। उनके अंदर सतत कोई और ही खिचड़ी पक रही होती है। देश की राजधानी दिल्ली में सीएए प्रोटेस्ट के दौरान हुई हिंसा में जिस शाहरूख पठान ने पुलिस पर बंदूक तान दी थी, वह जब बीते हफ्ते पैरोल पर अपने बीमार पिता को देखने घर पहुंचा तो उसके पड़ोसी खुशी से झूम उठे। उन्होंने उसकी हौसला अफजाई के लिए जुलूस भी निकाला। फटाखे भी फोड़े। जमकर नारेबाजी भी की। हमारे समाज का यह जो चेहरा है यकीनन बहुत डरावना तो है ही, गहन चिंता में भी डालने वाला है। आतंकियों की आरती गाने वाले भूल जाते हैं कि उनकी यह उत्साह और अक्षम्य गलती उन्हीं के माथे पर कलंक का अमिट टीका लगाती है और उस भरोसे का कत्ल करती है, जो वर्षों की तपस्या के बाद बना है।

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