Thursday, September 1, 2022

बोना और काटना

    सोचें, तो सोचते ही रह जाएं। देखें तो आंखें चुंधिया जाएं। मंज़र ही कुछ ऐसे हैं। आजादी के बाद के भारत के शीर्ष भ्रष्टाचारियों के इतिहास की जब कोई मोटी किताब लिखी जाएगी तब इस सदी के सबसे निर्लज्ज भ्रष्ट नेता लालू प्रसाद यादव का उल्लेख सबसे पहले होगा, जिसने बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए करोड़ों रुपये का पशुओं का चारा खा-पी डाला। भारत सरकार में रेल मंत्री रहते बेरोजगारों को रेलवे में नौकरी देने के बदले में उनके परिवारों की जमीनें अपने तथा अपने परिवार के सदस्यों के नाम करवा लीं। लालू ने बिहार का मुख्यमंत्री रहते शहाबुद्दीन जैसे कई गुंडे, बदमाश, हत्यारे पाले। उन्हें सत्ता का स्वाद चखाया। जब चारा घोटाले के चलते जेल जाने की नौबत आई तो अपनी अनपढ़, गंवार बीवी को बिहार की कुर्सी पर विराजमान करवा दिया, ताकि चारों तरफ से हो रही धन की बरसात अपने ही आंगन में होती रहे।
    पचास, सौ साल के बाद की पीढ़ी को घोर आश्चर्य होगा कि फिर भी इस चोर-डकैत का डंका बजता रहा। वह विधानसभा और लोकसभा का चुनाव जीतता रहा। उसके अंगूठा छाप बेटे भी विधानसभा का चुनाव जीतकर मंत्री बन गये। बेटी भी राज्यसभा की माननीय सांसद बन लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाने में सफल होती रही। भ्रष्टाचारियों के सरगना लालू ने अरबों-खरबों की लूट अपने बेटों, बेटियों और पत्नी के सुरक्षित भविष्य के लिए जुटायी। उसके बेटे तो छाती तानकर कहते रहे कि हमें छापो...वापों से कोई फर्क नहीं पड़ता। हम बिहारी हैं, डरते थोड़े ही हैं। बिहार के वोटर हमारे साथ हैं तो फिर काहे की चिंता-फिक्र करना।
हरियाणा का खानदानी नेता ओमप्रकाश चौटाला भी बड़ी बेहयायी के साथ भ्रष्टाचार करता रहा। प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हजारों बेरोजगारों को सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनाने के ऐवज में मोटी रिश्वत लेने के आरोप में लालू की तरह यह भ्रष्टाचारी शैतान भी जेल हो आया, लेकिन फिर भी छाती तानी रही। उसकी औलादें भी हरियाणा की राजनीति की छाती पर बेखौफ होकर हुड़दंग मचाती रहीं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गयी। इस बेईमान को रांची के अनगड़ा में खनन लीज अपने नाम आवंटित करवाने में ज़रा भी शर्म नहीं आयी। हेमंत का एक से एक खतरनाक अपराधियों से याराना रहा है। उसके खास सहयोगी प्रेम प्रकाश के घर से दो एके-47 जब्त की गईं। इन अवैध हथियारों से कितने शत्रुओं को डराया और टपकाया गया होगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। इसका बाप, शिबू सोरेन भी छंटा हुआ भ्रष्ट नेता रहा है। 1993 में इसने तथा इसके चार बिकाऊ सांसद साथियों ने नरसिम्हाराव की सरकार को बचाने के लिए लाखों रुपये की रिश्वत खायी थी। इसी भ्रष्टों के सरगना शिबू सोरेन के चहेतों ने कई वर्षों से अभियान चला रखा है कि, सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं को शिबू सोरेन की जीवनी पढ़ायी जाए। इसी तरह से बिहार में भी लालू परिवार के कई शुभचिंतक यही लालसा रखते हैं। ऐसे लोगों की सोच पर सोचकर गुस्सा आता है। इनका बस चले तो राष्ट्रद्रोही हत्यारे दाऊद इब्राहिम की जीवनी भी स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आएं।
पश्चिमी बंगाल की तथाकथित शेरनी ममता बनर्जी के नाक के नीचे उसका सबसे करीबी मंत्री पार्थ चटर्जी सैकड़ों करोड़ों की रिश्वतखोरी कर बेहिसाब संपत्तियों का अंबार खड़ा करता रहा, लेकिन ईमानदार मुख्यमंत्री को भनक तक नहीं लगी। बुढ़ापे में भी दिलकश खूबसूरत महिलाओं के साथ इश्कबाजी करते रहे भ्रष्टाचारी सम्राट के काले कारनामों की खबर सीबीआई तथा ईडी को लग गई, लेकिन ममता अनजान रहीं! जब पार्थ की जानेमन अभिनेत्री अर्पिता मुखर्जी के यहां से लगभग पचास करोड़ के कड़कते नोटों का जखीरा मिला तो देखने वाले भी हैरान रह गए। यह सारा काला धन स्कूलों में हुई शिक्षकों की नियुक्ति के बदले ऐंठा गया। ममता के प्रदेश में वर्ष 2014 और 2020 में शिक्षकों की भर्ती में बेखौफ होकर रिश्वतखोरी की गई थी। किसी भुक्तभोगी की शिकायत पर हाईकोर्ट ने इस शर्मनाक रिश्वतकांड की जांच कराने के आदेश सीबीआई को दिये थे। न जाने कितने होनहार योग्य प्रत्याशियों की प्रतिभा को लात मारकर उन्हें उनके हक से वंचित किया जाता रहा। ममता ने मजबूरन पार्थ से मंत्री की कुर्सी तो छीन ली, लेकिन उसके प्रति सहानुभूति में कोई कमी नहीं आयी। हरियाणा के जन्मजात चोर-डकैत ओम प्रकाश चौटाला की राह पर चलकर सरकारी स्कूलों में की गई शिक्षकों की नियुक्तियां करने वाला पार्थ पूरी तरह से अंधा बना रहा। जिन अपात्र हजारों लोगों को नौकरी दी उनकी जमीनें बिक गईं। हर भ्रष्टाचारी इसी भ्रम में रहता है कि उसका कुछ नहीं होगा, लेकिन जब कानून का डंडा चलता है तो होश ठिकाने आ जाते हैं, लेकिन कुछ निर्लज्ज ऐसे भी हैं, जिन्हें जेल जाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता। कालांतर में अपने बाप की जुटायी काली माया से उनकी औलादें राजनीति में पैर जमाने में लग जाती हैं। काले धन की बदौलत चुनाव जीत कर मंत्री तक बन जाती हैं। इस हकीकत के एक नहीं, कई उदाहरण हमारे सामने हैं। धर्म और जातिवाद की बीमारी के शिकंजे में फंसे हम यानी वोटर अपने वाले के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार रहते हैं। जानते-समझते हैं कि सामने वाला हद दर्जे का लुटेरा और विश्वासघाती है फिर भी उसे वोट देने में देरी नहीं लगाते। लालू, शिबू सोरेन जैसे बेईमानों तथा उनके सड़कछाप बच्चों के चुनाव जीतते चले जाने की भी यही वजह है। लालू का नौवीं फेल नालायक जोकरनुमा बेटा बिहार का वनमंत्री बन वरिष्ठ आइएएस पर राजा-महाराजा की तरह हुक्म झाड़ता है और हम गदगद हो जाते हैं।

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