Thursday, September 22, 2022

जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं

यह भारतीय खाकी वर्दीधारियों, पुलिस थानों और अधिकांश जेलों का वास्तविक चेहरा है, जिसे उन्हीं ने अच्छी तरह से जाना और पहचाना है, जिनका इससे वास्ता पड़ा है। फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने और पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने पहुंची किसी नारी की अस्मत लुटने और उसे अपमानित करने की खबरें पुरानी पड़ चुकी हैं। कुछ अपराध ऐसे हैं, जो पुलिसवाले सत्ताधीशों के इशारे पर करते चले आ रहे हैं। पुरस्कार तथा पदोन्नति का लालच तो लगभग सभी को रहता है। फर्जी मुठभेड़ के साथ भी कहीं न कहीं यह सच जुड़ा हुआ है। कल भी अधिकांश औरते थाने जाने में घबराती थीं। आज भी घिनौने से घिनौने दुष्कर्म का शिकार होने के बाद भी वहां की चौखट पर पैर रखने से कतराती हैं। पुलिस के लालची और पक्षपाती चलन के चलते कई बार बेकसूर ही अपराधी घोषित कर दिये जाते हैं। उन्हें न्याय के फूलों की बजाय कांटे ही कांटे मिलते हैं।
    भारतीय जेलों के भी बड़े बुरे हाल हैं। कहने को तो पुलिस आम लोगों की सुरक्षा और जेलें अपराधियों को सज़ा और उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए हैं, लेकिन जो सच सामने है वह बड़ा चिंतनीय तथा डरावना है। निर्दोष लोगों के सिर काटकर हत्याएं करने और पूरी दिल्ली में दहशत फैलाने वाले एक सीरियल किलर ने खुद के अपराधी बनने का जो कारण बताया उससे तो अदालत के दिमाग की चूलें ही हिल गईं। वह अपनी कह रहा था और स्तब्ध जज साहब बस सुन रहे थे, साहब, मैं तो यहां मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार वालों के लिए दो वक्त की रोटी कमाने के लिए आया था। राजधानी के कई इलाकों में कई काम किए। भरपूर मेहनत-मजदूरी करने के बाद दो पैसे हाथ में नहीं लगने पर आदर्शनगर में सड़क के किनारे की खाली जमीन पर सब्जी बेचने लगा। हमारे गांव में तो सरकारी जगह पर ठेला, रेहडी लगाने की पूरी आज़ादी थी। महानगर के दस्तूर का मुझे पता नहीं था। सब्जी की दुकान लगाये अभी पांच-छह दिन ही बीते थे कि गुंडे-बदमाशों ने पैसों के लिए तंग करना प्रारंभ कर दिया। मेहनत मेरी थी, लेकिन वे अपना हिस्सा मांग रहे थे। मैंने उन्हें कुछ दे-दुआकर किसी तरह शांत किया, तो पुलिस वालों ने अपनी हिस्सेदारी मांगनी प्रारंभ कर दी। एक बीट कांस्टेबल तो मेरे पीछे ही पड़ गया। मनचाही रिश्वत नहीं मिलने पर उस धूर्त ने तो मेरी सब्जी की टोकरियां नष्ट करने के साथ-साथ मेरे खिलाफ मुकदमें दर्ज करवाने प्रारंभ कर दिये। एक जगह से दूसरी जगह पर जा-जाकर मैंने अपनी दुकान लगायी, लेकिन हर बार लुटेरे वर्दीवालों ने चैन से जीने नहीं दिया। बेकसूर होने के बावजूद कई बार मुझे जेल जाना पड़ा। जेल यात्रा के दौरान ही मन में पुलिस वालों को सबक सिखाने और उनकी नींद उड़ाने का विचार आया तो निर्दोषों की चुन-चुन कर हत्याएं करने लगा। ऐसा भी नहीं कि आम आदमी से मित्रवत व्यवहार करनेवाले खाकी वर्दीधारियों का अकाल पड़ गया है, लेकिन जो हैं, वे गिने-चुने हैं। अपराधी सोचवाले उन पर भारी पड़ रहे हैं।
    देहरादून की जेल में हत्या के आरोप में आजीवन कारावास भोग रहे रामप्रसाद को दाएं गुर्दे में पथरी की शिकायत थी। पथरी के ऑप्रेशन के लिए उसे अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां जेल प्रशासन की मिलीभगत से पथरी का ऑप्रेशन करने की बजाय उसकी बायीं किडनी ही निकाल ली गई। कुछ महीनों के बाद रामप्रसाद को फिर दर्द हुआ तो इलाज के नाम पर की गई धोखाधड़ी का पता चला। जेल में बंद खूंखार कैदी जेल में कुछ भी हासिल कर सकते हैं। बिकाऊ जेल प्रशासन को मोटी रिश्वत थमा कर जन्मजात चोर, लुटेरे, वसूलीबाज कैदी हर वो सुविधा पा रहे हैं, जो वे चाहते हैं। पैसे वाले कैदी जेल में मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं। अपना जन्मदिन और हर खुशी का जश्न मनाने के लिए शराब, गांजा आदि उन्हें पीने को मिल रहा है। जेल में वर्षों तक बंद रहे एक अपराधी ने बताया कि उसने अपनी आंखों से कैदियों को पेटीएम व फोन-पे के माध्यम से पैसे मंगवा कर अधिकारियों की रिश्वत की अंधी भूख को पूरा करते देखा है। यही भ्रष्टाचारी जेल अधिकारी रिश्वत देने वाले कैदियों के लिए दारू, चिकन-मटन पार्टी से लेकर अन्य और सभी मौज-मजों के इंतजाम कर रहे हैं। कुछ कैदियों को मिल रही सुविधाओ को देखकर लगता ही नहीं कि वे किसी संगीन जुर्म के कारण सींखचो में डाले गये हैं। नागपुर की सेंट्रल जेल में कई खूंखार हत्यारे, बलात्कारी, डॉन, माफिया कैद हैं। जेल के कुछ अधिकारी इन पर बड़े मेहरबान हैं। अभी हाल ही में कुछ कैदियों को मोबाइल तथा गांजा उपलब्ध कराने की शर्मनाक हकीकत ने सुर्खियां पायीं। जेल में विशाल प्रवेश द्वार पर कड़ी जांच की जाती है। यहां तक कि बाहरी व्यक्तियों के मोबाइल व अन्य इलेक्ट्रानिक्स सामान काउंटर पर जमा कर लिए जाते हैं। तो फिर ऐसे में जेल के भीतर नशे के लिए गांजा तथा बातचीत के लिए मोबाइल कैसे पहुंचा होगा? इसका उत्तर तो कोई बच्चा भी दे सकता है। तिहाड़ जेल में कैद रहकर भी ठगराज सुकेश चंद्रशेखरन ने एक शीर्ष उद्योगपति की बीवी से 200 करोड़ झटक लिए। तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बिकने का इससे खतरनाक सच भला और कौन सा हो सकता है। लोग अक्सर सवाल करते हैं कि देश में अपराधियों को नकेल कसने के लिए जब इतने कानून हैं, तो अपराधों का आंकड़ा जस का तस और अपराधियों का बाल भी बांका क्यों नहीं हो रहा? हां, यह सच है कि देश में कानूनों की तो भरमार है, रोज नये-नये कानून बनते भी रहते हैं, लेकिन रक्षक के भक्षक बनने, उसके बिक जाने और सत्ता तथा व्यवस्था के भेदभाव करने के कारण कानून असहाय और बौना बनकर रह गया है...।

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