Thursday, September 8, 2022

बदरंग बचपन और जवानी

    गुलाटी साहब पंद्रह दिन के बाद घर लौटे। उनका पालतू कुत्ता उन्हें देखते ही उनके इर्द-गिर्द घूमने और उनके पैरों को चाटने लगा। गुलाटी साहब ने देखा, कुते की आंखों से झर-झर आंसू छलक रहे थे। गुलाटी साहब ने उसे बड़े जोर से अपने गले से चिपटा लिया। जैसे उन्हीं का प्यारा-दुलारा बेटा हो। गुलाटी शहर के विख्यात कॉलेज में हिन्दी के व्याख्याता थेे। अपने छात्र-छात्राओं में खासे लोकप्रिय गुलाटी और उनकी पत्नी को उन्हीं के इकलौते कपूत ने गोलियों से भूनकर दर्दनाक मौत दे दी। यह खबर पढ़ते ही मुझे लगा किसी जालिम ने मेरे सीने का धड़कता दिल खींचकर बाहर निकाल लिया हो। मेरे हाथ-पैर सूखे पत्ते की तरह कांपने लगे। दिमाग कुछ भी सोचने के काबिल नहीं रहा। गुलाटी का नाबालिग बेटा शराब और गांजा के नशे की लती हो चुका था। मां-बाप समझा-समझा कर थकहार गये थे। पहले तो नशे के लिए घर के कीमती सामान बेचकर गांजा, शराब खरीदता था फिर यहां-वहां चोरी-चक्कारी करने लगा। सुबह-शाम हवाखोरी के लिए सैर पर निकलने वाली महिलाओं के गले की सोने की चेन उड़ाने के कारण जेल भी हो आया था। प्रोफेसर गुलाटी बेटे के कारण बदनामी के दंश झेलते-झेलते बीमार-बीमार से दिखने लगे थे। पत्नी ने तो बिस्तर ही पकड़ लिया था और अब यह शर्मनाक कांड जो हर किसी की जबान पर था...
गुलाटी ने जितना भी कमाया  और बनाया था, सब अपने बेटे के लिए ही तो जुटाया था। वे तो बस यही चाहते थे बेटा किसी तरह से सही राह पकड़ ले। उनके विरोधी तो उन्हीं को अपराधी और कसूरवार समझते थे। पीठ पीछे कहते नहीं थकते थे कि जो इंसान अपने इकलौते बेटे को सही संस्कार नहीं दे पाया उसका प्रोफेसर होना ढकोसला है। अगर उन्होंने बेटे पर शुरू से नज़र रखी होती तो बेटा कभी बेकाबू नहीं होता। अच्छे-बुरे हर मौके पर आलोचना करने का ठेका ले चुके लोगों को तो सदबुद्धि दे पाना ऊपर वाले के भी बस के बाहर है। मुझे पता है कि गुलाटी ने अपने बिगड़ैल बेटे को अच्छे विचारों से संस्कारित करने के लिए जी-जान से न जाने कितनी कोशिशें की थीं। यह बड़ी विचित्र विडंबना है कि गुलाटी जैसे विद्वान दुनिया को तो जीतने में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन अपने ही घर में अक्सर मात खा जाते हैं।
    देश के विशाल प्रदेश उत्तरप्रदेश के शहर गाजियाबाद के उस पिता पर क्या बीत रही होगी जिसके नाबालिग बेटे ने पढ़ने-लिखने की उम्र में खुद पर हत्यारा होने के कलंक का ठप्पा लगवा लिया है। हर माता-पिता अपनी संतान के अच्छे भविष्य के लिए सतत चिंतित रहते हैं, लेकिन आज के दौर के बच्चे तो कहां से कहां अंधे घोड़े की तरह दौड़े चले जा रहे हैं। दसवीं में पढ़ने वाले इस लड़के का पढ़ाई से ऐसा मन उचटा कि उसने किताबों से छुटकारा पाने के उपाय तलाशने प्रारंभ कर दिए। घर से स्कूल जाने के लिए निकलता लेकिन यहां-वहां भटकता रहता। उसे इस आवारागर्दी में ही मज़ा आने लगा था। महीने में मात्र पांच-सात दिन स्कूल जाते हुए अपने पिता की मेहनत की कमायी की बरबादी करता रहा। पिता को जब खबर लगी तो डांट पड़ी जो उसे बिलकुल अच्छी नहीं लगी। फिर तो उसने जो काम किया उसे देख- सुनकर  सभी के रोंगटे खड़े हो गए। पढ़ाई के सिरदर्द से छुटकारा पाने के रास्ते तलाशते-तलाशते सोशल मीडिया से उसे पता चला जेल जाने पर पढ़ाई से छुटकारा हमेशा-हमेशा के लिए मिल सकता है। फिर तो उसके दिल-दिमाग में जेल जाने का भूत सवार हो गया, लेकिन उसके लिए कोई अपराध करना जरूरी थी। गूगल और अपराधियों को महिमामंडित करने वाले विभिन्न वीडियो से उसे प्रेरणा मिली कि किसी की हत्या कर दो तो जेल जाने से कोई नहीं रोक सकेगा। किसी कुत्ते-बिल्ली की हत्या कर तो जेल नहीं पहुंचा जा सकता था। इसके लिए तो किसी जीती-जागती इंसानी जान की कुर्बानी की जरूरत थी। शातिर लड़के ने अपने पड़ोस में रहने वाले तेरह साल के बच्चे से दोस्ती की। कुछ ही दिनों में उसने बच्चे को विश्वास दिला दिया कि वह उसका अच्छा दोस्त है। एक शाम वह घुमाने-फिराने और कुछ खिलाने के बहाने से उसे सुनसान इलाके में ले गया और वहीं अभ्यस्त हत्यारे की तरह गला दबाकर उसकी हत्या कर दी। पुलिस ने जब उसे दबोचा तो वह बस यही कहता रहा कि, मैं पढ़ना नहीं चाहता, मुझे जल्दी से जल्दी जेल भेज दो...। नाबालिग होने के कारण इस हत्यारे को जेल तो नहीं भेजा गया, लेकिन सुधारगृह में जरूर डाल दिया गया है।
    शिवकुमार धुर्वे उम्र 18 वर्ष। छह दिन में 4 निर्दोषों की हत्या कर सीरियल किलर का तमगा हासिल करने वाले इस किशोर की चाहत थी कि उसका किसी भी तरह से नाम हो। लोग उसकी चर्चा करें। उसका नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाएं। पुलिसिया पूछताछ में उसने बताया कि एक फिल्म के किरदार रॉकीभाई ने उसे इस कदर रोमांचित किया कि उसने हत्या दर हत्या कर अपनी इच्छा पूरी करने के साथ-साथ मीडिया की भी भरपूर सुर्खियां पा लीं। धुर्वे ने हत्याएं करने का वही तरीका अपनाया जो फिल्मी किरदार ने अपनाया। वह रात को घूम-घूमकर देखता कि कौन थका-हारा चौकीदार अपनी ड्यूटी के बाद मधुर नींद की आगोश में है। मौका पाते ही वह सिर पर पत्थर मारकर उसकी निर्मम हत्या कर नये शिकार के लिए आगे निकल जाता। उसका इरादा तो पच्चीस-पचास को टपकाने का था, लेकिन 4 की हत्या के बाद वह पकड़ में आ गया। यह सीरियल किलर पढ़ा-लिखा तो नहीं लेकिन, स्मार्टफोन चलाने का उसे जबर्दस्त शौक रहा है। कई-कई घंटों तक अपराधों से संबंधित वीडियो देखना और मसालेदार खाना खाने के शौकीन इस और अन्य सभी नृशंस हत्यारों की गिनती इंसानों में तो कतई नहीं की जा सकती...।

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