Thursday, September 15, 2022

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इस वीडियो को देखने के बाद सबसे पहला विचार आया कि क्या भारतीय महिलाओं की सोच बदल रही है? वो अपनत्व और ममत्व जो इस पवित्र धरा की नारी की वास्तविक पहचान है, कहां मरखप गयी है। यकीनन जो सच सामने था, वो दिल को दुखाने, तड़पाने और दहलाने वाला था। इतनी संवेदनहीनता संकीर्णता और शर्मनाक निष्ठुरता! गाजियाबाद की रइसों और पढ़े-लिखों की सोसाइटी में एक महिला अपने पालतू कुत्ते के साथ लिफ्ट में सवार होती है। कुत्ता एक बच्चे को झपट्टा मार काट खाता है, लेकिन महिला देखकर भी अनदेखा कर देती है। जैसे कुछ हुआ ही न हो। बच्चा दर्द से कराहता रहता है, लेकिन निर्दयी महिला की इंसानियत नहीं जागती। वह तो बस तब तक चुपचाप लिफ्ट में खड़ी रहती है, जब तक उसका फ्लोर नहीं आ जाता। चौथी क्लास में पढ़ रहा यह बच्चा ट्यूशन से भूखा-प्यासा लिफ्ट से अपने फ्लैट लौट रहा था। जैसे ही उसे खूंखार कुत्ते ने काटा तो वह दर्द के मारे हाथ-पैर पटकने लगा। उसके लिए खड़े रहना मुश्किल हो गय। वीडियो में स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि कुत्ते के काटने से घायल हुए बच्चे को संभालने की बजाय महिला अपनी अकड़ और मस्ती में गुम है। उसके चेहरे से जो अहंकार टपक रहा है, वो उसके नारीत्व की गरिमा के पतन की दास्तान कह रहा है...।
    झारखंड की बीजेपी की अच्छी-खासी रंगदार नेत्री रहीं हैं सीमा पात्रा। पतिदेव भी पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे हैं। अमूमन नेता और नेत्रियां अनपढ़ होते हैं, लेकिन सीमा पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन घमंड ने उसे जाहिल, गंवार से भी बदतर बना दिया है। उनकी नजर में गरीब की औकात शुन्य भी नहीं। सच का साथ देने वाले अपने ही बेटे को पागलखाने भिजवा चुकी सीमा पात्रा को अपने घर की आदिवासी नौकरानी का रहन-सहन तथा चेहरा-मोहरा पसंद नहीं था। वह जैसा चाहती थी नौकरानी सुनीता खाखा वैसा कर नहीं पाती थी। होना तो यह चाहिए था कि असंतुष्ट मालकिन नौकरानी की छुट्टी कर देती, लेकिन उसने तो हिंसक पशु की तरह उस पर जुल्म ढाने प्रारंभ कर दिए। उसे गरम सलाखों से जगह-जगह दागा गया। खाना-पीना तक बंद कर घर के अंधेरे कमरे में कैद करके रखने की दुष्टता के साथ-साथ बेहोश होने तक उसकी पिटायी तथा जीभ से मैला-कुचैला फर्श चटवाया गया। एक दिन तो डंडे से पीटते-पीटते उसके दांत तक तोड़ डाले। सीमा के बेटे ने अपनी मां के जंगलीपन का विरोध जताया, तो पागलखाने जाने की सज़ा पायी। सीमा पात्रा के संवेदनशील बेटे के दोस्त ने यदि लाठी, डंडों और लोहे की रॉड से बार-बार लहूलुहान की जाती रही सुनीता को अस्पताल में नहीं पहुंचाया होता तो इस नेत्री की वहशी दरिंदगी उजागर ही नहीं हो पाती। कालांतर में हो सकता है कि वह पार्टी में कोई उच्च पद पाते हुए विधायक और सांसद भी बन जाती। ऐसे कई मुखौटेधारी चेहरे राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बनाये हुए हैं और अपनी मनमानी कर रहे हैं।  
    पूरे विश्व में प्रसिद्ध अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर के निकट के बाजार में निहंगों ने एक युवक की किरपाण से काटकर हत्या कर दी। स्वर्ण मंदिर के पास एक अनजान युवक को तंबाखू का सेवन करते देख निहंग आग-बबूला हो गये और उसे मौत की सौगात दे दी। ध्यान रहे कि सिख समुदाय के बीच स्वभाव से आक्रमक और हथियार रखने वाले इस विशेष तबके के सिखों को निहंग सिख कहा जाता है। यौद्धा के रूप में भी इनकी विशेष पहचान रही है। युवक का नाम हरमनजीत सिंह है। अपना आपा खो चुके निहंगों ने स्वर्ण मंदिर के नजदीक नशा करने पर आपत्ति जतायी तो वाद-विवाद होने लगा। बात बढ़ती-बढ़ती हाथापाई तक जा पहुंची। युवक भी हट्टा-कट्टा था। उसके भारी पड़ने पर एक निहंग की पगड़ी भी उतर गई। फिर तो जैसे आग में पेट्रोल का छिड़काव हो गया। दहलाने वाले तलवारों के आतंकी हमले के बाद युवक छह घंटे तक सड़क किनारे पड़ा रहा। किसी राहगीर को उस पर रहम नहीं आया। अंतत: उसने वहीं पड़े-पड़े ही दम तोड़ दिया। यह हमारे आज के समाज का असली चेहरा है, जो देखकर भी अंधा बना रहना चाहता है। नाटक-नौटंकी करने में भी उसने महारत हासिल कर ली है। आंखें होने के बावजूद भी अंधे हुए लोगों को सचमुच के अंधों से इंसानियत का पाठ सीखने का वक्त आ गया है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित है काली बाड़ी चौक। इस चौराहे पर हमेशा भीड़ का सैलाब उमड़ता दिखायी देता है। इसी सैलाब में अक्सर दिख जाती हैं, एक दूसरे की मददगार वो तीन हिम्मती लड़कियां जो कॉलेज की छात्राएं हैं। इन तीनों के साथ कुदरत ने बड़ी बेइंसाफी की है। राधिका यादव जो हिस्ट्री में एमए कर रही है, वह तो पूरी तरह से नेत्रहीन है। राजनीति में एमए कर रही भूमिका को सिर्फ 20 प्रतिशत ही दिखता है। शुक्री डिग्री गर्ल्स कॉलेज में बीए फर्स्ट ईयर की छात्रा है उसकी भी दोनों आंखें अंधेरे की भेंट चढ़ चुकी हैं। तीनों नियमित साथ-साथ बस से काली बाड़ी चौक आती हैं और एक-दूसरे का हाथ थामे सड़क और चौराहा पार कर कॉलेज जाती हैं। उनके अपनत्व भरे जुड़ाव को देखकर अक्सर लोग उन्हें देखने के लिए खड़े हो जाते हैं। सवाल करने पर वे कहती हैं कि खून के रिश्ते ही सबकुछ नहीं होते। मन की आंखें अपने और बेगाने की पहचान कर लेती हैं। हम तीनों नेत्रहीन हैं, लेकिन कुदरत ने हमें एक-दूसरे से मिलाकर अटूट रिश्ते में बांध दिया है, जो इस जन्म में तो नहीं टूट सकता। हां, एक सच और जो हमारी समझ में आया है... वो है, इंसान के लिए आंखें ही सबकुछ नहीं होतीं। हमने भीड़ भरी इस दुनिया में बहुत से आंखों वाले ऐसे-ऐसे अंधे देखे हैं, जो दूसरों की मां-बहन की आबरू को लूटने के लिए हर मर्यादा को सूली पर लटका देते हैं। कई बार तो वासना के अंधेपन में अपनी बहू-बेटी तक को शिकार बनाने में भी संकोच नहीं करते।

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