Saturday, November 26, 2022

 दिल दहलाने वाला क्रूर सच

    संतरा नगरी नागपुर का रहने वाला था, भरत कालीचरण उर्फ अक्कु यादव। हवस का पुतला, जिसकी नस-नस में वहशियत और हैवानियत समायी हुई थी। जवानी की दहलीज पर पैर धरने से पहले ही उसने जुर्म की दुनिया में अपनी धाक जमा ली थी। जहां वह रहता था, वहीं उसने बलात्कारों और हत्याओं की झड़ी लगा दी। अपनी हवस मिटाने के लिए न तो उसने कभी उम्र देखी और ना ही समय का ध्यान रखा। उसकी अंधी वासना का शिकार बनने वाली महिलाओ में दस साल की बच्चियों से लेकर साठ-सत्तर वर्ष की नारियों तक का समावेश रहता था। जब भी वह अपने इलाके में निकलता तो युवतियां अपने घरों में कैद हो जातीं। माताएं अपनी बच्चियों को घरों में छिपा लेतीं। उसकी जिस महिला पर भी बुरी नज़र पड़ती, वह उसे अपना शिकार बना कर ही दम लेता। पहले तो वह बड़ी निर्दयता से उसकी अस्मत लूटता फिर हवस की आग ठंडी हो जाने पर उसकी राक्षसी क्रूरता के साथ हत्या कर देता। अपने शिकार को तड़पा-तड़पा कर मारने में उसे मनचाहे सुख और आनंद की अनुभूति होती थी। मासूम पोती के सामने दादी पर बलात्कार कर गुजरने वाले अक्कु यादव के अंतहीन गुनाहों की हर खबर खाकी वर्दीधारियों को थी, लेकिन कानून के अधिकांश रखवाले अंधे और बहरे बने हुए थे। कई पुलिस वाले उसके साथ बैठकर खाते-पीते, मौज मनाते और मनचाही रिश्वत की सौगात पाते थे। बलात्कार, डकैती, फिरौती, लूटपाट और खून की नदियां बहाने में माहिर अक्कु यह मान चुका था कि नागपुर की धरती पर उसका कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता। कानून-कायदे उसके लिए नहीं बने हैं। शहर के लोग उससे खौफ खाते हैं। वक्त पड़ने पर वह कई नेताओं के काम आता है और वे भी उसका साथ निभाते हैं। अक्कु की पहुंच और दहशत के चलते हद से ज्यादा त्रस्त और परेशान हो चुकी महिलाओं ने ही आखिरकार उससे हमेशा-हमेशा मुक्ति पाने की राह निकाल ली।
    वो 13 अगस्त 2004 की दोपहर थी, जब अक्कु को पुलिस के शाही संरक्षण में अदालत में पेश करने के लिए लाया गया था। अक्कु अपनी ही मस्ती में बेफिक्र और बेखौफ था। पुलिस वालों की छत्रछाया में काफी देर तक वह अपने शुभचिंतकों से बोलता-बतियाता रहा। घरवालों तथा अपने खास दोस्तों का हाल-चाल भी जाना। तभी एकाएक कोर्ट का गेट तोड़ लगभग 200 महिलाएं वहां आ पहुंची और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता अक्कु पर अंधाधुंध मिर्च पावडर और पत्थरों की बरसात होने लगी। हाथों में तीक्ष्ण हथियार लिए भीड़ देखते ही देखते उस पर टूट पड़ी। किसी ने उसके हाथ-पैर काटे तो किसी ने उसके गुप्तांग का ही सफाया कर अपना गुस्सा उतारा। उसके जिस्म पर तब तक चाकू, छुरियां घोंपी जाती रहीं, जब तक उसने अंतिम सांस नहीं ली। कुछ ही मिनटों में 32 वर्षीय खौफनाक हत्यारे, बलात्कारी का काम तमाम कर भीड़ वहां से चलती बनी। ‘अक्कु कांड’ ने शहर के गुंडे बदमाशों की आंखें खोल दीं। कुछ वर्ष तक अक्कु यादव की तरह गुंडई दिखाने वाला कोई नया चेहरा डर के मारे सामने नहीं आया। छोटे-मोटे बदमाश जरूर आतंक मचाते रहे। अक्कु की पागल कुत्ते की तरह की गई हत्या के ठीक 18 साल बाद फिर एक बदमाश ने जैसे ही सिर उठाया तो महिलाएं मौका पाते ही अपनी पर उतर आईं। वर्ष 2022 के नवंबर महीने में फिर एक नराधम भीड़ के हाथों कुत्ते की मौत मरने जा रहा था, लेकिन उसकी किस्मत अच्छी थी, बच गया। उन्तालीस वर्षीय बाल्या जनार्दन कई तरह के नशे करता। नशे में धुत होते ही वह नग्न हो जाता और राह चलती महिलाओं से अश्लील छेड़छाड़ करने लगता। उसके मुंह से बलात्कार की धमकियां और गंदी-गंदी गालियां फूटने लगतीं। पहले तो महिलाएं नजरअंदाज करती रहीं, लेकिन उसकी गुंडई नहीं थमी। वह भी अक्कु की तरह लड़कियों तथा औरतों के जिस्म पर गंदी निगाहें गढ़ाये रहता था। मौका पाते ही उन्हें दबोच भी लेता था। एक रात एमडी के नशे में जब वह एक 65 वर्षीय महिला के साथ अश्लील हरकतें करते हुए जबरदस्ती कर रहा था तभी महिलाओं की भीड़ ने उसे घेर लिया। इस भीड़ में कुछ ऐसी थीं, जिन्हें बाल्या अकसर परेशान करता रहता था। वे उसे सबक सिखाना चाहती थीं। आज उनके लिए अच्छा मौका था। सभी छिछोरे बाल्या की धुनाई में जुट गईं। इसी दौरान उसने अपने एक बदमाश नशेड़ी दोस्त को भी वहां बुला लिया था। भीड़ ने तो बाल्या के घर को भी फूंकने का इरादा कर लिया था। भीड़ में से ही जोर-जोर से आवाजें आने लगीं, ‘‘अब ज्यादा मत सोचो, इसका भी अब अक्कु जैसा हाल कर दो। यह भी कभी नहीं सुधरने वाला।’’ बाल्या को महिलाओं के हाथों बुरी तरह से पिटता देख उसका साथी वहां से भाग खड़ा हुआ। इसी दौरान किसी ने पुलिस तक खबर पहुंचा दी। पुलिस ने बड़ी मुश्किल से उसे गुस्सायी महिलाओं से मुक्त करवाया, जिससे एक और ‘अक्कु हत्याकांड’ होते-होते रह गया।
    भीड़ ने अच्छा किया, बुरा किया इस पर अपने-अपने मत हैं, लेकिन एक प्रश्न यह भी है कि जब कानून के रखवाले बिक जाएं और गुंडे-मवाली लोगों का जीना हराम कर दें, महिलाओं को अपनी इज्जत लुटती और खतरे में पड़ती नजर आने लगे तो वे क्या करें? यह तो हुई बाहर के अपराधियों की बात। बाहर के अपराधी दिख जाते हैं। जैसे-तैसे उन्हें सबक भी सिखा दिया जाता है, लेकिन घर के भीतर, अपनों की शर्मनाक अक्षम्य बर्बरता और वहशी दरिंदगी का क्या?
महाराष्ट्र की सांस्कृतिक नगरी पुणे की 12वीं कक्षा की छात्रा की आपबीती किसी भी संवेदनशील इंसान का माथा घुमा सकती है और इस सुलगते सवाल में उलझा सकती है कि क्या खून के रिश्ते इतनी नीचता और गंदगी भरे हो सकते हैं? यह किशोरी जब मात्र बारह-तेरह वर्ष की थी तब उसके 33 वर्षीय चाचा ने कई बार उस पर बलात्कार किया। किशोरी ने चाचा की काली करतूत के बारे में अपने 70 वर्षीय दादा को बड़े आहत मन से फफक-फफक कर बताया, तो उन्होंने भी अपने कपूत को डांटने-फटकारने की बजाय अपनी ही पोती से छेड़खानी और बलात्कार करना प्रारंभ कर दिया। तब किशोरी उत्तरप्रदेश में अध्ययनरत थी। उसी दौरान उसने चिट्ठी के माध्यम से अपने पिता को चाचा और दादा की हैवानियत की जानकारी दी, लेकिन उन्होंने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया। 2018 में उसने चाचा और दादा के घर को छोड़ा और पुणे अपने पिता के पास आ गई। बाप तो चाचा और दादा से भी बदतर नीच निकला। वह भी जब-तब बड़ी बेहयायी के साथ उसके शरीर से खेलने लगा। रिश्तों को शर्मसार कर देने वाली इस वहशियत का हाल ही में तब खुलासा हुआ जब किशोरी ने छह सालों से हो रहे यौन शोषण की जानकारी अपनी कॉलेज की यौन उत्पीड़न के मामले को देखने के लिए बनाई गई ‘विशाखा कमेटी’ को दी। अपना अथाह दर्द बयां करते वक्त एक बेटी रो रही थी और सुनने वाले भी बड़े गहरे सदमे में थे...।

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