Thursday, June 15, 2023

चुप रहने वालों को चिल्लाना भी आता है...

     देश के नागरिकों के आपसी व्यवहार से ही देश की अच्छी और बुरी छवि बनती है। एक-दूसरे के प्रति सद्भाव, आदर-सम्मान और समानता की सोच देश ही नहीं वहां के रहनेवालों का भी सम्मान बढ़ाती है। इससे देश की एकता का भी पता चलता है। हम देशवासी जब अमृत महोत्सव मना रहे हैं, भारत की तरक्की के गीत गा रहे हैं, तब धड़ाधड़ सुर्खियां पातीं दलितों पर अत्याचारों की खबरें उत्सव, महोत्सव की गरिमा को कमतर करते हुए यह भी कहे जा रही हैं कि, जब तक हर भारतवासी को अपने अंदाज से जीने, रहने, खाने, पीने और उत्सव मनाने की आजादी नहीं, तब तक कोई भी महोत्सव अधूरा है। बेहतरीन आकर्षक परिधान धारण करने, खाने-पीने, रहने, पाने-भोगने तथा देश में कहीं भी आने-जाने की सभी को आजादी है, लेकिन कुछ लोगों को सिर्फ अपनी खुशी सुहाती है। दूसरों को हंसते-मुस्कराते देखना भी उन्हें हर्गिज गवारा नहीं। वे इस सच को पूरी तरह से भूल गये हैं कि मनुष्य जन्म से नहीं, बल्कि कर्म से ऊंचा या नीचा होता है। 

    गुजरात के एक गांव में तथाकथित ‘उच्च जाति’ के कुछ लोगों ने एक दलित युवक को जब धूप के चश्मे और नये परिधान में देखा तो वे उसपर यह कहते हुए भूखे शेर की तरह टूट पड़े कि, तू आजकल बहुत ऊंची उड़ान भर रहा है। तेरे पर काटने ही पड़ेंगे। उनके हाथ में लाठियां थीं और जुबान पर गंदी-गंदी गालियां। अपने बेटे को पिटता देख मां बचाने के लिए दौड़ी-दौड़ी आई तो उसे भी निर्दयता से मर्यादाहीन होकर मारा गया तथा जिस्म से कपड़े तार-तार कर दिए गए।

    उत्तर प्रदेश के शहर अमेठी में दलित समाज के तीन नाबालिग बच्चों को बिजली के खम्भे से बांधकर कू्ररता के साथ पीटा गया। बच्चों को बचाने-छुड़वाने की बजाय वहां मौजूद लोग तमाशबीन बन म़जा लेते रहे। किसी को भी बच्चों पर किंचित रहम नहीं आया। बिजली के खंभे का करंट बच्चों की जान भी ले सकता था। इन बच्चों पर एसीसी सीमेंट फैक्टरी से स्क्रैप चोरी करने का आरोप था। 13 से 15 वर्ष के इन बच्चों को पुलिस के हवाले करने की बजाय उनपर ऐसी तालीबानी क्रूरता और गुंडागर्दी इसलिए बरपी, क्यूंकि वे गरीब, दलित और शोषित हैं? बच्चों के मां-बाप ने अपने बच्चों की गलती स्वीकार कर माफी भी मांग ली, लेकिन ठेकेदार के लठैतों का मन नहीं पसीजा। महाराष्ट्र के एक गांव में एक 24 वर्षीय दलित युवक को पीट-पीटकर मार डाला गया। हत्यारे गांव में उसके द्वारा बढ़-चढ़करअंबेडकर जयंती का आयोजन करने से गुस्साये थे। इसी तरह से मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के छतरपुर इलाके में शादी के अवसर पर घोड़े पर सवार एक दलित युवक पर पथराव करने की खबर ने हमारे यहां के समाज का बदरंग चेहरा दिखा दिया। यूं तो देशभर में दलितों पर अमानवीय कहर ढाने की खबरें आती रहती हैं, लेकिन उत्तरप्रदेश, राजस्थान और बिहार तो इस मामले में खासे बदनाम हैं, जहां कुछ शैतान जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देते हुए सतत अशांति फैलाने में लगे रहते हैं। इन मदमस्त घमंडियों को दलितों का शानो-शौकत के साथ रहना, चलना, गाना, तरक्की कर सीना तानकर चलना बिलकुल अच्छा नहीं लगता। कई पढ़े-लिखे विद्वान किस्म के लोग भी दलितों को अपनी जूती के नीचे रखने की नीच हरकतें करते देखे जा सकते हैं। उत्तरप्रदेश के महोबा गांव में एक दलित छात्रा ने विद्यालय में रखे घड़े का पानी क्या पी लिया कि उसे अपमानित कर स्कूल से भगा दिया गया। रोती-बिलखती छात्रा ने घर जाकर जब पिता को शिक्षक की बदसलूकी की जानकारी दी तो पिता विद्यालय पहुंचे तो शिक्षक ने उनसे भी अभद्रता करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्हें जातिसूचक गालियां देकर वहां से भगा दिया गया। स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के मन-मस्तिष्क में इन ऊंचे लोगों के द्वारा कैसे-कैसे विष बोए जा रहे हैं उसकी जीती जागती हकीकत है यह खबर, जिसमें बताया गया है उच्च जाति के बच्चों ने स्कूल में खाना बनाने वाली दलित औरत के हाथ का बना खाना खाने से स्पष्ट इनकार कर दिया। यह खबर भी बहुतों ने जरूर पढ़ी होगी कि तामिलनाडु में एक ग्राम परिषद की बैठक के दौरान दलित महिला पंचायत अध्यक्ष और ग्राम परिषद की वार्ड सदस्य को जमीन पर बैठने के लिए मजबूर कर दिया गया, जबकि अन्य सदस्यों के लिए आन-बान और शान के साथ कुर्सियां उपलब्ध थीं।

    आजादी के इतने वर्षों के बाद भी अपने देश में कई गांव, कस्बे ऐसे हैं, जहां पर दलितों को सार्वजनिक कुंओं पर पानी नहीं भरने दिया जाता। देश के कई मंदिरों में उनके लिए जाना सख्त मना है। उन्हें सम्मानजनक नौकरी देने में भी आना-कानी की जाती है। भारतवर्ष के प्रधानमंत्री ने बड़े आहत मन से कहा है कि हमारे दलित भाई-बहनों पर हो रहे अत्याचार के मामलों के चलते उनका सिर शर्म से झुक जाता है। दरअसल, कुछ ऊंची जाति के लोग बदलते वक्त को स्वीकारने को तैयार नहीं। अब उन्हें कौन बताये और समझाये कि जमाना बड़ी तेजी से बदल रहा है, जिन्हें सहना आता है, उन्हें सीना तानकर कहना और विरोध करना भी आता है। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद दलितों पर हो रहे हमलों को लेकर कहते हैं कि दलितों में आ रही जागरुकता और मजबूती कुछ लोगों को बर्दाश्त नहीं हो रही। पहले दलितों पर हिंसक हमले नहीं होते थे। छोटी-मोटी मारपीट की घटनाएं होती रहती थीं, लेकिन पिछले 10-15 सालों से हिंसक वारदातें बेतहाशा बढ़ी हैं। जैसे-जैसे दलितों की तरक्की हो रही है, वैसे-वैसे उनपर हमले बढ़ रहे हैं। यह कानूनी समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक समस्या है। समाज के लोगों को खुले मन के साथ इस पर चिंतन-मनन करना चाहिए।

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