Thursday, June 29, 2023

ज़ख्म जो भरे नहीं

    हवाई जहाज अपनी जगह हैं। रेलगाड़ी अपनी जगह। भारत देश के अनेकों लोगों के लिए हवाई यात्रा आज भी किसी सपने जैसी ही है। शायद ही ऐसा कोई देशवासी होगा, जिसने रेल यात्रा न की हो। हर किसी के लिए सहज और सुगम भारतीय रेल कई सक्षम लोगों को भी जहाजों की तुलना में बेहतर प्रतीत होती है। रेल में आरामदायक यात्रा का जो सुख मिलता है, वो हवाई जहाज में कहां नसीब होता है। जहाज से यात्रा करने पर भले ही समय की बचत हो जाती है, लेकिन यात्रा का असली मजा तो दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्कों में से एक भारतीय रेल ही देती है। गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को यात्रा का सुखद अहसास कराने वाली रेलें जब दुर्घटनाग्रस्त हो जाती हैं, तब बहुत डराती हैं। हर किसी का मन घबराने लगता है। 

    अभी हाल ही में ओडिशा के बालेश्वर में हुए भयावह रेल हादसे में लगभग 300 लोगों की मृत्यु तथा अनेकों के घायल होने के पीड़ादायी सच ने रेलयात्रियों को चिंतित कर दिया। ऐसा भी नहीं कि देश में इससे पहले कोई रेल दुर्घटना न हुई हो। लेकिन, जब बुलेट ट्रेन की बात होती है। वंदे भारत ट्रेन सफलता पूर्वक चलायी जा रही है, तब रेल यात्रा का सुरक्षित न होना भयभीत तो करता ही है। रेलवे की लापरवाही, पुरानी पटरियों की जर्जरता और सुरक्षा साधनों का अभाव जिस कमजोरी की ओर इशारा करता है उसकी अनदेखी अपने देश में वर्षों से होती चली आ रही है। भारत में हुई रेल दुर्घटनाओं के इतिहास को देखते हुए कारणों की जांच-परख कर जो सावधानी बरती जानी चाहिए थी, उसके अभाव का प्रतिफल है यह रेल दुर्घटना। जब भी कोई रेल दुर्घटना होती है तब मंत्रियों, संत्रियों को अतीत की गलतियों का ख्याल आता है। इससे पहले शासन और प्रशासन के महारथी बेफिक्र रहते हैं। 

    बीते 15 साल में भारतीय रेल में 10 रेलमंत्री बदल गए, लेकिन रेल हादसों की तस्वीर लगभग जस की तस है। फिर भी अपनी पीठ थपथपाने के लिए सत्ताधीश यह दावे करने से नहीं सकुचाते कि अब तो रेल दुर्घटनाएं नहीं के बराबर होती हैं। विपक्षी ही ज्यादा शोर मचाते हैं। यह भी हैरत की बात है कि हर रेल हादसे में अधिकांश वही यात्री मौत के हवाले होते हैं, जो जनरल बोगी में सफर कर रहे होते हैं। अनेकों यात्रियों की तो पहचान ही नहीं हो पाती। बेचारे लावारिस मौत मर जाते हैं। रेलों के आपस में टकराने से होने वाली जानलेवा दुर्घटनाओं के अलावा अपने देश में इंसानी भूल, हड़बड़ी और भागादौड़ी की वजह से लोगों की जानें जाने का सिलसिला बना रहता है। अचानक प्लेटफार्म बदलने की वजह से मची भगदड़ से लोगों के मरने तथा घायल होने के समाचारों से भी हम सब वाकिफ हैं। अभी हाल ही में नोएडा में एक चलती मालगाड़ी की छत पर दो युवक मालगाड़ी पर स्टंट करते नज़र आए। दोनों कॉलेज के छात्र हैं। सोशल मीडिया पर पोस्ट करने और धड़ाधड़ लाइक पाने के इरादे से दोनों वीडियो (रील) बना रहे थे। बीस-इक्कीस साल के इन युवकों ने अपनी मांसपेशियां दिखाने के लिए शर्ट उतार फेंकी थी और तेजी से दौड़ती गाड़ी की छत पर झूम-झूम कर ऐसे नाच रहे थे, जैसे किसी पब या शादी समारोह में मौजमस्ती कर रहे हों। वक्त से पहले श्मशान घाट पहुंचाने वाले उनके इस खतरनाक तमाशे ने मुझे उस दुर्घटना की याद दिला दी, जो अक्टूबर, 2018 में अमृतसर में इंसानी लापरवाही की वजह से घटी थी। अमृतसर में दशहरा के त्योहार के अवसर पर हजारों लोग पटरियों पर जमा हो गए थे। दरअसल, जिस मैदान में रावण दहन का कार्यक्रम आयोजित था, उसी के निकट स्थित थीं ये रेल की पटरियां, जहां से धड़ाधड़ गाड़ियां आती-जाती रहती थीं। भीड़ को टिकाये रखने के लिए जब नेताओं के भाषण का दौर चल रहा था, तभी इस बीच आंधी की तरह दौड़ती एक ट्रेन पटरियों पर जमा भीड़ को चीरते हुए गुजरी, जिससे लगभग 60 जीते-जागते इंसान लाशों में तब्दील हो गए और अनेकों स्त्री-पुरुष और बच्चे घायल हो गए। 

    देश की सबसे भयावह रेल दुर्घटनाओं में से एक ओडिशा के बालेश्वर में हुई रेल दुर्घटना के तीसरे दिन ओडिशा के जाजपुर रेलवे स्टेशन पर छह मजदूर अपनी ही गलती की वजह से मालगाड़ी की चपेट में आ गए। मूसलाधार बारिश से बचने के लिए यह श्रमिक किसी सुरक्षित स्थान पर जाने की बजाय मालगाड़ी के नीचे जाकर बैठ गए। तभी थोड़ी देर के बाद गाड़ी चल पड़ी और उन्हें निकलने का मौका भी नहीं मिल पाया और अपनी जान से हाथ धो बैठे। ओडिशा में कोरोमंडल एक्सप्रेस हादसे के बाद जो यात्री किसी तरह से बच गए उनके अब भी बड़े बुरे हाल हैं। ट्रेन हादसे के हफ्तों बाद भी परिजनों को अपनों के शव नहीं मिल पाए हैं। उन्हें शव को पाने के लिए दर-दर भटकने को विवश होना पड़ रहा है। बिहार के बेगुसराय जिले के बारी गांव की बसंती देवी अपने पति के शव के लिए कई दिनों से एम्स के पास एक सुनसान इलाके में स्थित गेस्ट हाउस में डेरा डाले है। उसके पति मजदूरी करते थे। उन्हीं की बदौलत भरा-पूरा घर चलता था। नितांत अकेली पड़ चुकी पांच बच्चों की इस मां की समझ में नहीं आ रहा कि वह अब कैसे गुजारा करेगी। ऐसी ही स्थिति पूर्णिया के नारायण की है, जिसे अपने उस पोते के शव का इंतजार है, जो नौकरी की तलाश में कोरोमंडल एक्सप्रेस से चेन्नई जा रहा था। अपनों को हमेशा-हमेशा के लिए खो चुके ऐसे और भी कई बदनसीब हैं, जिनकी जिन्दगी रो-रो कर कटने वाली है। उनके जख्मों का भर पाना कतई आसान नहीं। यह भी अत्यंत पीड़ादायी हकीकत है कि अभी तक कई शवों को पहचाना नहीं जा सका है। वे कौन थे, कहां से आये थे, शायद ही इसका कभी पता चल सके। अस्पताल में भर्ती कुछ घायलों को इतना गहरा सदमा लगा है, जिससे वे जब- तब चीखने लगते हैं। कोई हंसने तो कोई फूट-फूट कर रोने लगता है। डॉक्टरों का कहना है कि इन्हें स्वाभाविक स्थिति में लौटाने के लिए भरसक प्रयास हो रहे हैं फिर भी समय तो लगेगा ही...।

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