Thursday, August 10, 2023

धर्म

चित्र 1 - मेरे मन में अधिकांश माता-पिता को लेकर अक्सर विचार आता है कि विधाता ने उन्हें जिस मिट्टी से बनाया है वो यकीनन आखिर तक अपनी मजबूती नहीं खोती। चट्टानों की तरह मजबूत बन अपनी औलादों के लिए मर मिटने को तत्पर रहती है, लेकिन वहीं अनेकों संतानें सब कुछ पा लेने के बाद अहसान फरामोश क्यों हो जाती हैं? उनका खून पानी क्यों हो जाता है? अपनों के पराये होने के कटु सच से मैं जब-जब रूबरू होता हूं तो यह भी सोचता हूं अपने बच्चों के घातक रंग-ढंग को देखने के बाद भी मां-बाप के होश ठिकाने क्यों नहीं आते? वो उन्हीं राहों पर क्यों चलते रहना चाहते हैं, जिन पर अपनों ने ही कांटे बिछाये। यवतमाल में लावारिस हालत में मिले एक 72 वर्षीय शख्स को नागपुर के मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए लाया गया। जांच में पता चला कि उसे अंतिम चरण का मुख कैंसर है। उसका अब बचना मुमकिन नहीं। सामाजिक कार्यकर्ता इंद्राणी पवार ने उन्हें मेडिकल कॉलेज के निकट स्थित विख्यात सेवाभावी संस्था, ‘स्नेहांचल’ पहुंचा दिया। शहर के परोपकारी जनसेवियों के द्वारा चलाये जा रहे स्नेहांचल में उन मरीजों की देखरेख और सेवा की जाती है, जिनका बचना लगभग मुश्किल होता है। यहां पर वो बेसहारा भी आश्रय पाते हैं, जिनके अपने उन्हें मरने के लिए छोड़ देते हैं। यवतमाल में भिखारी की हालत में मिले कैंसर पीड़ित बुजुर्ग के तीन बेटे और दो बेटियां हैं। पत्नी भी जीवित है। चल फिर सकती है। मरने से पहले उसने अपने सभी से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी। परिवार के सभी सदस्यों को खबर भेजी गई। एक बार आकर मिल लो। किसी का भी दिल नहीं पसीजा। यहां तक कि उनकी मृत देह लेने से भी मना कर दिया गया। अंतत: समाजसेवकों ने ही उनका विधिवत दाह संस्कार कर मानवता का धर्म निभाया। 

चित्र 2 - शहर में कई ऐसे कपूत हैं, जो अपने वृद्ध मां-बाप का तिरस्कार कर अपनी ही मौजमस्ती की दुनिया में खोये हैं। जिन माता-पिता ने खून-पसीना बहाकर उनका पालन-पोषण किया, पढ़ाया-लिखाया और कमाने लायक बनाया, उन्हीं को पेट भर खाने के लिए तरसा रहे हैं। उन्हें धक्के मारकर उन्हीं के घर से बाहर खदेड़ रहे हैं। जब तक वे कमा कर खिला रहे थे तब तक अच्छे थे। अब फालतू का सामान लगने लगे हैं। तेजी से विकास पथ पर दौड़ते शहर में वरिष्ठ नागरिकों की ऐसी अनेक शिकायतों का अंबार लगा है। बहू-बेटों, बेटियों के साथ-साथ नाती-पोतों के द्वारा उनके जीवन को नर्क बनाये जाने की खबरों से अखबार भरे नजर आते हैं। अपने उम्रदराज जन्मदाताओं को दाने-दाने के लिए तरसाने वाली शैतान औलादें उन्हें मारने-पीटने से भी नहीं सकुचा रही हैं। जिन बुजुर्गों के पास अपनी जमा पूंजी है, सरकारी पेंशन मिल रही है उनके हालात तो कुछ ठीक-ठाक हैं, लेकिन जिन्होंने इनकी परवरिश में सब कुछ लुटा दिया, उन्हें भिखारी बनाकर रख दिया गया है। जगमगाते शहर में ऐसे कई विजयपत सिंघानिया हैं, जिन्होंने पुत्रमोह के वशीभूत होकर अपने जीते जी अपना तमाम कारोबार और जमीन जायदाद पुत्रों के नाम कर दी और अब लोगों को अपनी व्यथा-कथा सुनाते भटक रहे हैं। वरिष्ठ नागरिकों की शिकायतों और समस्याओं के निवारण के लिए केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय के द्वारा प्रारंभ की गई हेल्पलाइन में पिछले कुछ महीनों से घर, परिवार में अपनों के द्वारा तरह-तरह से प्रताड़ित किये जाने वाले बुजुर्गों की तादाद में जबरदस्त इजाफा देखा जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में शहर में माता-पिता, दादा, दादी आदि पर बेतहाशा जुल्म ढाने के मामले सतत सामने आ रहे हैं। यह भी सच है बुढ़ापे के हाथों मिली लाचारी के चलते सभी हेल्पलाइन पर अपना दुखड़ा सुनाने नहीं आ पाते। लोग क्या कहेंगे यह चिंता भी उनके कदम रोक देती है। उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी मंजूर हैं, लेकिन अपनी नालायक औलादों को बेनकाब करना मंजूर नहीं।

चित्र 3 - सरकारी नौकरी से रिटायर हुए अशोक वर्मा और उनकी पत्नी को तब बहुत तीखा झटका लगा जब उनके दोनों बेटों ने फोन उठाना ही बंद कर दिया। इस स्वस्थ बुजुर्ग दंपत्ति को मोटी पेंशन मिलती है। दोनों ने अपने बेटों की अच्छी तरह से परवरिश करने में कोई कमी नहीं की थी। उन्हें उच्च शिक्षा दिलवाने के लिए नामी-गिरामी कॉलेजों को चुना। लाखों रुपये का डोनेशन देने में पीछे नहीं रहे। बड़ा बेटा अमेरिका में डॉक्टर है। छोटा सिंगापुर में चार्टर्ड एकाउंटेंट है। दोनों की शादी में भी उन्होंने शाही खर्चा किया। अपने पैरों पर खड़े होने के कुछ वर्षों बाद ही बेटों ने गिरगिट की तरह रंग बदल लिया। पहले तो इस दंपत्ति का इस ओर ध्यान नहीं गया, लेकिन जब बेटों-बहुओं ने अपमानजनक तरीके से उन्हें नजरअंदाज करना प्रारंभ कर दिया तो उनको सच का अहसास हो गया। श्रीमती वर्मा के लिए तो बच्चों का अभद्र व्यवहार असहनीय होता चला गया। वर्मा जी उन्हें समझाते हुए कहते, उनकी अपनी दुनिया है। उन्हें उससे जब फुर्सत नहीं तो तुम क्यों दुखी होती हो। वर्मा जी के छोटे भाई की पत्नी के देहावसान की खबर भिजवाये जाने के बावजूद बहू-बेटे नहीं आए तो वर्मा जी ने अपना मन पक्का कर लिया। ऐसी निर्मोही लापरवाह औलाद की ऐसी की तैसी। जब उन्हें हमारी फिक्र नहीं तो हम क्यों उन्हें याद करें। दोनों  अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और परिचितों में मस्त रहने लगे। 

अभी हाल ही में वर्मा परिवार के पड़ोस में रहने वाले एक सत्तर वर्षीय वृद्ध पिता पर उनके बेटे-बहू ने हाथ उठा दिया, तो वर्मा जी तुरंत पड़ोसी के घर जा पहुंचे और पिता पर हाथ उठाने वाले शैतान बेटे की वो धुनाई की, कि भीड़ जमा हो गयी। पड़ोसियों ने वर्मा जी को यदि रोका नहीं होता तो वे उसको अधमरा करके ही दम लेते। वर्मा जी की पत्नी ने इससे पहले कभी उन्हें इतने गुस्से में नहीं देखा था। पड़ोसियों के लिए भी स्तब्ध कर देने वाली घटना थी। श्रीमती के बहुत कुरेदने पर वर्मा जी ने अपने दिल की बात इन शब्दों में कही, ‘‘मैं इन अहसान फरामोश बेटे-बहू को बहुत दिनों से अपने माता-पिता को प्रताड़ित करते देखता चला आ रहा था। पहले भी यह दोनों बाप की पिटायी कर चुके हैं, जिसने बेटे के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। इस नालायक ने अपने नेक पिता पर हाथ उठाने से पहले उनके त्याग के बारे में जरा भी नहीं सोचा। इसकी बीवी भी कितनी टुच्ची है जो पति को रोकने-समझाने की बजाय दरिंदगी पर उतर आयी। यह दोनों तो अपने बुजुर्ग माता-पिता को धक्के मारकर घर से बाहर कर देना चाहते हैं, लेकिन मैं ऐसा कदापि नहीं होने दूंगा। यह आजकल की बदतमीज नालायक औलादें कितनी खुदगर्ज हो गई हैं! जिन्होंने कभी उंगली पकड़कर चलना सिखाया उन्हीं को अपाहिज बनाने पर आमादा हैं। इन दुष्टों को यह भी याद नहीं कि जिन मां-बाप को आज रोने-बिलखने के लिए विवश कर रहे हो उन्हीं ने तुम्हें अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाया। आज जब वे उम्र की उस दहलीज पर हैं, जहां उन्हें तुम्हारे साथ और सहारे की जरूरत है, तब उन्हें अन्न के एक-एक दाने के लिए तरसा रहे हो। उन्हीं के बनाये घर को छीन कर उन्हें बेघर करने का अक्षम्य पाप करने की दुष्टता पर उतर आये हो? यह दरिंदगी मुझसे तो नहीं देखी जाती। मैंने निश्चय कर लिया है कि किसी भी असहाय माता-पिता के साथ अन्याय नहीं होने दूंगा। अपने आसपास किसी भी नमकहराम को अपने जन्मदाता पर जुल्म ढाते देखूंगा तो शांत नहीं बैठूंगा। पहले प्यार से... फिर दूसरे तरीके से उसके होश ठिकाने लगाकर ही दम लूंगा। जब तक मेरे हाथ पैर में दम रहेगा तब तक अपने इंसान होने के धर्म को निभाने में पीछे नहीं रहूंगा।

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