Thursday, August 31, 2023

अपनी हत्या

    अपनी जान को हथेली पर लेकर चलने तथा किसी भी मुश्किल से सीना तान कर लड़ने वाले जांबाजों के पंजाब में एक उम्रदराज नेत्रहीन मां के तीनों बेटे कम उम्र में एक-एक कर चल बसे। उनकी मौत किसी बीमारी से नहीं, अत्याधिक शराब पीने से हुई। अपने जिगर के टुकड़ों से जुदा हो जाने पर ममतामयी मां का दर्द इन शब्दों में छलका, ‘‘काश! मेरी आंखों में रोशनी होती। मैं अपने बच्चों को शराब के नशे में गर्क होने से रोकती-टोकती तो वे जरूर बच जाते। उन्हें कोई समझाने वाला नहीं था, इसलिए उन्होंने मौत के नशे की घातक राह चुनकर अपना खात्मा कर लिया।’’ अखबार के किसी कोने में छपी इस खबर को पढ़ने के पश्चात मैं लगातार सोचता रहा कि काश! ऐसा हो पाता। तभी एक विचार यह भी आया कि जो लाखों बच्चे, किशोर तथा युवा शराबी हो गये हैं, क्या उन्हें मां-बाप ने नहीं बताया होगा कि शराब उनकी सेहत के लिए हानिकारक है। इससे बच कर रहो...। सच तो यह है कि कोई भी माता-पिता अपनी संतान को नशे की लत का शिकार होते नहीं देख सकते।

    पंजाब में पिछले कई वर्षों से शराब तथा अन्य नशों ने मौत का तांडव मचा रखा है। औसतन हर दूसरे दिन नशे से एक मौत हो रही है। स्कूल की उम्र के कई बच्चों ने शराब पीनी प्रारंभ कर दी है। भाईयों की देखा-देखी बहनें भी शराब चखने लगी हैं। हैरान परेशान अभिभावकों, परिजनों की नींदें उड़ चुकी हैं। उन्हें बुरे-बुरे सपने सताते हैं। वे सरकार से हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं कि नशों के सहज-सुलभ बाजारों पर पाबंदी लगाकर उनकी औलादों को बचा लो। बार्डर से आ रहे नशों की गांव-शहरों में होम डिलीवरी हो रही है। बड़े तो बड़े, मासूम बच्चे भी तबाह हो रहे हैं। नशा उन्हें कहीं का नहीं रहने दे रहा है। इसकी चपेट में आकर बर्बाद होने वालों की लिस्ट दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। नशा मुक्ति केंद्र नशेड़ियों से भरे पड़े हैं। जिन बच्चों से अथाह उम्मीदें थीं। जिन्हें मां-बाप डॉक्टर, इंजीनियर, लेक्चरर, उद्योगपति, व्यापारी, नेशनल खिलाड़ी आदि बनते देखना चाहते थे, उन्हें नशे ने भटका दिया है। उनके दिल-दिमाग और जिस्म नकारा हो गये हैं। अत्याधिक नशे ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। कई बेटों की अच्छी खासी नौकरी लगी, व्यापार, कारोबार में भी उनकी रूचि जगी, लेकिन नशे के गुलाम होने के कारण शादी होते-होते तक मौत हो गयी। उनसे ब्याही गई लड़कियों को बड़े दुर्दिन देखने पड़ रहे हैं। जिन्हें अच्छी किस्मत से कोई सहारा मिलता है, तो वह संभल जाती हैं। बाकी को तो जैसे किसी घोर अपराध की सज़ा भुगतनी पड़ रही है, जो उन्होंने किया ही नहीं। 

    भारत में नशे की महामारी को लेकर अत्यंत चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर कराए गए एक सर्वे में पता चला है कि 10 से 75 साल आयु वर्ग की आबादी में नशा करने वालों की संख्या 37 करोड़ के पार चली गई है। यह संख्या दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आबादी अमेरिका से अधिक है। यह हकीकत चौंकाती और दिल दहलाती है कि देश में कई शराब पीने वाले ऐसे हैं, जो इसके बिना नहीं रह सकते। सुबह-शाम उन्हें किसी भी हालत में शराब चाहिए। वैध हो या अवैध उन्हें तो बस पीने से मतलब है। यह सच भी कम हैरान करने वाला नहीं है कि भारत में शराब पीने वालों की संख्या 16 करोड़ है। इतनी ही रूस की आबादी है। आज देश का कोई भी शहर अखंड नशेड़ियों से अछूता नहीं। नागपुर जैसे तीस-पैंतीस लाख की जनसंख्या वाले शहर में धड़ल्ले से हुक्का बार चल रहे है। स्मैक, ब्राउन शुगर और हेरोइन आदि आसानी से उपलब्ध है। इस शहर में जगह-जगह जितने बीयर बार और शराब की दुकाने हैं उतनी और कहीं नहीं हैं। स्कूल कॉलेजों के लड़के-लड़कियां नशों की चकाचौंध में पढ़ना-लिखना भूल रहे हैं। माता-पिता बच्चों की पढ़ाई पर अपनी औकात से ज्यादा खर्च करते हैं और उनकी औलादें नालायक साबित हो रही हैं।

    सरकारों को शराब बेचकर करोड़ों का राजस्व मिलता है, आबकारी विभाग पलता है। पुलिस चांदी काटती है और हलाल होते हैं अभिभावक, जिनके खून-पसीने की कमायी नशे की भेंट चढ़ रही है। कुछ प्रदेशों में कहने को शराब बंदी है, लेकिन कितनी है उसके बारे में अब क्या कहें! शराब के तस्करों की तिजोरियों में वो धन जा रहा है, जिसे सरकार की तिजोरी में जाना चाहिए। बिहार में बड़े तामझाम के साथ शराब बंदी की गई, लेकिन पड़ोसी राज्यों से धड़ल्ले से शराब आती है और नशेड़ियों की प्यास बुझाती है। शराब के तस्कर एक से एक तरीके आजमाते हुए बेखौफ शराब खपाने में लगे हैं। कभी मरीजों के लिए उपयोग में लायी जाने वाली एंबुलेंस में शराब की पेटियां पकड़ी जाती हैं तो कभी सैनिटरी पैड के बीच में लाखों रुपये की शराब की बरामदी की खबरें पढ़ने में आती हैं। नकली शराब पीकर मरने वालों की खबरें विपक्षी दलों के नेताओं को सरकार पर निशाना साधने के अवसर उपलब्ध कराती हैं। बिहार में 2016 में शराबबंदी लागू की गई थी। उसके बाद कितने लोग नकली शराब पीने के बाद चल बसे, हमेशा-हमेशा के लिए अंधे हो गये इसका सटीक आकड़ा सरकार नहीं बताती। शासन तथा प्रशासन अंधा होने की कला में पारंगत हैं। उनके इसी अंधेपन के चलते बिहार में कई बेरोजगार युवक अवैध शराब को यहां से वहां पहुंचाने के काम में लगे हैं। वे जानते हैं कि, यह अपराध है, लेकिन फिर भी किये जा रहे हैं। कर्तव्यपरायण खाकी वर्दी तस्करों के हाथों के खिलौना बने गरीबों को दबोचकर संतुष्ट है। अवैध शराब के कारोबार में लगे बड़े मगरमच्छों तक कानून पहुंच ही नहीं पा रहा है। रिश्वत ने इन्हें इस कदर अंधा होने को विवश कर दिया है कि इन्हें शराब की होम डिलिवरी तक नहीं दिखती। लोग तस्करों की चालाकी पर हैरान हैं। शराब के महंगे ब्रैंड आजकल टेट्रा पैक में बड़ी आसानी से हर शराबी को उपलब्ध हैं। शीशे की बोतलों की तरह इनसे न कोई आवाज होती हैं और न ही टूटने-फूटने का खतरा।

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