Thursday, August 17, 2023

पाठशाला

    हमारी इसी दुनिया में तरह-तरह के लोग हैं। कुदरत का नियम है जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे। कांटे बोने पर फूल कभी नहीं मिलते। इसी तरह से जीवन को जीने के भी नियम-कायदे हैं। तौर-तरीके हैं। कुछ लोग जीवन को खेल समझते हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि हर खेल के भी कुछ उसूल होते हैं। अनुशासन होता है। लापरवाही से खेलने वालों को मैदान से बाहर होने में देरी नहीं लगती। सावधानी और दूरदर्शिता की डोर से बंधे खिलाड़ी खुद तो विजयी होते ही हैं दूसरों को भी प्रेरणा देते हैं। नागपुर की निवासी पद्मादेवी सुराना ने कुछ ही दिन पूर्व अपना 103वां जन्मदिन मनाया। आज के दौर में जब कई लोग जीना ही भूल चुके हैं, कई तरह की बीमारियां और चुनौतियां उन्हें डराती रहती हैं, तब इतनी उम्रदराज महिला का यह कहना है कि, ‘अभी तो मेरी और जीने की तमन्ना है। उम्र तो महज एक नंबर है।’ आश्चर्यचकित करने के साथ-साथ उनके प्रति मान-सम्मान की भावना को जगाता है। 4 अगस्त 1920 में जन्मी पद्मादेवी सुराना बचपन से ही अपने रहन-सहन, खान-पान को लेकर अनुशासित रही हैं। छठी कक्षा तक पढ़ीं पद्मा हिंदी और मराठी के साथ अंग्रेजी में भी दक्ष हैं। 103 वर्ष की होने के बावजूद युवाओं की तरह साफ शब्दों में बातचीत करती हैं। वे बच्चों को हमेशा प्रेरित करती रहती हैं कि पहले पढ़ाई करो, फिर मेहनत और ईमानदारी से पैसा कमाओ। जिन्दगी को पूरे मन और ठाठ-बाट के साथ जीने वाले ऐसे सभी योद्धा किसी पाठशाला से कम नहीं। इस पाठशाला के गुरू को कोई दक्षिणा नहीं देनी पड़ती। जितना चाहो, उतना ले लो। ऐसे जीवंत प्रेरणा स्त्रोतों के होने के बावजूद भी कुछ लोग जीवन का मोल नहीं समझ पाते। दुनियादारी की मुश्किलें उनके होश उड़ा देती हैं और वे खुद के लिए बाधा बन जाते हैं। अभी हाल ही में देवदास, जोधा अकबर, लगान जैसी पचासों फिल्मों के लिए बड़े-बड़े सेट डिजाइन करने तथा कई फिल्मों में सशक्त अभिनय करने वाले विख्यात कलाकार नितिन देसाई ने खुदकुशी कर अपने असंख्य चाहने वालो को चौंका और रूला दिया। उनकी मृत्यु के बाद उन्हें अंतिम विदायी देने, श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एकत्रित हुए विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गजों को देखकर उनकी लोकप्रियता का पता चल रहा था। परिचितों के साथ-साथ बेगानों को भी गमगीन करने वाली इस खुदकुशी ने फिर कई सवाल खड़े कर दिये, वहीं परिवारजनों को तो जीते जी ही मार डाला। सभी उनसे बेहद प्यार करते थे। बच्चों को अपने पिता पर नाज़ था। उन्होंने कल्पना नहीं की थी कि बेतहाशा कर्ज उनको मरने पर विवश कर देगा। बड़ी मेहनत से खड़े किये स्टुडियो के छिन जाने का भय उनकी जान ले लेगा। वे तो अपने जन्मदाता को लड़ाकू समझते थे, जिसने कई चुनौतियों का डट कर सामना किया था। उनका देश और दुनिया में नाम था। भारत सरकार भी उन्हें पुरस्कृत कर चुकी थी। महाराष्ट्र सरकार ने भी उनकी कला की प्रशंसा करते हुए कई बार सम्मानित किया था। मायानगरी के सभी फिल्म निर्माता, अभिनेता, अभिनेत्रियां उनके कद्रदान थे। ऐसी नामी-गिरामी शख्सियत की खुदकुशी पर उनकी पुत्री को मीडिया से हाथ जोड़कर अनुरोध करना पड़ा कि कृपया मेरे पिताजी की मौत का तमाशा ना बनाएं। 

    सच तो यह है कि इस देश में और भी कई व्यापारी, उद्योगपति, बड़े-बड़े कारोबारी हैं, जिनपर अरबों-खरबों का कर्ज है, लेकिन उन्होंने तो ऐसी कायराना राह पकड़कर अपना तमाशा नहीं बनाया। उनके जीवन का बस यही मूलमंत्र हैं, ‘जान है तो जहान है’। जब तक जिन्दा हैं तब तक हार नहीं मानेंगे। एक बार गिर गये तो क्या हुआ। फिर उठ खड़े होंगे। बैंकों तथा साहूकारों का कर्जा भी उतर जाएगा। संपत्तियां भी फिर से खड़ी हो जाएंगी। अपने अथाह परिश्रम और सूझबूझ की बदौलत उद्योगजगत में अचंभित करने वाली बुलंदियां हासिल करने वाले धीरूभाई अंबानी के दिवंगत होने के बाद उनके दोनों पुत्रों में अनबन के चलते बंटवारा हो गया था। बड़े भाई मुकेश और छोटे भाई अनिल के हिस्से में लगभग बराबर धन-दौलत, व्यापार और संपत्ति आयी, लेकिन कालांतर में मुकेश सफलता की अनंत ऊंचाइयों तक जा पहुंचे और अनिल अपने गलत निर्णयों के कारण लगातार घाटे के गर्त में समाते गये। बैंकों ने उनकी कई बड़ी-बड़ी सम्पत्तियां जब्त कर लीं। बदनामी भी कम नहीं हुई, लेकिन अनिल फिर भी अपना सफर इस उम्मीद के साथ जारी रखे हुए हैं कि आज नहीं तो कल बुरा वक्त जरूर बीतेगा। अच्छे हालातों की खुशियों तथा बुरे हालातों के गमों को सहना ही पड़ता है। यही जीवन की जगजाहिर रीत है।

    फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन, जिन्हें आज सदी का महानायक कहा जाता है, उनके करोड़ों प्रशंसक हैं। अस्सी वर्ष से ऊपर के होने के बावजूद मेहनत तथा भागदौड़ करने में युवाओं को मात दे रहे हैं। देश की बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने उत्पादों के प्रचार के लिए उन्हीं की शरण में जाती हैं। इन्हीं अमिताभ पर कभी विपत्तियों का पहाड़ टूटा था। वर्षों तक फिल्मों में अभिनय कर कमाया धन उनकी ही बनायी एबीसीएल कंपनी ने छीनकर उन्हें कंगाल बना दिया था। आर्थिक हालात इतने बदतर हो गये थे कि उन्हें कोई राह नहीं सूझ रही थी। जो फिल्म निर्माता कभी उन्हें अपनी फिल्मों में लेने के लिए तरसते थे, वही उन्हें अब दुत्कारने लगे थे। ऐसे भयावह, चिन्ताजनक दौर में अमिताभ को बस अच्छे वक्त का इंतजार था। उन्होंने हार मानने की बजाय चुनौतियों का मुकाबला करते हुए नई राह चुनी। उनके शुभचिंतकों ने उन्हें बार-बार समझाया कि टेलीविजन उनके लिए नहीं है। वे तो बड़े पर्दे के लिए जन्मे हैं, लेकिन अमिताभ ने ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से नई धमाकेदार शुरुआत कर जो इतिहास रचा वो हम सबके सामने है। यदि अमिताभ थक-हार कर के बैठे रहते या कोई गलत कदम उठा लेते तो क्या उन्हें यह सुखद दिन देखने को मिलते? उन्हें अकल्पनीय सफलता का स्वाद चखने को मिलता? अपनी दूसरी सफलतम पारी में अमिताभ को जब अभूतपूर्व ऊंचाइयां मिलीं तभी उन्हें सदी के महानायक का ‘तमगा’ मिला। उससे पहले तो लोगों ने उन्हें भूला ही दिया था। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ कार्यक्रम उन्हीं की वाकपटुता की बदौलत पिछले 23 वर्षों से दर्शकों की पहली पसंद बना हुआ है।

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