Friday, November 10, 2023

ये नया दौर है...?

    ऐसे लोगों से आपका भी मिलना-मिलाना होता रहता होगा, जो मेहनत से मुंह चुराते हैं। अनुशासन में रहना उन्हें अच्छा नहीं लगता। समय की पाबंदी से भी चिढ़ते हैं। नौकरी करते हैं, लेकिन किसी की नहीं सुनते। कुर्सी पर टिक कर अपना दायित्व निभाने की बजाय उन्हें गप्पें मारने में ज्यादा मज़ा आता है। सरकारी कार्यालयों में ऐसे एक से एक कामचोर भरे पड़े हैं, जिन्होंने मान और ठान लिया है कि बड़ी किस्मत से सरकारी नौकरी मिली है। काम करें या ना करें, वक्त पर दफ्तर जाएं या ना जाएं और कैसे भी समय बिताएं, हमारी मर्जी। कौन पूछने वाला है? सरकारी नौकरी से कोई बाहर तो कर ही नहीं सकता। ऐसे में जी भरकर मौज-म़जे करने में क्या हर्ज है? अपने देश में सरकारी कार्यालयों की दुर्गति किसी से छिपी नहीं है। अधिकांश कर्मचारी और अधिकारी तीन-चार घंटें भी टिक कर काम नहीं करते। बार-बार इधर-उधर होते रहते हैं। निजी कार्यालयों, कारखानों और संस्थानों के कई मालिक ऐसे कामचोर, आराम परस्त कर्मचारियों और सहयोगियों से बहुत परेशान रहते हैं, जो हमेशा महंगाई का राग अलापते हुए तनख्वाह बढ़ाने की मांग तो करते रहते हैं, लेकिन मन से काम नहीं करते। मालिक जब-तब उन्हें चेताते रहते हैैं कि कभी अपने काम का भी हिसाब लगा लिया करो। दस बजे ड्यूटी पर आने की बजाय कभी ग्यारह तो कभी बारह बजे आते हो। मुश्किल से एक घंटा टिक कर काम करते हो और मौका पाते ही चाय और गप्पबाजी के लिए बाहर निकल जाते हो। हर वक्त घड़ी पर नजरें गढ़ाये रहते हो। कब छह बजें और नौ दौ ग्यारह हो जाऊं। तुम्हारे जैसे कामचोरों के कारण हमारी हालत बिगड़ रही है। ऐसे में तनख्वाह बढ़ाने की मांग करने की बजाय तुम यहां से चलते बनो या फिर अपनी आदत को सुधार लो। 

    समय की बर्बादी करने वाले ऐसे मुफ्तखोरों को प्राइवेट नौकरी रास नहीं आती। उनकी आत्मा सरकारी नौकरी के लिए भटकती और तड़पती रहती है। लाख कोशिशों के बाद भी जब सरकारी नौकरी नहीं मिलती तभी प्राइवेट संस्थान की शरण लेते हैं। सतत नज़र रखने और टोका-टाकी करने वाले मालिकों की पीठ पीछे बुराई करने में कामचोरों को महारत हासिल होती है। उन्हें यह कहने में भी शर्म नहीं आती कि मालिक उन्हीं के खून-पसीने के श्रम की बदौलत मालदार बन दुनिया भर के मज़े लूट रहे हैं। प्राइवेट कंपनियों में परिश्रमी और वक्त के पाबंद, अनुशासित कर्मचारी हमेशा सम्मान के साथ-साथ अच्छी पगार भी पाते हैं। निकम्मों और मुंहजोरी करने वालों को ज्यादा झेला नहीं जाता। उनकी नाटक-नौटंकी की पोल खुलने में भी ज्यादा देर नहीं लगती। प्राइवेट संस्थानों के दूरदर्शी संचालक परिश्रमी और महत्वाकांक्षी कर्मचारियों को हर हाल में अपने साथ जोड़े रखना चाहते हैं। 

    देश और दुनिया की जानी-मानी शख्सियत, इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति, कर्म और परिश्रम को ही वास्तविक पूजा मानते हैं। उन्हें इस बात की अत्यंत चिंता है कि आज के भारत के युवाओं में पूरे तन-मन के साथ परिश्रम करने की जिद नहीं है। वे सुख-सुविधाओं के घेरे से बाहर आना नहीं चाहते। उन्हें काम कम और छुट्टियां मनाना अधिक भाता है। यही वजह है कि भारत की कार्य उत्पादकता दुनिया में सबसे कम है। चीन के लोगों की कार्यक्षमता और उत्पादकता ने ही उसे शीर्ष पर पहुंचाया है। भारत के युवा यदि हर दिन 10 घंटे यानी सप्ताह में 70 घंटे जी-जान से काम करेंगे तभी भारत विकसित राष्ट्र बनने के साथ-साथ चीन का मुकाबला कर पायेगा। विद्वान और अनुभवी नारायण मूर्ति ने सरकारी कामकाज के उन तौर-तरीकों पर भी तंज कसा है, जिनकी वजह से देश के विकास की गाड़ी तेजी से नहीं चल पा रही है। लेटलतीफी और आलस्य अधिकांश भारतीयों की आदत में शुमार है। भारतीय कामगार ढाई घंटे में जितना काम करते हैं, यूरोप और अमेरिका के कामगार उतना काम मात्र एक घंटे से भी कम समय में करने में सक्षम हैं। उनमें अपने काम के प्रति लगन और ईमानदारी कूट-कूट कर भरी होती है, जो उन्हें तथा उनके देश को खास प्रतिष्ठा दिलवाती है। यह कहना और सोचना भी गलत है कि अपने भारत देश में दूसरे देशों की तुलना में कम स्वस्थ लोग हैं, जिसकी वजह से हम पिछड़े हुए हैं। सच तो यही है कि अपने यहां के स्वच्छ सेहतमंद प्राकृतिक वातावरण की तुलना किसी भी देश से नहीं की जा सकती, लेकिन यहां के युवाओं को भटकाने वाली ताकतें लगातार भिन्न-भिन्न तरीकों से गुमराह कर रही हैं। युवाओं को भी लगता है कि छुट्टियां मनाने तथा नशे में डूब जाने में जो सुख है, वह और कहीं नहीं। शराब, अफीम, हेरोइन, कोकीन जैसे घातक नशों के बाद अब तो हमारे यहां के युवा सांप के ज़हर को भी ड्रग की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। सच कहें तो अभी तक हमें तो यही पता था कि सांप का काटा मुश्किल से बच पाता है। जब पहली बार अखबार में खबर पड़ी तो विचार पर विचार आते रहे। जिस ज़हर से लोगों को मरते देखा है उसमें क्या वाकई नशा हो सकता है? कुछ नशेड़ियों से बात की तो जाना कि नशे के लती सांप के फन से जबरन जहर निकाल कर उससे नशा करते हैं। कभी-कभी तो सीधे कटवा भी लेते हैं। इससे उन्हें ‘हार्ई’ मिलता है। हार्ई यानी एक अत्यंत उत्तेजक अवस्था, जिसमें कोई सुध-बुध नहीं रहती। गोली की शक्ल में दो हजार से पांच हजार तक सांपों के ज़हर के विष की गोली रेव पार्टियों में नशेड़ियों को मांग और पार्टी के हिसाब से आसानी से मिल जाती है। यह ड्रग लोगों की जान भी ले रहा है। फिर भी लत तो लत है। जो एक बार लगी तो पीछा नहीं छोड़ती। अभी हाल ही में सांप के ज़हर के नशे की पार्टी में जब छापा पड़ा तो कुछ ऐसे बुद्धिजीवी भी नशे में झूमते-गिरते-पड़ते देखे गये, जिनसे दूसरों को नशे से होने वाले घालक नुकसानों से अवगत कराने की उम्मीद की जाती है। लेकिन...? ये तो खुद नशे के गुलाम हैं। नारायण मूर्ति ने जैसे ही देशवासियों को हफ्ते में 70 घंटे काम कर देश की प्रगति में योगदान देने का सुझाव दिया तो कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों के तन-बदन में आग लग गई। ये धड़ाधड़ बयानबाजी के नुकीले तीर चलाने लगे: यह नारायण मूर्ति तो हर दर्जे का स्वार्थी पूंजीपति है, जो युवाओं की सुख-शांति छीनकर अपनी तिजोरियों का वजन बढ़ाना चाहता है। देश के युवा कोई मशीन तो नहीं, जो दिन-रात अपना खून-पसीना बहाते रहें। उन्हें भी आराम चाहिए, लेकिन यह पूंजीपति अधिक से अधिक उनका खून चूसने को आतुर हैं। इसलिए प्रतिदिन दस घंटे काम करने पर जोर दे रहे हैं। बात का बतंगड़ बनाना इन तथाकथित बुद्घिजीवियों को खूब आता है। उन्हें बुलंदी पर पहुंची शख्सियतों की मेहनत नहीं दिखती। नारायण मूर्ति, अंबानी, अडानी और टाटा आदि-आदि ने अपने अटूट परिश्रम के दम पर आर्श्चजनक उपलब्धियां हासिल की हैं और अपार धन भी कमाया है। सभी उद्योगपतियों के यहां लाखों कर्मचारी काम करते हैं। जितने रोजगार यह उद्यमी उपलब्ध करवाते हैं उतने तो सरकारें भी नहीं करवा पातीं। अपना देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, जहां किसी भी क्षेत्र में जाकर अपनी काबिलियत दिखाने की पूरी आज़ादी है। इतिहास गवाह है कि जिनमें जोखिम लेने और कुछ कर गुजरने का जुनून रहा है, वही अपने-अपने क्षेत्र में शीर्ष पर पहुंचे हैं। किसी पर भी पूंजीपति तथा शोषक होने का आरोप लगाना खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे की कहावत को चरितार्थ कर अपने ही मुुंह पर कालिख पोतना है। 

    इस सदी के मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली की ग़जल की इन पंक्तियों के साथ आप सभी को दीपावली और नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं...

‘‘सफ़र में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो

सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहां बदलती हैं

तुम अपने आपको खुद ही बदल सको, तो चलो...।

यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता

मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो...।’’

No comments:

Post a Comment