Thursday, November 23, 2023

ज़हरीले

    कालजयी फिल्म ‘आनंद’ के चिंतनशील, विख्यात निर्माता ऋषिकेश मुखर्जी ने अपने संस्मरण में लिखा है कि वे नायक के रोल के लिए किशोर कुमार को अनुबंधित करना चाहते थे। एक दिन सुबह-सुबह वे मुंबई स्थित किशोर कुमार के निवास स्थान पर पहुंचे तो गार्ड ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। ऋषिकेश के लिए यह हैरतअंगेज घटना थी। बाद में उन्हें पता चला कि किशोर कुमार का किसी बंगाली फिल्म निर्माता से विवाद हो गया था। इस मनमुटाव और अनबन के चलते अभिनेता और गायक किशोर कुमार ने अपने गार्ड को यह आदेश दे दिया था कि कोई भी बंगाली उनके घर में प्रवेश न करने पाए। उसे देखते ही कुत्ते उसके पीछे दौड़ा दिये जाएं। कई प्रभावी चर्चित फिल्मों के निर्माता ऋषिकेश अपने जीवन में पहले कभी इस तरह से अपमानित नहीं हुए थे। बाद में उन्होंने राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन को लेकर दर्शकों के दिलों को छू लेने वाली यादगार फिल्म ‘आनंद’ का निर्माण किया। आनंद के प्रदर्शित होते ही राजेश खन्ना की खूब वाहवाही हुई। अमिताभ के नाम का भी जोरदार डंका बजा। लगभग पचास साल पहले बनी फिल्म ‘आनंद’ की आज भी चर्चा होती है। नयी पीढ़ी के दर्शकों को भी खासी पसंद आती है। अपनी सनक और बेवकूफी की वजह से ‘आनंद’ में अभिनय नहीं कर पाने की पीड़ा किशोर कुमार को उम्र भर सताती रही। सवाल यह है कि किशोर कुमार जैसे अनुभवी कलाकार ने किसी एक बंगाली व्यक्ति से मिले कटु अनुभवों का बदला लेने के लिए हर बंगाली को चोट पहुंचाने का घातक फैसला लेकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारी?

    किशोर कुमार आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके सनकीपन की कई अजब-गजब दास्तानें पढ़ने-सुनने को मिलती रहती हैं। अधिकांश सनकी अहंकारी और अपनी मनमानी करने वाले होते हैं। दूसरों को नीचा दिखाने और पीड़ा पहुंचाने में उन्हें अपार आनंद और खुशी की अनुभूति होती है। अपराधियों के जाति और धर्म को खंगालने वाले कई भारतीय नेताओं में यह दुर्गुण कूट-कूट कर भरा पड़ा है। 31 अक्टुबर 1984 की सुबह जब इंदिरा गांधी की उनके दो सुरक्षा कर्मियों, बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर नृशंस हत्या कर दी थी, उसके बाद इन दोनों हत्यारों को अपराधी मानने की बजाय पूरी की पूरी सिख कौम को ही अपराधी मानते हुए हजारों निर्दोष सिखों का कत्लेआम किया गया था। इस सोच के जनक कुछ बड़े-छोटे नेता ही थे। इनकी राजनीति उकसाने, भड़काने और खून-खराबा करने के हथकंडों के दम पर ही चलती है। कोई मुस्लिम यदि कोई संगीन अपराध कर देता है, तो यह पूरी बिरादरी को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं। इस तरह के शातिर लगभग सभी धर्मों में अपना खूनी डंका बजाते देखे जाते हैं। किसी को हिंदू तो किसी को ईसाई, दलित, पारसी, बौद्ध आदि से नफरत है। ऐसे लोगों को अपने सिवाय सभी देशद्रोही लगते हैं। चुनावों का मौसम नजदीक देख कुछ बड़ी-बड़ी शख्सियतें अपना आपा खोने लगती हैं। उनके उग्र तेवर हैरान-परेशान करने लगते हैं। इन दिनों कुछ राजनेता अपने ही चेहरे के नकाब नोचने में लगे हैं। उनकी जुबान मदारी की तरह डुगडुगी बजा रही है। वे भूल गये हैं कि बात दूर तक जाती है। बात बारूद बन जाती है। छवि को तहस-नहस कर देती है, लेकिन उन्हें कोई चिंता नहीं। उन्हें तो बस वोटों की फसल उगानी है। येन-केन-प्रकारेण सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होना है। इसलिए गंदे खेल के खिलाड़ी बने हुए हैं। अपने ही आसपास के लोगों की आस्था पर कीचड़ फेंक रहे हैं। उन्हें निरंतर उत्तेजित कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के एक नेता हैं स्वामी प्रसाद मौर्य, जिन्होंने हिंदुओं को आहत करने की राह पकड़ ली है। जब देखो तब देवी-देवताओं पर अभद्र विषैले बयान देकर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का मज़ाक उड़ाते देखे जा रहे हैं। ऐन दीपावली के मौके पर इस बदहवास नेता ने कहा कि चार हाथ, आठ हाथ, बीस हाथ वाला बच्चा आज तक पैदा नहीं हुआ। ऐसे में चार हाथ वाली लक्ष्मी कैसे पैदा हो सकती है? हिंदू धर्म और उससे जुड़े प्रतीकों पर शर्मनाक शब्दावली का इस्तेमाल करते चले आ रहे स्वामी प्रसाद मौर्य की निगाह में हिंदू का मतलब हैं, चोर, नीच और अधर्मी। इस बकवासी ने कुछ माह पूर्व रामचरित मानस को लेकर कहा था कि कई करोड़ लोग रामचरित मानस नहीं पढ़ते। इसे तो तुलसीदास ने अपनी खुशी के लिए लिखा है। भगवान राम और रामराज को लेकर भी यह बौखलाया नेता सवाल खड़े करता रहता है। यह अकेला नहीं। कुछ और भी है, जिनकी हिंसक मंशा उन्हें बेलगाम किए है। बीते महीने तामिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे डीएम के नेता उदय निधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया और मच्छर से करते हुए उसके उन्मूलन की बात की थी।  

    बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रहे हैं, लेकिन अपनी जुबान पर ही उनका कोई नियंत्रण नहीं है। बिहार विधान सभा के भीतर महिला जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर स्त्री-पुरुष यौन संबंधों को लेकर उन्होंने जो अशोभनीय विचार व्यक्त किए और इशारे बाजी की, उससे तो यही निष्कर्ष निकला कि इनके मन-मस्तिष्क में संभोगशास्त्र, कोकशास्त्र और वासना का सैलाब भरा पड़ा है। जिस नेता से हम पढ़ा-लिखा समझते थे वह तो बेशर्म और बेवकूफ है। हद दर्जे का महिला विरोधी है। बदकिस्मती यह देश के विशाल प्रदेश बिहार का मुखिया है। दरअसल, यह तो चपरासी बनने लायक भी नहीं है। इसी की तर्ज पर राजस्थान के एक नेता भरे मंच पर यह कह गए कि हमारा प्रदेश मर्दों का प्रदेश है, जहां बलात्कार होना स्वाभाविक है। दरअसल कुछ लुच्चे और टुच्चे चेहरे है, जो देश का वातावरण बिगाड़ने पर तुले हैं। वे इस शांतिप्रिय देश में अश्लीलता, हिंसा और नफरत फैलाने के जबरदस्त मंसूबे पाले हुए हैं। वे भारत की नस-नस में ज़हर घोलना चाहते हैं। ऐसे में हमारा बस यही दायित्व और कर्तव्य है कि इनकी सुनना बंद करें। इनको चुनने की कतई भूल न करें।

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