Thursday, February 15, 2024

राजनीति के अस्त्र-शस्त्र

    इन दिनों देश की राजनीति का तापमान बड़ा अजब-गजब है। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की बमबारी जोरों पर है। वैसे तो हर चुनाव से पहले नेता, राजनेता और उनकी भक्त मंडली ढोल- मंजीरे बजाने लगती है, लेकिन इस बार उठा-पटक और शोर-शराबा बहुत ज्यादा है। विपक्ष किसी भी हालत में नरेंद्र मोदी की कुर्सी छीनने का हठ पाले हुए है, लेकिन उसे यह भी पता है कि उसकी दाल नहीं गलने वाली। प्रियदर्शिनी इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी ही दूसरे वो प्रधानमंत्री हैं, जिनके असीम भय से संपूर्ण विपक्ष भयभीत है। उसे अपनी उड़ान पर ही भरोसा नहीं। देश की सबसे पुरातन पार्टी कांग्रेस के तो कई दिग्गज नेता उसका दामन झटक कर भाजपा तथा दूसरे राजनीतिक दलों में कूच करने लगे हैं। गठबंधन की सतत खुलती-बिखरती गांठ भाजपा और मोदी को ताकत दे रही है। भाजपा के इस अद्भुत योद्धा ने सभी विपक्षी नेताओं की धड़कनें बढ़ा दी हैं। धड़कनें तो मीडिया की भी बढ़ी हुई हैं। पिछले दस साल से एकतरफा पत्रकारिता करते चले आ रहे पत्रकारों-संपादकों की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। विपक्षी नेताओं की तरह इन पत्रकारों ने भी सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने की कसम खा रखी है। ये पत्रकार कौन हैं? सभी जानते हैं। 

    राजदीप सरदेसाई भी मोदी की खिलाफत करने वाले पत्रकारों, संपादकों में शामिल हैं। उनकी यह लत बीमारी का रूप ले चुकी है। यही हाल उनकी पत्नी सागरिका घोष का भी है, जिन्हें नरेंद्र मोदी में हजारों बुराइयां दिखती हैं। उनके शासन में हुए विकास कार्य नहीं दिखते। दरअसल वह देखना भी नहीं चाहतीं। उनके लिए यह अंधापन बहुत लाभकारी है। मोदी जी तो कुछ देने से रहे। जो भी मिलना है, विपक्ष से ही मिलना है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी ममता लुटाते हुए अपनी तृणमूल कांग्रेस पार्टी की तरफ से राज्यसभा की सांसदी की टिकट सागरिका की झोली में डाल दी है। उनके पति भी राज्यसभा जाने की राह देख रहे हैं। ये पति-पत्नी मोदी विरोधी अभियान में दिन-रात लगे रहते हैं। यदि उन्हें कोई बताता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कई विकासकार्य भी किये हैं, तो इनका पारा चढ़ जाता है। सभी माता-पिता अपनी औलाद को अपने पदचिन्हों पर चलते देखना चाहते हैं, लेकिन राजदीप के साथ तब बड़ी अनहोनी हो गयी जब उसके बेटे ने जयपुर से लौटने के पश्चात फोरलेन हाइवे की धड़ाधड़ तारीफें करनी प्रारंभ कर दीं। एकतरफा तीर चलाने वाले पत्रकार का तो माथा ही घूम गया। वे निरंतर अपने पुत्र का चेहरा देखते रह गये। यह क्या अंधेर हो गया। मेरा ही खून मेरे दुश्मन की तारीफ कर रहा है। इसकी अक्ल तो ठिकाने है? राजदीप के बेटे ने जब कहा, ‘मोदी जी को देखिए, उन्होंने सड़कों का कायाकल्प ही करके रख दिया है।’ जले-भुने पिता ने पुत्र को टोकते हुए कहा, नितिन गडकरी केंद्रीय सड़क मंत्री हैं, उन्होंने भी बड़ी मेहनत की है। प्रत्युत्तर में बेटा तपाक से बोला, ‘उसे सब पता है, लेकिन असली नायक तो मोदी जी ही हैं। उन्हीं के नेतृत्व और मार्गदर्शन में सभी मंत्री और अधिकारी काम करते हैं।’ अपने ही घर में मोदी समर्थकों का होना कई जन्मजात मोदी विरोधी पत्रकारों तथा नेताओं की नींद को उड़ा चुका है। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले मोदी सरकार ने पहले कर्पूरी ठाकुर, फिर लालकृष्ण आडवाणी और उसके तुरंत बाद पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को ‘भारत रत्न’ से सुशोभित करने की घोषणा कर अपने विरोधियों के पैरोंतले की जमीन ही छीन ली है। ‘भारत रत्न’ देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। देश के विकास और बदलाव में उल्लेखनीय योगदान देने वाली शख्सियतों को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जाता है। भारत रत्न के लिए देश के प्रधानमंत्री किसी भी व्यक्ति को नामित कर सकते हैं। मंत्रिमंडल के सदस्य, राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी प्रधानमंत्री को अपनी सिफारिश भेज सकते हैं। इन सिफारिशों पर प्रधानमंत्री की मुहर लगने के बाद ही राष्ट्रपति को अंतिम मंजूरी के लिए भेजा जाता है। ‘भारत रत्न’ देने की शुरुआत 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल में हुई थी। 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ‘भारत रत्न’ दिया गया था। 1971 में इंदिरा गांधी को भी प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया था। पाकिस्तान के अब्दुल गफ्फार खान और साउथ अफ्रीका के नेल्सन मंडेला भी ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किये जा चुके हैं। अब्दुल गफ्फार खान ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में अपना योगदान दिया था। साउथ अफ्रीका के गांधी कहे जाने वाले नेल्सन मंडेला ने काले-गोरे का भेद मिटाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी। 

    ‘भारत रत्न’ को लेकर विवाद-प्रतिवाद भी होते रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि ‘भारत रत्न’ देने के पीछे राजनीति का अहम योगदान होता है। सरकार के समर्थकों के हिस्से में ही ज्यादातर ‘भारत रत्न’ सम्मान आता है। इस बार के ‘भारत रत्न’ को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निशाने पर हैं। निशानेबाज भूल गये हैं कि अपने ही देश में दो प्रधानमंत्री खुद को ही ‘भारत रत्न’ से सुशोभित करने का कीर्तिमान रच चुके हैं। मोदी ने तो ऐसा कोई कारनामा नहीं किया। राजनीति के खेल में विरोधियों को जरूर अस्त्र विहीन किया है। उन्होंने जिन्हें इस गौरवशाली पुरस्कार से नवाजा है वे उनके रिश्तेदार नहीं हैं। इनकी देश सेवा की गाथाएं इतिहास में दर्ज हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, पिछड़ा वर्ग के परम हितैषी जननायक कर्पूरी ठाकुर ने देश में पहली बार पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था करके सामाजिक न्याय को नयी दिशा दी थी। जाट और किसान नेता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव को आर्थिक सुधारों, अच्छे शासन-प्रशासन के लिए जाना जाता है। प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक गुरु लालकृष्ण आडवाणी वो कर्मठ नेता हैं, जिन्होंने भाजपा को बुलंदियों पर पहुंचाया। कृषि वैज्ञानिक हरितक्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन महात्मा गांधी से अत्यंत प्रभावित थे। देश की गरीबी और भुखमरी से हमेशा परेशान और चिंतित रहने वाले इस किसान प्रेमी का एक ही मकसद था, देश में सर्वत्र खुशहाली लाना। देश के हर व्यक्ति को तीन वक्त का पोषक आहार मिले। कोई भी भूखा न रहे। स्वामीनाथन इकलौते ऐसे वैज्ञानिक थे, जिन्होंने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक के साथ काम किया था। गौरतलब यह भी है कि स्वामीनाथन का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था। वे पूरी तरह से गैर-सियासी हस्ती थे। यहां आरएलडी नेता जयंत चौधरी का बयान भी काबिलेगौर है कि मोदी सरकार ने उनके दादा चौधरी चरण सिंह को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित कर उनका दिल जीत लिया है।

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