Thursday, February 8, 2024

असरकारी सफर

    कुछ खबरें बड़ी ही दिल को छू लेने वाली होती हैं। बनी-बनायी धारणाओं को चकना-चूर करने वाली खबरों की नायिकाएं और  नायक बड़ी तेजी से दिल-दिमाग में बस जाते हैं। उन्हें याद करना बहुत सुहाता है। दूसरों को भी उनके बारे में बार-बार बताने का मन हो आता है...। आईए सबसे पहले मिलते हैं राजस्थान के शहर अलवर की पायल से। पायल कक्षा नौंवी में पढ़ रही है। उम्र है 14 वर्ष। पायल जब मात्र छह वर्ष की थी तब खेत में बॉल पकड़ने के लिए दौड़ रही थी तभी अचानक उस पर 11 हजार वोल्ट की बिजली की लाइन टूट कर आ गिरने से उसके दोनों हाथ करंट से जल गए। उसकी जान तो बच गई, लेकिन दोनों हाथ जिस्म से अलग करने पड़े। छह साल की बच्ची को ज्यादा समझदार नहीं समझा जाता, लेकिन पायल को विधाता ने किसी और ही मिट्टी से रच कर धरा पर भेजा है। तभी तो उसने मात्र 18 दिन में ही हाथों के सदा-सदा के लिए छिन जाने के गम को भुलाते हुए पैरों से ही लिखना सीख लिया। डॉक्टरों ने जो कृत्रिम हाथ लगाए उन्हें डेढ़-दो माह में ही हटा दिया। डॉक्टर हैरान स्तब्ध थे। ऐसी हिम्मती बच्ची तो पहले उन्होंने नहीं देखी। शरीर के घाव भरे भी नहीं, स्कूल जाने लगी। उसे किसी की दया पर जीना पसंद नहीं। दिव्यांग कहलाना भी उसे बिलकुल नापसंद है। आठवीं की बोर्ड परीक्षा में दिव्यांग बच्चों को मिलने वाली अतिरिक्त समय की सुविधा को उसने लेने से साफ मना करते हुए प्रिंसिपल को अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि, मैडम मेरे हाथ नहीं हैं, इसलिए मुझ पर रहम कर दूसरों से ज्यादा समय दे रही हैं...! मैं सभी के टाइम में ही  पेपर हल करूंगी। उसे समझाया गया कि यह तो बोर्ड का नियम है। यह उसका अधिकार है, लेकिन पायल नहीं मानी। पायल आईएएस बनना चाहती है। सभी का यही कहना है कि हौसले और उत्साह से लबालब यह लड़की अपने हर सपने को साकार कर दिखाएगी...। 

    नागपुर की नेत्रहीन ईश्वरी पांडे ने तो इतिहास ही रच दिया। मुंबई के एलीफेंटा से गेटवे ऑफ इंडिया की समुद्री दूरी 4 घंटे, 2 मिनट में पूर्ण कर समुद्र के ठंडे पानी और ऊंची-ऊंची लहरों के होश ठिकाने लगा दिए। अद्भुत साहस से ओतप्रोत ईश्वरी की इस शानदार प्रेरक उपलब्धि को एशियन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज कर गौरवान्वित किया गया है।

    भारत की राजधानी दिल्ली में रहती हैं, पूजा शर्मा। 26 साल की हैं। अभी तक 4000 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं। 13 मार्च, 2022 को पूजा के तीस वर्षीय बड़े भाई की मामूली-सी बात पर गुंडों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। तब पिता को तो इस कदर धक्का लगा था कि वे कोमा में चले गए थे। पूजा ने भाई को खोने के गम में डूबने की बजाय उन शवों का अंतिम संस्कार करने का पक्का मन बना लिया, जिन्हें लावारिस माना जाता है। अपने भाई का अंतिम संस्कार करने के दूसरे दिन से उसने दूसरों की मदद का जो संकल्प लिया वो आज भी बरकरार है। पूजा ऐसे शवों के बारे में पुलिस और अस्पतालों से जानकारी जुटाती हैं, जिनके परिवार या फिर सगे संबंधी नहीं होते। अब तो अस्पताल तथा पुलिस वाले भी पूजा को तुरंत लावारिस शवों की खबर कर देते हैं और पूजा दौड़ी-दौड़ी पहुंच जाती हैं और समर्पित भाव से अंतिम संस्कार की व्यवस्था करवाती हैं। अपने भाई को खोने से मिले अथाह दुख को दूसरों की सेवा करने के मिशन में तब्दील कर चुकी पूजा किसी प्रेरक ग्रंथ से यकीनन कम तो नहीं। उसके लिए सभी धर्मों के लोग एक समान हैं। शव चाहे हिंदु का हो, मुसलमान का हो सिख या ईसाई का हो वह तो बिना भेदभाव के अपना धर्म निभाती है...। 

    यह सच अपनी जगह अटल है कि जिनमें सेवाभाव का ज़ज्बा होता है वे धर्म और जात से परे होते हैं। नारंगी नगर नागपुर के निकट स्थित कामठी में एक हिंदू व्यक्ति के शव को मोक्षधाम ले जाने के लिए गाड़ी नहीं मिल रही थी। यह खबर जब मुस्लिम कब्रिस्तान कमेटी के सचिव इलाही बक्श तक पहुंची तो उन्होंने फूलचंद के शव को मोक्षधाम पहुंचाने के लिए कब्रिस्तान की गाड़ी भेजने में किंचित भी देरी नहीं की। कई बार छोटे बच्चे बड़ों को बहुत बड़ी सीख देते हैं। दिल्ली की एक अदालत में पति-पत्नी के बीच तलाक का केस अंतिम चरण में था। उनके मध्यस्थ ने उनसे अंतिम बार पूछा कि क्या आप दोनों साथ रहना चाहते हैं। हमेशा की तरह उन्होंने कहा, बिलकुल नहीं...। उन दोनों का 11 साल का एक बेटा भी है, जो तब कोर्ट में मौजूद था। अपने मां-बाप के फैसले को सुनते ही वह रोने लगा। जज ने बच्चे को रोता देख पूछा, बेटे आप दोनों में से किसके साथ रहना चाहेंगे? बच्चे का जवाब था, जज अंकल मुझे तो मम्मी-पापा दोनों के साथ रहना है। जज ने बच्चे को समझाते हुए कहा कि बेटा, आप के मम्मी-पापा की आपस में नहीं बनती, इसलिए उनका तलाक हो रहा है। इसमें ही उनकी खुशी है। बच्चे ने मासूमियत भरे लहजे में कहा, जज अंकल ऐसे में मुझे भी इनके साथ नहीं रहना है। मुझे इन दोनों से तलाक दिलवा कर कहीं और भेज दीजिए। बच्चा अपने मन की बात कहते-कहते फिर रोने लगा। मां-बाप ने उसे चुप कराने की तो कोशिश की पर वह उनका हाथ झटक कर जज के पास चला गया। बच्चे के इस बर्ताव ने माता-पिता को झकझोर कर रख दिया। दोनों की आंखों ही आंखों में बात हुई और तुरंत अलग कमरे में चले गए। आधे घंटे बाद कोर्ट के समक्ष आकर उन्होंने कहा, ‘वे भी अपने बच्चे से अलग रहकर नहीं जी पाएंगे। आपसी मनमुटाव और रोज की किचकिच में उलझ कर उन्होंने अपने बच्चे को ही भुला दिया था।’ अब दोनों ने तलाक नहीं लेने का निर्णय किया है। इसके साथ ही एक दूसरे के खिलाफ दायर सभी मुकदमे वापस लेने जा रहे हैं...।

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