प्रिय पाठको,
आपके स्नेह, अपनत्व, जुड़ाव और शुभकामनाओं की बदौलत महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर से प्रकाशित राष्ट्रीय साप्ताहिक ‘राष्ट्र पत्रिका’ ने अपनी निष्पक्ष, निर्भीक पत्रकारिता की यात्रा के 17वें वर्ष में प्रवेश कर लिया है। जब ‘राष्ट्र पत्रिका’ का प्रकाशन प्रारंभ किया गया था तब की और वर्तमान की स्थितियों, परिस्थितियों में काफी बदलाव आ चुका है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के अभूतपूर्व प्रचार-प्रसार और जनप्रियता की वजह से प्रिंट मीडिया के प्रति लोगों की अभिरूचि में कमी आयी है, वैसे इस कमी की शुरुआत तो कोरोना काल में ही हो गई थी, लेकिन फिर भी ‘राष्ट्र पत्रिका’ के पाठकों एवं शुभचिंतकों का काफी हद तक यथावत तक बने रहना हमारे मनोबल को सतत मजबूत बनाये हुए है। हमने सदैव आम जन के पक्षधर बने रहने का जो संकल्प लिया था उस पर आज भी कायम हैं और भविष्य में भी इन पंक्तियों के साथ अडिग रहने का हमारा अटल वादा है,
‘‘उजाला हो न हो
यह और बात है,
हमारी आवाज तो
अंधेरों के खिलाफ है।’’
गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, अशिक्षा, सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कभी आज भी देश की प्रमुख समस्या है। नौकरी के अभाव के चलते अपराधी और अपराधों का पनपना देश की चहुंमुखी तरक्की में बाधक बना हुआ है। आम आदमी की खून-पसीने की कमायी महंगाई के समक्ष बौनी होती चली जा रही है। गरीब परिवारों के लिए अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के लिए जो पापड़ बेलने पड़ रहे हैं उसकी पीड़ा वही जानते हैं। स्कूल, कालेजों की फीस आसमान छूने लगी है। धनपति तो बड़ी आसानी से अपने नालायक बच्चों को भी डॉक्टर, इंजीनियर, जज, कलेक्टर, कमिश्नर बनाने में सफल हो रहे है, लेकिन गरीबों के योग्य और परिश्रमी बच्चे छोटी-मोटी नौकरियां के कैदी बनकर रह गये हैं। देश के समक्ष आज और भी कई संकट सीना ताने खड़े हैं। कुछ विघटनकारी ताकतें हिंदुस्तान को तोड़ने के मसूंबो के साथ साजिशें रच रही हैं। उनका भाई से भाई को लड़ाने का इरादा कोई नयी बात नहीं है, लेकिन इन दिनों भारत माता भीतरी और बाहरी षड़यंत्रकारियों की खूनी साजिशोेंं से आहत है। बीते हफ्ते जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों ने 28 निर्दोष भारतीयों को मौत के घाट उतार दिया। पर्यटक जब खुशगवार मौसम का आनंद ले रहे थे, तभी वहां सेना की वर्दी में नकाब पहने आतंकवादी पहुंचे और उनका नाम और धर्म पूछ-पूछ कर उन्हें गोलियों से उड़ाने लगे। आतंकियों ने बहुत ही सोचे-समझे षडयंत्र के तहत इस कायराना हत्याकांड को अंजाम दिया। सभी देशवासी बहुत गुस्से में हैं। देश के कोने-कोने से पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाने की आवाज बुलंद की जा रही हैं। कश्मीर के आतंकी इतिहास में पहली बार देखा गया कि मस्जिदों से लाउडस्पीकर द्वारा ऐलान करके इस घिनौनी वारदात की निन्दा की गई और इसे इस्लाम के खिलाफ बताया गया। कश्मीर में जो कैंडल मार्च निकाले गए उसमें हजारों कश्मीरियों ने शामिल होकर आतंकवाद के खिलाफ नारे लगाये और पर्यटकों को अपनी रोजी-रोटी और भगवान बताया। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी बड़े दु:खी मन से कहा कि पहलगाम में जोशो-खरोश के साथ घूमने आए मेहमानों के नरसंहार से वे आहत और अत्यंत शर्मिंदा है। इस आतंकी हमले पर हुई सर्वदलीय बैठक में भारतीय राजनीति की जो प्रभावी तस्वीर भी दिखी उसने सुखद एहसास करवाते हुए हर किसी को आश्वस्त कर दिया कि भारत के पक्ष और विपक्ष के नेता राजनीति से ज्यादा देश को अहमियत देते हैं। सभी दलों ने एक स्वर में सरकार से कहा कि, आतंक को मुंहतोड़ और निर्णायक जवाब देने के लिए जो भी जरूरी हो, तुरंत किया जाए।
यह सच भी किसी से छिपा नहीं है कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत की गहरी खाई को खोदने की साजिशें होती रही हैं। मैंने अपनी पत्रकारिता के पचास वर्ष में अच्छी तरह से देखा और जाना है कि भाषा, धर्म, पहनावे रहन-सहन में अंतर के बावजूद हम सब भारतवासी एक हैं। हमारा ‘अनेकता में एकता’ के वाक्यांश पर जो भरोसा है। उसे तो सारी दुनिया ने समय-समय पर देखा और सराहा है। भारत माता पर जब भी कोई विपदा आती है तो सभी भारतीय तन-मन और धन से एकजुट हो जाते हैं। इसी एकजुटता और सतर्कता की बदौलत ही भारत ने हर जंग में धूर्त, कपटी, फरेबी पाकिस्तान को धूल चटाई है। इस बार भी यदि युद्ध होता है तो पाकिस्तान की हार और बरबादी निश्चित है। जम्मू-कश्मीर के मिनी स्विजरलैंड कहलाने वाले पर्यटन स्थल पहलगाम में खून-खराबा होने के पश्चात जो सन्नाटा छा गया था वह अब धीरे-धीरे दूर होने लगा है। हत्याकांड के सात-आठ दिन के अंतराल के पश्चात पहलगाम में पर्यटकों का वापस लौटना यही दर्शाता है कि हर भारतीय के सीने में सैनिक का दिल धड़कता है। जैसे-जैसे पर्यटकों की भीड़ बढ़ रही है उनके चेहरे पर निखार आ रहा है।
‘राष्ट्र पत्रिका’ के प्रकाशन काल ही मेें हमने यह भी कसम खाई थी कि चाहे कुछ भी हो जाए इसे किसी नेता, मंत्री राजनीतिक पार्टी, उद्योगपति, दल-बल और संकीर्ण सोच और धारणा का हिमायती नहीं बनने देंगे। देश में सर्वत्र अमन चैन, सद्भाव और भाईचारे को सतत बनाये रखने के लिए कोई भी कीमत चुकाने के लिए सदैव तैयार रहेंगे। झूठ और छल-कपट का पत्रकारिता से होने वाले नुकसान को भी हमने बहुत करीब से देखा और समझा है,
‘‘आग की झूठी गवाही जब भी अंगारों ने दी
मौत की दस्तक हमारे दर पर हत्यारों ने दी’’
इलेक्ट्रानिक मीडिया और सोशल मीडिया भले ही पास और दूर की घटनाओं, वारदातों को पलक झपकते ही लोगों तक पहुंचा देते हैं, लेकिन जिस तरह से खबरों की तह तक पहुंचने के लिए प्रिंट मीडिया मेहनत करता है, वह गंभीरता न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया में बहुत कम नजर आती है। अखबार प्रदेश, देश, शहर और गांव की चेतना का हिस्सा हैं। जब चेतना मर जाती है तो अखबार भी मरने लगता है। सजग पाठक उससे दूरी बनाने लगतेे हैं। ‘राष्ट्र पत्रिका’ ने शहरी और ग्रामीण खबरों को निरंतर प्रकाशित करने के साथ-साथ खोजी रिपोर्टिंग को सदैव प्राथमिकता दी है। शोषित, दबे, कुचले, थके-हारे भारतीयों का बुलंद स्वर बनने की जिद ने ही ‘राष्ट्र पत्रिका’ को दूसरों से एकदम अलग और खास दर्जा दिलवाया है। अखबारी दुनिया की परंपरागत छवि को चुनौती देने वाले इस प्रगतिशील साप्ताहिक में विपरित परिस्थितियों से टकरा कर अपने मनोबल के दम पर बुलंदियों को छूने वाले आम और खास लोगों की खबरें और कहानियां बिना किसी भेदभाव के एक साथ जगह पाती हैं। वर्तमान में अधिकांश मीडिया तरह-तरह के लाछन और आरोपों के घेरे में है। अधिकांश भारतीय उसके पक्षपाती आचरण से अत्यंत चिंतित और दुखी हैं। जब भी कोई पत्रकारों और पत्रकारिता पर कीचड़ उछालता है तो मन आहत होता है, लेकिन सच तो, सच है। युवा कवयित्री भावना ने मीडिया के प्रति अपनी भावना को इन शब्दों में व्यक्त कर करोड़ों लोगों की सोच का चित्र प्रस्तुत किया है,
‘‘दाने से मछलियों को लुभाता रहा
क्या हकीकत थी, क्या दिखाता रहा
था अजब उसके कहने का अंदाज भी
कुछ बताता रहा, कुछ छिपाता रहा।’’
दबाने और छिपाने की पत्रकारिता की वजह से पत्रकारों और संपादकों की ही नहीं संपूर्ण मीडिया की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी है। कहावत है, मान-सम्मान नहीं तो कुछ भी नहीं...। इसलिए हम सबके लिए यह जागने और सतर्क होने का वक्त है...। महाराष्ट्र दिवस, श्रमिक दिवस और राष्ट्रपत्रिका की वर्षगांठ पर सभी पाठकों, संवाददाताओं, लेखकों, विज्ञापनदाताओं और एजेंट एवं बंधुओं को हार्दिक बधाई...शुभकामनाएं...अभिनंदन।
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