चित्र-1 : उसके मां-बाप ने उसे डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए आस्ट्रेलिया भेजा था। वहां वह सिजोफ्रेनिया जैसे खतरनाक मानसिक रोग का शिकार हो गया। डॉक्टरी की निर्धारित कोर्स की किताबेें पढ़ने की बजाय उसका दिमाग इधर-उधर छलांगे लगाने लगा। इसी दौरान उसने ‘आत्मा’ के बारे में पढ़ा और सुना तो वह दिन-रात आत्मा के बारे में ही सोचने लगा। आत्मा कैसी दिखती है, हमारा शरीर आत्मा के साथ कैसे काम करता है। मौत होते ही क्या हम आत्मा को देख सकते हैं? उसकी जिज्ञासा बढ़ती चली गई। कई और सवाल परेशान करते हुए उसकी नींद उड़ाने लगे। एक शाम उसने डॉक्टरी की सारी किताबें आग के हवाले कर दीं। आत्मा के प्रत्यक्ष दर्शन करने के लिए उसने अपने मां-बाप और बहन की बेहद कू्ररता से हत्या कर दी। उसके पश्चात वह ‘आत्मा’ को ढूंढता रहा, लेकिन वह नहीं मिली। अलबत्ता सड़-गलकर मरने के लिए उसे जेल जरूर जाना पड़ा।
चित्र-2 : माता-पिता को अपनी औलाद से ज्यादा कुछ भी प्यारा नहीं होता। मां की आत्मा और समस्त चेतना में तो सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों की जान बसती है। वह उनके लिए किसी भी मुसीबत को झेलने को तैयार रहती है। महाराष्ट्र के ठाणे के मुंब्रा इलाके में रहने वाला 17 साल का सुहैल यह कहकर घर से निकला कि आधे घण्टे में लौट आऊंगा, लेकिन देर रात तक जब वह घर वापस नहीं आया तो मां बेचैन हो गयी। उसने आधी रात को ही थाने में जाकर बेटे के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज करवा दी। इतना ही नहीं मां फरीदा ने रात में ही बेटे के दोस्तों के घर का दरवाजा खटखटाया, लेकिन सभी ने अनभिज्ञता दर्शा दी। दिन-पर-दिन बीतते चले गए, लेकिन बेटे का कोई सुराग नहीं मिला। अपने दुलारे की तलाश में भूखी-प्यासी रहकर उसने कई दिन-रात थाने और जेलों के बाहर बैठकर बिताये। अजमेर में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को भी बार-बार फोन कर पता लगाती रही कि उन्होंने सोहेल को दरगाह पर तो नहीं देखा। जब उसकी समझ में आ गया कि पुलिस का उसकी मदद करने का कोई इरादा नहीं है तो उसने एक स्थानीय पत्रकार से मुलाकात की। दोनों और जोर-शोर से सोहेल की तलाश में लग गये। कई जाने-अनजाने लोगों तथा सोहेल के नये-पुराने यार-दोस्तों में मिलने-मिलाने के बाद पता चला कि सोहेल का एक दोस्त भी उसी दिन से लापता है, जिस दिन सुहेल गायब हुआ। पत्रकार कुछ हफ्ते दौड़धूप करने के बाद अपने किसी और काम में लग गया, लेकिन मां ने धैर्य और हिम्मत का दामन थामे रखा। अपने गुमशुदा बेटे का पता निकालने वह जासूस बन गई। उसने खुद ही कड़ी-दर-कड़ी ऐसे सबूत तलाशे जिनसे दो हत्याओं का खुलासा हो गया। एक हत्या उसके बेटे सुहेल की और दूसरी उसके दोस्त की। मां की ममता के खोजी साहस को देखकर पुलिस भी हतप्रभ रह गई।
कोलकाता के निकट के एक गांव के तेरह साल के बच्चे को जब भूख ने बहुत सताया तो वह दौड़ा-दौड़ा मिठाई की दुकान पर जा पहुंचा। दुकान पर तरह-तरह की चिप्स रखीं थीं, लेकिन दुकानदार नदारद था। बच्चा ने तीन पैकेट हाथ में लेकर इधर-उधर देखने लगा। तभी दुकानदार आ गया। उसने बच्चे को चोर समझ कर पकड़ा और अंधाधुंध पीटने लगा। बच्चे ने गुस्साये दुकानदार को बीस का नोट देते हुए भूल के लिए बार-बार माफी मांगी। बच्चे की मां को जब इस घटना का पता चला तो उसने भी उसे कड़ी फटकार लगाई। भावुक और संवेदनशील बच्चे ने घर लौटने के बाद खुद को कमरे में बंद कर लिया। मां दरवाजा खटखटाती रही, लेकिन दरवाजा नहीं खुला। कुछ देर के बाद पड़ोसियों की मदद से दरवाजा तोड़ा गया तो बच्चा बेहोश मिला। उसने बंगाली में एक नोट लिख छोड़ा था, ‘‘मां मैं चोर नहीं हूं। मैंने चोरी नहीं की। अंकल (दुकानदार) वहां नहीं थे। मैंने उनके आने की राह देखी। मुझे बहुत भूख लगी थी। वैसे भी कुरकुरे मुझे बहुत पसंद हैं। मेरे उन्हें उठाते ही अंकल आ गए और उन्होंने मेरी एक भी नहीं सुनी...। ये मेरे अंतिम शब्द हैं। कृपया मुझे इस काम के लिए माफ कर देना।’’ अस्पताल ले जाने के कुछ ही समय बाद उसने अंतिम सांस ले ली। मां की आत्मा चीत्कार उठी। वह खुद को कोसती रह गई कि थोड़ा धीरज रख अपने बच्चे की सुन लेती तो वह आहत होकर इस तरह से मौत के मुंह में तो नहीं समाता।
चित्र-3 : इन दिनों कई मां-बाप बच्चों की मनमानी से बहुत आहत और परेशान हैं। मोबाइल फोन तो उनके लिए बहुत बड़ी समस्या बन गया है। अधिकांश बच्चे मोबाइल को आसानी से छोड़ने को तैयार ही नहीं होते। टिकटॉक, इंस्टाग्राम, फेसबुक और ऑनलाइन गेम उनकी लत बन गई हैं। मां-बाप के रात को सो जाने के पश्चात भी बच्चे मोबाइल फोन से चिपके रहते हैं। रात को देरी से सोने के कारण उनकी आंख समय पर नहीं खुलती। मां-बाप उठा-उठाकर थक जाते हैं।
केरल में स्थित नेदुंवपुरम ग्राम पंचायत ने बच्चों का मोबाइल के नशे से ध्यान हटाने के लिए अनोखी पहल की है। इसके तहत गांव के आठवीं से 12वीं क्लास के छात्रों को बीमार लोगों के साथ-साथ बुज़ुर्गों से मिलने और उनका हालचाल जानने के लिए भेजा जाता है। बच्चे उनका हौसला बढ़ाते हैं कि आप चिंता न करें। ईश्वर आपको शीघ्र ही भला-चंगा करेंगे। जागरूक ग्रामवासियों का मानना है कि मरीजों के साथ अधिक से अधिक वक्त व्यतीत करने से बच्चे ज्यादा संवेदनशील होंगे और बड़े-बुजुर्गों की देखभाल के प्रति जागरूक होंगे। उन्हें बुजुर्गों से बहुत कुछ नया सीखने को मिलेगा, जो किताबों में नहीं है। बच्चों को फर्स्ट एड की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। गांव के डॉक्टर गोयल कहते हैं कि बच्चों को मोबाइल से दूर रखने का लक्ष्य उन्हें दयालू और सामाजिक बनाना है। जब बच्चे बिस्तर पर पड़े किसी रोगी से बात करते हैं, उसका हालचाल पूछते हैं तो उनके व्यवहार में सकारात्मक बदलाव आते हैं। उनमें दूसरों की सहायता करने की भावना में बढ़ोतरी होती है। हम चाहते हैं कि बच्चे मोबाइल से दूरी बनाते हुए अपनी ऊर्जा, ज्ञान और कौशल का इस्तेमाल असहायों की मदद के लिए करें। बचपन और किशोरावस्था में बहुत एनर्जी होती है। यदि इसे सही दिशा दे दी जाए तो वे बड़े होकर बेहतरीन नागरिक बन सकते हैं। ग्राम पंचायत की सकारात्मक कोशिश रंग लाने लगी है। आयुर्वेदिक अस्पताल के डॉक्टर अविनेश गोयल इस बदलाव को लेकर अत्यंत प्रसन्न हैं। वे बताते हैं कि बच्चे पहले गांव के मरीजों का सर्वे करते हैं। इससे उनको गांव की प्राथमिक और जमीनी स्थिति का पता चलता है। उनकी सोच और समझ विकसित होती चली जाती है। इसके बाद वे डेटा का विश्लेषण करते हैं। फिर वे महीने में एक बार कम से कम मरीज से जरूर मिलने जाते हैं। हालांकि वे जितने चाहें उतने मरीजों से मिल सकते हैं। उन्हें एक डायरी भी दी गई है, जिसमें उन्हें सारी सूचनाएं अपनी भावनाएं लिखनी होती हैं। यह डायरी हर महीने चेक की जाती है, जिसकी सेवा सबसे अच्छी होती है। उसे इनाम भी दिया जाता है। यह भी सच है कि मोबाइल के अत्याधिक चक्कर में पड़े रहने की बीमारी सिर्फ बच्चों को ही नहीं है। कई बड़े-बुजुर्ग भी इसके गुलाम हो चुके हैं। जब मौका मिलता है मोबाइल खोलकर बैठ जाते हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के वीआइपी रोड पर स्थित है ‘नुक्कड़ कैफें। यहां पर जो ग्राहक खाना खाने के लिए आते हैं उनका मोबाइल पहले ही जमा करवा लिया जाता है। कैफे ने इसे डिजिटल डिटॉक्स का नाम दिया है। कैफे के संचालक चाहते हैं कि अपने परिवार या दोस्तों के साथ कैफे में आने वाले लोग अधिकतम समय एक-दूसरे के साथ बिताएं। मोबाइल में उलझे रहने की बजाय आपस में बातचीत करें। इसके बदले में उनके बिल में दस प्रतिशत विशेष छूट भी दी जाती है।
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