कुछ समझ में नहीं आ रहा। अधिक सोचो तो सिरदर्द। गंदी-गंदी गालियां बकने वालों को कल तक दुत्कारा जाता था। उन्हें अपने पास भी नहीं फटकने दिया जाता था, लेकिन आज गालीबाज विधायक और सांसद बन रहे हैं। गली-कूचों और महफिलों में सराहे जा रहे हैं। उनको सुनने के लिए खूब भीड़ जुटती है। टिकटें भी बिकती हैं। व्यंग्य और हास्य की जगह अश्लीलता, फूहड़ता और निर्लज्जता ने मंचों पर अंगद के पांव की तरह कब्जा कर लिया है। लोकगीतों के नाम पर भी कैसी-कैसी करतबबाजी हो रही है!
कई लुच्चे-लफंगे और लफंगियां पैरोडी करते-करते खुद को निर्वस्त्र करने का मज़ा ले रहे हैं। जिनकी दो टक्के की औकात नहीं वे अपने ही देश के कर्मठ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अपमानजनक शब्दावली का इस्तेमाल कर अपना बौनापन छिपाने की कवायद में तल्लीन हैं। अफसोस तो यह भी है कि इन्हें उत्साहित करने के लिए कुछ ‘महान’ तालियां पीट रहे हैं। खून के रिश्तों का मज़ाक उड़ाने वाले टुच्चों-लुच्चों को लाखों रुपये देकर यू-ट्यूब वाले क्यों उनका मनोबल बड़ा रहे हैं? बीते दिनों स्टैंडअप कॉमेडी शो ‘इंडियाज गॉट लैटेंट’ में बदतमीज़ यू-ट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया ने एक प्रतियोगी से बेहद अश्लील और गंदा सवाल कर डाला, ‘‘क्या आप अपने माता-पिता को अपने जीवन के बाकी हिस्से के लिए हर दिन सेक्स संबंध बनाते हुए देखेंगे या एक बार इसमें शामिल भी हो जाएंगे और हमेशा के लिए इसे रोक देंगे?’’ देश और दुनिया के हर मां-बाप के पवित्र रिश्ते और अंतरंंग संबंधों को कलंकित करने वाली यह गंदी अश्लील सोच जैसे ही लोगों तक पहुंची तो वे आगबबूला हो गए। गुस्सायी भीड़ इस धरती की सबसे निर्लज्ज पैदाइश का जूतों से पीटने के लिए जहां-तहां तलाशने लगी। मुंबई, दिल्ली, इंदौर, कोलकाता और गुवाहाटी समेत कई शहरों में इस लफंगे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई। प्रतिष्ठित हस्तियों का अपने शो में अपमानित करने वाला इलाहाबादिया यू-ट्यूब से हर माह लगभग 60 लाख रुपये पाता है। उसकी नेटवर्थ 60 करोड़ से अधिक है। उसकी नीच सोच और टिप्पणियों को सुनने और जुटने वाले बेशर्मों की अच्छी खासी तादाद है।
लगता है कि वो जमाना अब बीतने के कगार पर है, जब कॉमेडीयन का नाम लेते ही उस कलाकार का चेहरा आंखों के सामने थिरकने लगता था, जो अपनी भिन्न-भिन्न अदाओं और बोलने-बतियाने के तौर तरीकों से उदासी में भी खुशी के रंग भर देता था। रुआंसे चेहरे भी खिलखिलाने लगते थे। लोग उसकी मनोरंजित करने की कला को वर्षों तक याद रखते थे। व्यंग्य एक परिपूर्ण साहित्यिक विधा है, जिसमें उपहास, मजाक और आलोचना का सात्विक मिश्रण होता है। प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के अनुसार व्यंग्य लेखन एक गंभीर कर्म है। सच्चा व्यंग्य जीवन की समीक्षा होता है। विश्व विख्यात हास्य कवि काका हाथरसी का मानना था कि हास्य और व्यंग्य एक ही गाड़ी के दो पहिए हैं। हास्य के बिना व्यंग्य में मजा नहीं और व्यंग्य के बिना हास्य बेमज़ा हो जाता है। दोनों बराबर एक दूसरे का साथ दें, तभी जन-गण-मन के मनोरंजन की गाड़ी प्रभावी तरीके से चलती है, लेकिन इन दिनों कॉमेडी, व्यंग्य और हास्य के मंचों पर अथाह अश्लीलता और तयशुदा हस्तियों को अपमानित करने की प्रतिस्पर्धा सी चल पड़ी है। कुछ कॉमेडियन तो बाकायदा उन हस्तियां पर गंदी-गंदी उक्साऊ, भड़काऊ टिप्पणियां करते देखे जा रहे हैं, जिनके कद तक पहुंचना उनकी औकात में ही नहीं। फिर भी बेवजह खुन्नस निकाल कर अपनी खिल्ली उड़वा रहे हैं। धन लेकर कीचड़ उछालने का खेल खेलने वाले कुणाल कामरा नामक स्टैंडअप कामेडियन की दो टक्के की पूछ परख नहीं, लेकिन वह बड़े-बड़े प्रतिष्ठित नेताओं का मज़ाक उड़ाता रहता है। इसी से इसकी रोजी-रोटी चलती है। खरीदे हुए दर्शकों की तालियों से इसकी छाती चौड़ी हो जाती है। इसी बिकाऊ कॉमेडियन ने बीते माह इस पैरोडी के माध्यम से टोपी उछालने की जो दुष्टता की, वही उस पर अंतत: भारी पड़ गई,
‘‘ठाणे की रिक्शा
चेहरे पर दाढ़ी
आंखों पर चश्मा हाय!
एक झलक दिखलाए कभी
गुवाहाटी में छिप जाए।
मेरी नज़र में तुम देखों गद्दार नजर वो आए
मंत्री नहीं है, वो दल बदलू है
और कहा क्या जाए।
जिस थाली में खाये
उसमें ही छेद कर जाए।’’
फिल्म ‘दिल तो पागल है’ के गीत की उपरोक्त पैरोडी में कामरा ने भले ही किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन सजग लोगों को कामरा की ओछी नीयत को गहराई तक जानने-समझने में किंचित भी देरी नहीं लगी। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान उपमुख्यमंत्री को निशाना बनाकर की गई इस भद्दी अपमानजनक अक्षरावली से आगबबूला होकर शिवसैनिकों ने उस स्टुडियो में जमकर तोड़फोड़ कर डाली, जहां शो की शूटिंग की गई थी। कला के नाम पर ऐसी अभद्रता, कमीनगी, लुच्चागिरी और बदमाशी यकीनन अक्षम्य है। मंच पर खड़े होकर किसी व्यक्ति विशेष के शरीर से लेकर निजी जीवन पर भड़काऊ प्रहार करना व्यंग्य नहीं भड़वागिरी है। कॉमेडी के नाम पर यही काम और शरारत पर शरारत तो पिछले कई दिनों से नेहा ठाकुर नामक लोकगायिका भी करती चली आ रही है। जब देखो तब प्रधानमंत्री का मज़ाक उड़ाते हुए अपनी पीठ थपथपाने लगती है। दरअसल, इस नचनिया की डोर किसी और के हाथ में है। आसमान पर थूकने वाली यह बदतर गायिका भूल गई है कि वही थूक उसके चेहरे पर गिर रही है। जिसे वह बस चाटे जा रही है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर तो नेहा सिंह ने ऊल-जलूल पोस्ट की झड़ी लगा दी। राष्ट्रीय अखंडता को नुकसान पहुंचाने, सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने और देश की शांति भंग करने वाली नेहा की पोस्ट की दुश्मन देश पाकिस्तान ने तालियां बजा-बजाकर सराहना की। दुनिया की बहादुर नारी का खिताब तक दे डाला। पाकिस्तानी मीडिया ने भी उसकी खूब वाह-वाही की। देश के मान और सम्मान का हनन और पहलगाम में मारे गये पर्यटकों का अपमान करने वाली पोस्ट से आहत होकर देश के सजग कवि अमर प्रताप सिंह निर्भीक प्रचार की अपार भूखी-प्यासी नेहा सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया है। आतंकियों ने पर्यटकों को मारने से पहले उनका धर्म पूछा फिर उनके हिंदू होने पर गोलियों से भूना इस सच पर सवाल उठाने वाली हत्यारे, आतंकी पाकिस्तान की लाडली नेहा की तरह महाराष्ट्र के एक बड़बोले कांग्रेसी नेता विजय वडेट्टीवार ने भी अपनी राजनीति की दुकान चमकाने और खुन्नस निकालने के लिए नेहा की तर्ज पर दहाडते हुए कहा कि, आंतकियों के पास इतना वक्त ही कहां था जो पर्यटकों का धर्म पूछ-पूछ कर गोलियां चलाते। यानी पहलगाम में जिन पर्यटकों ने अपनों को गोली का निशाना बनते देखा वो झूठ बोल रहे हैं और ये खोखले बिकाऊ चेहरे सच्चे है?
कानपुर के शुभम द्विवेदी की 12 फरवरी को शादी हुई थी। शुभम और उनकी पत्नी ऐशान्या बहुत उमंगो-तरंगो के साथ पहलगाम घूमने गये थे। आतंकी ने शुभम की गोली मारकर हत्या कर दी। ऐशान्या ने रोते हुए बताया कि, शुभम अपनी बहन के साथ बैठे थे, इसी दौरान एक शख्स आया और उसने पूछा हिंदू हो या मुसलमान? हम उसका मकसद नहीं समझ पाए और हंसने लगे। तभी मैंने कहा कि भैया हम मुसलमान नहीं है। मेरा इतना भर कहना था कि उसने बंदूक निकाली और शुभम के सिर पर गोली मार दी। महाराष्ट्र के शहर डोंबिवली के निवासी संजय लेले, हेमंत जोशी और अतुल माने को भी आतंकवादियों ने बेरहमी से मार डाला। प्रत्यक्षदर्शी संजय लेले के बेटे हर्षल ने बताया कि, हम सब दोपहर को बैसरन घाटी पहुंचकर हंसते-मुस्कुराते हुए तस्वीरें ले रहे थे। कुछ देर के पश्चात वहां एकाएक गोलियों की आवाज सुनाई दी। हमें लगा कि शायद पर्यटनस्थल में कोई गेम चल रहा होगा, लेकिन अचानक फायरिंग तेज हो गई। तभी दो आतंकवादी चिल्लाने लगे, ‘आप लोगों ने आतंक मचा रखा है, हिंदू और मुसलमान अलग-अलग हो जाओ। फिर तुरंत पापा, चाचा और मामा को गोली मार दी। मेरा हाथ पापा के सिर के पास था। गोली मेरे हाथ को छूकर निकल गई।’ यह समय तो एकता और एकजुटता का है, लेकिन कुछ नीच अपनी नीचता से बाज नहीं आ रहे हैं। खुद को कानूनी शिकंजे में फंसते देख नेहा ठाकुर उन वकीलों के दरवाजों पर माथा टेक रही है, जो आतंकवादियों की पैरवी करने के लिए कुख्यात हैं। यही कांग्रेस के नेता और खरबपति वकील ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार की पीठ थपथपाने के लिए दौड़े-दौड़े चले आए थे।
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