Thursday, May 15, 2025

भारत माता की जय

नागपुर से दिल्ली की रेलयात्रा के दौरान उम्रदराज अब्दुल भाई से मेल-मुलाकात हुई। अब्दुल भाई वर्षों से रामनामी दुपट्टा बना कर बेचते चले आ रहे हैं। सनातन आस्था के सबसे बड़े समागम महाकुंभ के मेले में उन्होंने रामनामी दुपट्टे बेचकर लाखों रुपये की कमाई की। अब्दुल भाई के बनाये दुपट्टे देश के विभिन्न धार्मिक स्थलों में पहुंचने वाले श्रद्धालु निशानी के तौर पर ले जाते हैं। प्रयागराज में भी अनेकों लोगों ने अब्दुल भाई के बनाये दुपट्टे खुशी-खुशी खरीदे और अपने-अपने शहर-गांव में जाकर रिश्तेदारों तथा मित्रों को भेंट स्वरूप दिए। अब्दुल भाई बलिया के निकट स्थित जिस गांव में रहते हैं, वह हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है। इस गांव में एक साथ मंदिर, मस्जिद और मजार बने हुए हैं। हिंदु और मुस्लिम में कोई भेदभाव नहीं है। हिंदू और मुस्लिम एक साथ मिलकर यहां सभी त्योहार मनाते हैं। यहां मुस्लिम के किसी भी कार्यक्रम में हिन्दू और हिंदू के कार्यक्रम में मुसलमान खुशी-खुशी शामिल होकर आपसी प्रेम और सद्भाव को साकार करते हैं। यहां के स्त्री-पुरुषों, बच्चों, बूढ़ों का बस यही मानना है कि मंदिर और मस्जिद में कोई अंतर नहीं। दोनों ही आस्था और विश्वास के केंद्र हैं। किसी का भगवान मंदिर में तो किसी का भगवान मस्जिद में है। पहलगाम में हुई दिल दहला देने वाली घटना से अब्दुल भाई बेहद आहत हुए। उनका यह कहना भी मेरे मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ गया कि देश के अस्सी प्रतिशत हिंदू-मुसलमान एकता के सूत्र से बंधे हैं। भारतवर्ष में पाकिस्तान की तुलना में अधिक मुसलमान रहते हैं। उनके लिए देश आपसी सद्भाव के शत्रुओं और इधर-उधर की खबरों के कोई मायने नहीं हैं। उनके लिए भारत के हिन्दू-मुसलमान न कल जुदा थे और न ही आज एक-दूसरे से अलग हैं। अपवाद अपनी जगह हैं। 

22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकवादियों के हमले में जिन 26 निर्दोष भारतीयों को अपनी जान गंवानी पड़ी, उन्हीं में शामिल थे भारतीय नौसेना के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल। शादी के महज छह दिन बाद अपने पति से हमेशा-हमेशा के लिए जुदा कर दी गई हिमांशी की पति के शव के साथ बैठी तस्वीर ने पत्थर दिल इंसान की आंखों को भी नम कर दिया। हिमांशी पर क्या बीती होगी उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इस वीर भारतीय नारी ने अपना सुहाग उजड़ने के चंद दिनों बाद यह कहा कि, ‘हम नहीं चाहते कि लोग भारतीय मुसलमानों या कश्मीरियों के खिलाफ जाएं। हम केवल और केवल शांति चाहते हैं। बेशक, हम न्याय चाहते हैं। जिन्होंने गलत किया है उन्हें अवश्य सजा मिलनी चाहिए।’ लेकिन किसी भी बेकसूर को मुसलमान होने की वजह से सताना और प्रताड़ित करना गलत है। एकाएक विधवा हुई हिमांशी से कल तक तो सभी सहानुभूति दर्शा रहे थे। उसकी तथा उसके पति विनय नरवाल की तस्वीर को सोशल मीडिया पर वायरल करते हुए तुरंत इंसाफ की मांग करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे, लेकिन जैसे ही हिमांशी का एकता और सद्भाव वाला बयान आया तो कुछ लोग नफरती भाषा का इस्तेमाल करते हुए उन्हें गंदी-गंदी गालियां देते हुए उनके देशप्रेम पर ही सवाल उठाने लगे!

आप्रेशन सिंदूर को अंजाम देकर भारत के वीर सैनिकों ने पाकिस्तान और पीओके में स्थित 9 आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। बहुत सावधानी से विचार विमर्श के बाद भारत की फौलादी सेना ने 100 आतंकी मार गिराए और 40 सैनिकों को ढेर कर पाकिस्तान को आईना दिखा दिया। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध फिलहाल कुछ शर्तों के साथ स्थगित हो गया है। भारतीय सैनिकों को आतंकवाद के पोषक पाकिस्तान के होश ठिकाने लगा दिये हैं। फिर भी कपटी, अहसान फरामोश पाकिस्तान का कोई भरोसा नहीं। कुत्ते की पूंछ से भी बदतर छवि वाले पाकिस्तान के हुक्मरानों का युद्ध लड़ने का नशा भारतीय सेना ने तीन-चार दिनों में उतार दिया। पहलगाम में घूमने के लिए पहुंचे पर्यटकों पर आतंकी हमले के बाद देश का जन-जन गुस्से की आग में जल रहा था। भारत से टकराव में पाक ने इतना कुछ खोया है कि उसे संभलने में कई साल लगेंगे। गुस्साये भारतवासी तो पाकिस्तान की पूरी तबाही के इंतजार में थे। एक जंग सीमा पर लड़ी जा रही थी और दूसरा महायुद्ध आम नागरिकों के दिलो-दिमाग में चल रहा था। जिस पर अभी तक विराम नहीं लगा है। 

कई भारतीय मानते हैं कि पाकिस्तान को नेस्तनाबूत करने के मौके को गंवा दिया गया है। सोशल मीडिया पर अपने दांव पेंच दिखाने वाले कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने नरेंद्र मोदी को कमजोर प्रधानमंत्री दर्शाने का अभियान चला रखा है। इसी के लिए वे जन्मे और जिन्दा हैं। उन्होंने मोदी की तुलना में इंदिरा गांधी को शक्तिशाली बताते हुए उनकी वो चिट्ठी भी वायरल कर दी, जो 1971 की लड़ाई के समय तब के अमेरिकी राष्ट्रपति को लिखी थी, जिसमें उनके दिए गए युद्ध विराम के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। पाकिस्तान के साथ युद्ध स्थगित होने के बाद कांग्रेस के कुछ नेताओं के तेवर बदलने में किंचित भी देरी नहीं लगी। वो इंदिरा गांधी के तराने गाते हुए याद दिलाने लगे कि, इंदिरा गांधी के दम का ही प्रतिफल था कि 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान के 93 हजार से ज्यादा सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण करने को विवश होना पड़ा था। उस बहादुर नारी ने ही उस समय बांग्लादेश बनवाने का साहस दिखाया था। जवाब में अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने के रोगी कांग्रेसियों को यह भी याद दिलाया जा रहा है कि इंदिरा गांधी के समय सेना ने जो युद्ध में हासिल किया था, उसे शिमला समझौते में गंवा भी तो दिया था। यह हिंदुस्तान है। यहां आरोप-प्रत्यारोप की हवा और आंधी-तूफान तो चलते ही रहते हैं। कुछ लोगों की रोजी-रोटी इसी की बदौलत चलती है। मोदी अमेरिका के दबाव में आए या उसके सुझाव को स्वीकारा, इसका भी उत्तर आने वाला वक्त दे ही देगा, लेकिन एक सच यह भी जान लें कि, यदि युद्ध पर विराम नहीं लगता और बात परमाणु युद्ध तक पहुंच जाती तो दोनों देशों में तबाही मच जाती। कम-अज़-कम दोनों देशों में दस-बारह करोड़ इंसानों की तुरंत मृत्यु हो सकती थी। असंख्य लोगों के अंधे, बहरे और अक्षम होने के साथ-साथ जलवायु इतनी विषैली हो जाती, जिससे जिन्दा बचे इंसानों और जीव-जंतुओं का ढंग से सांस लेना और जीना बेहद मुश्किल हो जाता। ऐसी भयावह स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने तथा देश को बार-बार भ्रमित करने वाले आतंकीस्तान के शुभचिंतक काले कोट धारी, विदेशी फंड से पल रहे बहुरुपियों पत्रकार, संपादक, नेता और तथाकथित समाज सेवक मोदी को ही करोड़ों लोगों का हत्यारा घोषित कर सड़कों पर नंग-धड़ंग नाचते हुए तबला बजाते। कई तो भारत से ज्यादा पाकिस्तान में हुई मौतों और तबाही पर छाती पीटते हुए मातम मनाते नज़र आते। जिसका जो पेशा है, उसे वह कैसे छोड़ सकता है? देश को तोड़ने वाली ताकतें कितना भी जोर लगा लें लेकिन सफल नहीं हो सकतीं। भारतीय सेना का विश्व में कोई सानी नहीं। सभी भारतीय उसके हौसले, समर्पण के प्रति नतमस्तक हैं। प्रदेश के सजग, संवेदनशील कवि, गज़लकार अविनाश बागड़े की लिखी इन पंक्तियों के साथ जय हिंद, वंदेमातरम...

‘‘थे सेना के संग खड़े,

देने को आधार।

जन-जन का है मान रही,

भारत माँ आभार॥

भले अचानक बंद हुआ,

जिस कारण भी युद्ध।

मगर एकता देश की

स्वयं सिद्ध साकार॥

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