Thursday, May 2, 2013

कहां से आते हैं बलात्कारी?

पांच साल की बच्ची को तो कुछ भी पता नहीं होता। वह तो सिर्फ अपने मां-बाप, भाई-बहनों और अपने करीबी रिश्तेदारों के ही करीब होती है। उन्हीं के दुलार-प्यार और ममता की छाया में खेलते-कूदते हुए धीरे-धीरे बढी होना शुरू करती है। उसे तो इस बात की कल्पना भी नहीं होती कि उसके इर्द-गिर्द हैवान और शैतान भी बसते हैं। शैतानों को ऐसी मासूम बच्चियों के साथ दुराचार करते समय अपने घर-परिवार की बेटियां याद क्यों नहीं आतीं? हवस की आग में वे यह क्यों भूल जाते हैं कि वे जानवर की नहीं, इंसान की औलाद हैं? वैसे ऐसे दरिंदो की तुलना जानवरों से करना भी बेमानी है क्योंकि जानवर भी ऐसी नीच हरकतें नहीं करते। दिल्ली में पांच वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म करने वाले मनोज और प्रदीप ने ब्लू फिल्म देखने के बाद बडी आसानी से क्रुर कर्म को अंजाम दे डाला। मनोज को तो अपने गांव के घर में बेफिक्री की नींद भी आ गयी थी।
बलात्कार पीडि‍ता बच्ची के पिता की नींद उड चुकी है। उन्हें बदनामी का डर सता रहा है। एक असहाय पिता का कहना है कि अब हम गांधीनगर का इलाका ही छोड देंगे। इतनी बदनामी के बाद वहां रहना मुश्किल है। गांधीनगर की वह गली, घर और उस दरिंदे का कमरा देखकर मन विचलित होने लगता है। असहनीय पीडा के पहाड के बोझ तले दबे पिता को अपनी बिटिया के ठीक होने का बेसब्री से इंतजार है। बेटी के स्वस्थ होने के बाद वह इस इलाके की परछायी से भी दूर रहना चाहता है। कामुक दरिंदों ने उसकी बेटी को ऐसा दर्द दिया है जिसे वह शायद ही कभी भूल पाए। पिता को इस बात की भी चिं‍ता है कि कहीं लोग उसकी बेटी का जीना हराम न कर दें। स्कूल में पढाई-लिखायी के दौरान ताने मारे जाने का भय भी पिता को डराता है। पिता को यह चिं‍ता भी खाये जा रही है कि अगर बेटी इस हादसे को नहीं भूल पायी और उसके दिलो-दिमाग पर बलात्कारी दरिंदे की हैवानियत हावी रही तो वह अपनी उम्र कैसे काट पायेगी? दूसरी तरफ बलात्कारी मनोज अपने किये पर कतई शर्मिंदा नहीं है। उसे जब तिहाड जेल में लाया गया तो उसके चेहरे पर शातिराना मुस्कान थी। मनोज के प्रति कैदियों में जबरदस्त गुस्सा है। कुछ कैदियों ने उसकी पिटायी भी कर दी। गुस्साये कैदी तो इस हैवान को ऐसा सबक सिखाना चाहते हैं कि जिसे वह आखिरी सांस तक भूला न पाए। दिल्ली तो बलात्कारों की कालिख से सतत दागदार होती चली आ रही है, अब तो छोटे-छोटे शहर भी बच्चियों के साथ होने वाले बलात्कार के कहर की मार झेलने को विवश होने लगे हैं।
मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के घनसौर थाना क्षेत्र में एक वहशी ने चार साल की मासूम बच्ची पर बलात्कार कर उसे मरणासन्न स्थिति में पहुंचा दिया। बच्ची नागपुर के एक अस्पताल में मौत से जंग लड रही है। अबोध बच्चियों के साथ हो रहे दुराचारों ने आम और खास लोगों में आक्रोश भर दिया है। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन को कभी आपा खोते नहीं देखा गया। पर ऐसे बलात्कारों ने उन्हें भी स्तब्ध कर दिया है। उनका कहना है कि ऐसे व्याभिचारियों को जनता के बीच छोड देना चाहिए। वही इनके साथ सही न्याय करेगी। महानायक ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि ऐसी घटनाओं से मैं स्तब्ध हूं। मेरी आवाज नहीं निकल रही है। यह दरिंदे जानवर कहलाने के लायक भी नहीं हैं। जानवरों के भी कुछ नियम-कायदे होते हैं। आखिर क्या हो गया है हमारे समाज और समुदाय को? हम कैसे और क्यों इन नृशंस और वीभत्स कृत्यों के सामने असहाय हैं? कौन हैं ये लोग और कहां से आते हैं? किस मां ने इन्हें जन्म दिया है और ये कैसे पले बढे हैं? किस वातावरण में रहे हैं यह?
देश के लोग बलात्कारियों के प्रति किस कदर गुस्से में उबल रहे हैं इसका ज्वलंत उदाहरण बीते सप्ताह राजस्थान के भीलवाडा शहर में देखने में आया। एक युवती बाडे में गाय का दूध निकालने के लिए गयी थी। उसे अकेली देख दो जाटों ने उसे दबोच लिया और दुष्कर्म कर भाग खडे हुए। लोगों को जैसे ही इसकी खबर लगी तो वे आग-बबूला हो उठे। एक बलात्कारी किसी तरह से पीडि‍ता के पिता और भाई के हाथ लग गया। उन्होंने उसे पीट-पीटकर मार डाला और कान और नाक भी काट डाले।
दिल्ली में पांच वर्षीय बालिका को अपनी हैवानियत का शिकार बनाने वाले मुख्य आरोपी मनोज के वृद्ध दादा-दादी भी अपने इस व्याभिचारी पोते को फांसी पर लटकते देखना चाहते हैं। मनोज की गिरफ्तारी के बाद उसके गांव के लोगों में भी आक्रोश है। आसपास के गांव वाले तो बलात्कारी के रिश्तेदारों को भी कोस रहे हैं। गांव के मुखिया की अध्यक्षता में बैठक कर मनोज और उसके घरवालों का हुक्का-पानी बंद करने का निर्णय भी ले लिया गया है।
यकीनन बच्चियों के साथ लगातार हो रही दरिंदगी ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। देशवासी भी शर्मसार हैं। देश की राजधानी में चलती बस में सामूहिक दुष्कर्म की जघन्य घटना के बाद जिस तरह से लोग सडकों पर उतरे थे और सत्ताधीशों ने आश्वासन दिये थे उससे स्थिति में सुधार होने की उम्मीद जागी थी। पर दुराचारियों को तो 'कडा कानून' भी डरा नहीं पाया। तभी तो पिछले चार माह में दिल्ली में ही बलात्कार के ४०० मामले सामने आये हैं। बच्चियों पर होने वाले बलात्कारों में राजधानी जिस तरह से अव्वल नंबर पर है उससे तो यही लगता है कि लोगों के दिलो-दिमाग से पुलिस और कानून का भय नदारद हो चुका है। जो पुलिस बलात्कार के मामले दर्ज करने में आनाकानी करती हो और बलात्कार पीडि‍ता के परिवार को दो हजार रुपये की रिश्वत देकर हमेशा-हमेशा के लिए मुंह बंद कर लेने की हिदायत देती हो उससे कानून के पालन की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है?

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