मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर पाकिस्तान हिंदुस्तान का शुभचिंतक होता तो उसका नाम दुनिया के खुशहाल देशों में शुमार होता। पाकिस्तान के खुदगर्ज शासकों ने भारत में बम-बारूद बिछवाने और आतंक का कहर बरपाने को इस कदर प्राथमिकता दी कि वे अपने ही देशवासियों के हित को नजरअंदाज कर गए। उन्हें भारत की खुशहाली तो कभी रास ही नहीं आयी। अपने देश की बदहाली भी दूर नहीं कर पाये। भारतवर्ष के हुक्मरानों ने पाक के शासकों को अमन के रास्ते पर लाने की लाख कोशिशें कीं। पर कुत्ते की पूंछ टेढी की टेढी ही रही। दरअसल हमारे देश के सत्ताधीश शातिर पडौसी मुल्क को जानने-परखने के बाद भी मौके पर मौके देते रहे और वह अहसान फरामोश इसे उनकी कमजोरी ही समझता रहा। उसने हमारी संसद पर हमला कराया। मुंबई पर आतंकी आक्रमण करवाकर निर्दोषों का लहू बहाया, जानें लीं। देश में जहां-तहां उसी ने बम-बारूद बिछवाये और खून खराबे करवाये। यह पाकिस्तान ही है जिसने मुंबई धमाकों को अंजाम देने वाले राष्ट्रद्रोही दाऊद इब्राहिम और उसके गुर्गों को पनाह दी। यह झूठा और फरेबी मुल्क हमेशा यही कहता आया है कि भारतवर्ष में होने वाली आतंकी गतिविधियों में उसका कभी कोई हाथ नहीं रहा। पर जैसे ही अजमल कसाब को फांसी पर लटकाया तो वहां के शैतान शासको में खलबली मच गयी। उन्हे अपने लिखाये-पढाये अजमल कसाब को कुत्ते की मौत मार दिये जाने पर बेहद पीडा हुई। वे और तो कुछ कर नहीं सकते थे। इसलिए कायरों ने पाकिस्तान के लाहौर की जेल में सजा काट रहे भारतीय कैदी सरबजीत सिंह को बुरी तरह से पिटवा कर मरणासन्न स्थिति में पहुंचा दिया और आखिरकार उसकी मौत हो गयी। कुछ दिन पहले एक अन्य हिंदुस्तानी कैदी चमेल सिंह को भी ऐसी ही खूंखार जानलेवा दरिंदगी का शिकार बनाकर मौत के घाट उतार दिया गया था। गिद्धों की तरह उसके शरीर के कुछ अंग भी नोच खाये गये। यह है पाकिस्तान का असली चेहरा। दूसरी तरफ हिंदुस्तान है कि जिसने पाकिस्तान के ९० हजार सैनिकों को गिरफ्तार करने के बाद भी माफ कर दिया था और सही-सलामत उनके देश भेज दिया था। ऐसे मामलों में हम भारतवासी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयायी हैं। अहिंसा के सच्चे पुजारी हैं और वो दो टक्के का देश पाकिस्तान उस जिन्ना को अपना आदर्श मानता है जिसने भारत के विभाजन के बीज बोये थे। उसके अंदर तो हिंदुस्तान के प्रति नफरत ही भरी हुई थी। वही नफरत आज भी पाक के हुक्मरानो में जिन्दा है।
२६ जून २०१२ को देश के तमाम अखबारों और न्यूज चैनलों पर यह खबर आयी थी कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सरबजीत सिंह की मौत की सजा को उम्र कैद में बदल दिया है। पहले से ही २२ साल की सजा काट चुकने के कारण उसकी रिहाई तय मानी जा रही थी। उसके गांव के लोगों ने खुशियां मनायी थीं। भारत सरकार ने भी खुशी जाहिर की थी। बाद में कोई ऐसी खिचडी पकी कि उसकी रिहाई अटकी की अटकी रह गयी। गौरतलब है कि १९९० में लाहौर और फैसलाबाद जिले में सीरियल धमाके हुए थे जिनमें कुल मिलाकर १४ लोग अल्लाह को प्यारे हो गये थे। धमाकों की जांच के दौरान पाकिस्तान की पुलिस को पता चला था कि इन धमाकों के पीछे किसी मनजीत सिंह नामक शख्स का हाथ है। इन धमाकों के तीन महीने बाद सरबजीत सिंह शराब के नशे में रास्ता भटक कर पाकिस्तानी क्षेत्र में जा पहुंचा। पुलिस ने उसे मनजीत करार देकर हथकडिंयां पहना दीं। १९९१ में सरबजीत को फांसी की सजा सुना दी गयी। पाकिस्तान की सरकार चाहती तो सरबजीत पर रहम दिखा सकती थी पर उसके मन में भडकने वाली प्रतिशोध की आग कभी ठंडी नही हो पायी। उसकी हमेशा तमन्ना रही है कि उसके द्वारा भेजे जाने वाले अजमल कसाब जैसे आतंकी हत्यारे भारत के लोगों की जानें लेते रहें और हमारी सरकार चुपचाप बैठी रहे। कानून भी उन्हें माफ कर दे। पर ऐसा कैसे हो सकता है? पाकिस्तानी सरकार वहां के उग्रपंथियों के हाथों का खिलौना बन कर रह गयी है। हाल ही में जिन अपराधियों ने सरबजीत पर जानलेवा हमला कर उसकी जान ले ली, वे पहले भी उसे अपना शिकार बना चुके हैं। ऐसे में यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं है कि सरबजीत को मौत के घाट उतारने की साजिश रची गयी। अगर वहां की सरकार की नीयत साफ होती तो सरबजीत को पूरी सुरक्षा दी जाती। पाकिस्तान के ही कुछ अखबारों में छपी खबरें हकीकत से रूबरू करा देती हैं। सरबजीत सिंह लाहौर की जिस जेल में बंद था वहां पर बिना अधिकारियों की मिलीभगत के हमला हो पाना संभव ही नहीं था। सरबजीत पर कातिलाना हमला संसद पर हमले के दोषी आतंकवादी अफजल गुरु को नई दिल्ली के तिहाड जेल में दी गयी फांसी की प्रतिक्रिया है...।
दरअसल पाकिस्तान की मंशा तो सरबजीत को फांसी पर लटकाने की थी। अफजल की फांसी के विरोध में पाकिस्तान में भारत विरोधी प्रदर्शन भी हुए थे। यहां तक कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अफजल को श्रद्धांजलि भी दी थी। भारत की संसद पर हमला करने वाला आतंकी पाकिस्तानी जनता और वहां के राष्ट्रपति के लिए कितना प्रिय था उसका भी इससे पता चलता है। मुंबई आतंकी हमलों के दोषी आमिर अजमल कसाब को भी भारत में फांसी दिये जाने के बाद बिलकुल ऐसा ही माहौल बना और बनाया गया था। ऐसे में यह मान लेना गलत होगा कि सरबजीत पर किया गया जानलेवा हमला कोई सामान्य घटना थी।
२६ जून २०१२ को देश के तमाम अखबारों और न्यूज चैनलों पर यह खबर आयी थी कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सरबजीत सिंह की मौत की सजा को उम्र कैद में बदल दिया है। पहले से ही २२ साल की सजा काट चुकने के कारण उसकी रिहाई तय मानी जा रही थी। उसके गांव के लोगों ने खुशियां मनायी थीं। भारत सरकार ने भी खुशी जाहिर की थी। बाद में कोई ऐसी खिचडी पकी कि उसकी रिहाई अटकी की अटकी रह गयी। गौरतलब है कि १९९० में लाहौर और फैसलाबाद जिले में सीरियल धमाके हुए थे जिनमें कुल मिलाकर १४ लोग अल्लाह को प्यारे हो गये थे। धमाकों की जांच के दौरान पाकिस्तान की पुलिस को पता चला था कि इन धमाकों के पीछे किसी मनजीत सिंह नामक शख्स का हाथ है। इन धमाकों के तीन महीने बाद सरबजीत सिंह शराब के नशे में रास्ता भटक कर पाकिस्तानी क्षेत्र में जा पहुंचा। पुलिस ने उसे मनजीत करार देकर हथकडिंयां पहना दीं। १९९१ में सरबजीत को फांसी की सजा सुना दी गयी। पाकिस्तान की सरकार चाहती तो सरबजीत पर रहम दिखा सकती थी पर उसके मन में भडकने वाली प्रतिशोध की आग कभी ठंडी नही हो पायी। उसकी हमेशा तमन्ना रही है कि उसके द्वारा भेजे जाने वाले अजमल कसाब जैसे आतंकी हत्यारे भारत के लोगों की जानें लेते रहें और हमारी सरकार चुपचाप बैठी रहे। कानून भी उन्हें माफ कर दे। पर ऐसा कैसे हो सकता है? पाकिस्तानी सरकार वहां के उग्रपंथियों के हाथों का खिलौना बन कर रह गयी है। हाल ही में जिन अपराधियों ने सरबजीत पर जानलेवा हमला कर उसकी जान ले ली, वे पहले भी उसे अपना शिकार बना चुके हैं। ऐसे में यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं है कि सरबजीत को मौत के घाट उतारने की साजिश रची गयी। अगर वहां की सरकार की नीयत साफ होती तो सरबजीत को पूरी सुरक्षा दी जाती। पाकिस्तान के ही कुछ अखबारों में छपी खबरें हकीकत से रूबरू करा देती हैं। सरबजीत सिंह लाहौर की जिस जेल में बंद था वहां पर बिना अधिकारियों की मिलीभगत के हमला हो पाना संभव ही नहीं था। सरबजीत पर कातिलाना हमला संसद पर हमले के दोषी आतंकवादी अफजल गुरु को नई दिल्ली के तिहाड जेल में दी गयी फांसी की प्रतिक्रिया है...।
दरअसल पाकिस्तान की मंशा तो सरबजीत को फांसी पर लटकाने की थी। अफजल की फांसी के विरोध में पाकिस्तान में भारत विरोधी प्रदर्शन भी हुए थे। यहां तक कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अफजल को श्रद्धांजलि भी दी थी। भारत की संसद पर हमला करने वाला आतंकी पाकिस्तानी जनता और वहां के राष्ट्रपति के लिए कितना प्रिय था उसका भी इससे पता चलता है। मुंबई आतंकी हमलों के दोषी आमिर अजमल कसाब को भी भारत में फांसी दिये जाने के बाद बिलकुल ऐसा ही माहौल बना और बनाया गया था। ऐसे में यह मान लेना गलत होगा कि सरबजीत पर किया गया जानलेवा हमला कोई सामान्य घटना थी।
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