मंत्री जी उदास थे। गुस्सा आ रहा था। एकांत में जी भरकर रो लेने की इच्छा भी हो रही थी। इस साले भांजे ने क्या कर डाला! रिश्वत लेने का सलीका भी भूल गया। मात्र ९० लाख की घूस लेते दबोच लिया गया। बेवकूफ को समझाया भी था कि रंगे हाथ पकडे जाने से बचना। इसकी जल्दबाजी ने मेरी रेलमंत्री की कुर्सी ही छीन ली। दूसरे मंत्रियों के दामाद और साले अरबों-खरबों खाते हैं और डकार भी नहीं लेते। इसने तो सबकुछ उगल डाला। भरे बाजार मेरे कपडे उतरवा दिये। सोनिया जी और डॉ. मनमोहन को मुझ पर कितना यकीन था। यह भरोसा वर्षों की मेहनत की बदौलत बना था। एक ही झटके में सबकुछ तबाह हो गया। जैसे कोई भूचाल आया हो और कई आलीशान इमारतों को धराशायी कर चलता बना हो। मंत्री जी ने तो कई योजनाएं बना रखी थीं। भारतीय रेल के दोहन के बडे-बडे मंसूबे पाल रखे थे। पांच-सात महीने में अपनी पंद्रह पीढियों के भविष्य को सुरक्षित कर गुजरने की ठानी थी। पार्टी को भी उनसे बहुतेरी उम्मीदें थीं। किसी भी रेल मंत्री के लिए अरबो रुपये का पार्टी फंड जुटाना बाएं हाथ का खेल होता है। रामविलास पासवान से लेकर लालूप्रसाद यादव तक सबने रेल को नोचा है। तभी तो सत्ता से बाहर रहने के बावजूद अपनी राजनीति की दूकानों को शान से चलाते चले आ रहे हैं।
मंत्री जी के दिमाग की सडक पर दौडने वाली रेल की तो जैसे ब्रेक ही फेल हो गयी। वह तो भागे ही चली जा रही थी। उनके शुभचिंतको ने उन्हे घेर लिया। परिवार के वर्षों पुराने पुरोहित ने कुर्सी बचाने का एक अचूक उपाय बताया। मंत्री जी ने भी फौरन एक हट्ठा-कट्ठा बकरा मंगवा लिया। उन्हें यकीन था कि बकरे की बलि देने से मैडम सोनिया और पीएम मनमोहन का दिमाग दुरुस्त हो जायेगा और वे अपने रेल मंत्री की बलि लेने का विचार त्याग देंगे। यह तो बकरे की किस्मत अच्छी थी कि न्यूज चैनल वालों की उस पर नजर पड गयी। बकरा कुर्बान होने से बच गया। मंत्री जी ने बडी सज्जनता दिखायी। इस काम में उनकी धर्मपत्नी ने भी पूरा साथ दिया। अपने पति देव को बकरे के सामने नतमस्तक करवा कर मीडिया तक यह संदेश पहुंचा दिया कि हमारा इरादा वैसा नहीं था जैसा वे सोच रहे थे। मंत्री जी न्यूज चैनल वालों की सक्रियता से बौखला उठे। उन्होंने आखिरकार कह डाला कि मीडिया ने ही उनकी बलि ली है। मीडिया अगर उछल-कूद नहीं मचाता तो आलाकमान के दिमाग में उनका इस्तीफा मांगने का विचार ही नहीं आता।
वैसे तो ऐसे मामलों में मीडिया पहले भी कई सफेदपोशों को नाराज कर चुका है। इस सदी के तथाकथित महानायक ने भी तब मीडिया को ही बकवासी ठहराया था जब उन्होंने अपनी होने वाली बहू ऐश्वर्या के मांगलिक दोष निवारण के लिए उसकी शादी पेड से करवायी थी। इस देश में अभिनेता को भगवान मानने वालों की अच्छी-खासी संख्या रही है। उन दिनों एक तरफ उनके नाम पर मंदिर बनाने की खबरें मीडिया में छायी थीं तो दूसरी तरफ खुद भगवान अपने परिवार की सुख-शांति के लिए देशभर के मंदिरों और मजारों पर माथा टेकते घूम रहा था। देश के कुछ बुद्धिजीवियों ने नये भगवान की आलोचना में जमीन-आसमान एक कर दिया था। साहित्यिक पत्रिका हंस के संपादक राजेंद्र यादव ने कटाक्ष करते हुए लिखा था: ''लाखों प्रशंसको के आदर्श पुरुष का दुनियाभर के भगवानों, देवी, देवताओं से आशीर्वाद लेते घूमना दर्शाता है कि यह शख्स दिखावे का नायक है। दरअसल यह तो एक घोर अंधविश्वासी, कायर और भयग्रस्त आम इंसान है। इसके मन में यह बात घर कर गयी है कि अपनी होने वाली बहू की पेड से शादी करवाने और पत्थर की मूर्तियों पर करोडों का चढावा चढाने के बाद संभावित तकलीफों से छुटकारा पा लेगा और दुनियाभर की तमाम खुशियां इसकी झोली में समां जाएंगी।''
कहानीकार राजेंद्र यादव अमिताभ बच्चन के पिताश्री हरिवंशराय बच्चन की पीढी के सजग साहित्यकार रहे हैं। उन्होंने उन्हें करीब से देखा और समझा था। तभी तो वे यह बताने से भी नहीं चूके कि अमिताभ बच्चन तो अपने पिता को अपना आदर्श मानते हैं। ऐसे में वे कैसे भूल गये कि उनके पिता नास्तिक थे। अंधविश्वास से उनका कोई लेना-देना नहीं था। ऐसे कवि पुत्र का विभिन्न देवी-देवताओं से प्रमाणपत्र बटोरने फिरना यही दर्शाता है कि एक ढोंगी बेटा अपने पिता के जीवन मूल्यों का सरासर अपमान कर रहा है। देशभर के और भी कई विद्धानों ने भयग्रस्त नायक पर जमकर तीर चलाये। हर किसी ने यही कहा कि मंदिरों और मजारों को करोडों की दान-दक्षिणा देने वाला यह शख्स वास्तव में अगर सच्चा नायक होता तो इस धन को गरीबों, बदहालों के विकास और उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए अर्पित कर देता। पर्दे के नायक ने घोर आडंबरबाजी कर अपना असली चेहरा दिखा दिया है। बुद्धिजीवियों की आलोचनाओं की तीखी बौछारों ने अमिताभ को इस कदर आहत किया था कि आखिर उन्हें अपने पिता की लिखी कविता की इन पंक्तियों का सहारा लेना पडा था:
''छुपाना जानता तो, जग मुझे साधु समझता
शत्रु बन गया है, छल रहित व्यवहार मेरा''
अमिताभ ने उपरोक्त पंक्तियों के माध्यम से यह बताने की पुरजोर कोशिश की, कि, मुझे लुकाना और छुपाना नहीं आता। मैं ऐसा ही हूं। यह लोग ही हैं जो जब-तब उनकी तुलना उनके महान पिता हरिवंशराय बच्चन से करने लगते हैं। नायक ने इशारों ही इशारों में यह भी कहा कि जो छुपाते हैं लोग उन्हें सिर पर बिठाते हैं और साधु-संत का दर्जा देते नहीं थकते। कोई छल-कपट न करते हुए मैंने वही किया जो मैंने चाहा और मुझे अच्छा लगा। ऐसे में मैं बुरा हो गया...!
बहरहाल, अमिताभ बच्चन तो मंजे हुए अभिनेता हैं। कइयों के भगवान भी हैं जो उन्हें सतत पूजते हैं। भगवान कभी झूठ नहीं बोला करते। भगवान गलत भी नहीं हो सकते। देश के भूतपूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव भले ही राजनीति के जोकर हैं पर वे भी कभी-कभी सच बोल दिया करते हैं। उन्होंने रहस्योद्घाटन किया है कि जब वे देश के रेल मंत्री थे तब उन्होंने रेलभवन में विश्वकर्मा और कृष्ण भगवान की मूर्तियां स्थापित करवायी थीं। उन्होंने उनसे कह रखा था कि मेरी और रेल की देखभाल की जिम्मेदारी आप पर ही है...। विद्वान नेता लालूप्रसाद यादव यकीनन यह कहना चाहते हैं कि अगर पवन बंसल ने मुझे अपना गुरु माना होता और मेरे पदचिन्हों पर चलते तो उनकी सत्ता और इज्जत पर कभी कोई आंच नहीं आती।
मंत्री जी के दिमाग की सडक पर दौडने वाली रेल की तो जैसे ब्रेक ही फेल हो गयी। वह तो भागे ही चली जा रही थी। उनके शुभचिंतको ने उन्हे घेर लिया। परिवार के वर्षों पुराने पुरोहित ने कुर्सी बचाने का एक अचूक उपाय बताया। मंत्री जी ने भी फौरन एक हट्ठा-कट्ठा बकरा मंगवा लिया। उन्हें यकीन था कि बकरे की बलि देने से मैडम सोनिया और पीएम मनमोहन का दिमाग दुरुस्त हो जायेगा और वे अपने रेल मंत्री की बलि लेने का विचार त्याग देंगे। यह तो बकरे की किस्मत अच्छी थी कि न्यूज चैनल वालों की उस पर नजर पड गयी। बकरा कुर्बान होने से बच गया। मंत्री जी ने बडी सज्जनता दिखायी। इस काम में उनकी धर्मपत्नी ने भी पूरा साथ दिया। अपने पति देव को बकरे के सामने नतमस्तक करवा कर मीडिया तक यह संदेश पहुंचा दिया कि हमारा इरादा वैसा नहीं था जैसा वे सोच रहे थे। मंत्री जी न्यूज चैनल वालों की सक्रियता से बौखला उठे। उन्होंने आखिरकार कह डाला कि मीडिया ने ही उनकी बलि ली है। मीडिया अगर उछल-कूद नहीं मचाता तो आलाकमान के दिमाग में उनका इस्तीफा मांगने का विचार ही नहीं आता।
वैसे तो ऐसे मामलों में मीडिया पहले भी कई सफेदपोशों को नाराज कर चुका है। इस सदी के तथाकथित महानायक ने भी तब मीडिया को ही बकवासी ठहराया था जब उन्होंने अपनी होने वाली बहू ऐश्वर्या के मांगलिक दोष निवारण के लिए उसकी शादी पेड से करवायी थी। इस देश में अभिनेता को भगवान मानने वालों की अच्छी-खासी संख्या रही है। उन दिनों एक तरफ उनके नाम पर मंदिर बनाने की खबरें मीडिया में छायी थीं तो दूसरी तरफ खुद भगवान अपने परिवार की सुख-शांति के लिए देशभर के मंदिरों और मजारों पर माथा टेकते घूम रहा था। देश के कुछ बुद्धिजीवियों ने नये भगवान की आलोचना में जमीन-आसमान एक कर दिया था। साहित्यिक पत्रिका हंस के संपादक राजेंद्र यादव ने कटाक्ष करते हुए लिखा था: ''लाखों प्रशंसको के आदर्श पुरुष का दुनियाभर के भगवानों, देवी, देवताओं से आशीर्वाद लेते घूमना दर्शाता है कि यह शख्स दिखावे का नायक है। दरअसल यह तो एक घोर अंधविश्वासी, कायर और भयग्रस्त आम इंसान है। इसके मन में यह बात घर कर गयी है कि अपनी होने वाली बहू की पेड से शादी करवाने और पत्थर की मूर्तियों पर करोडों का चढावा चढाने के बाद संभावित तकलीफों से छुटकारा पा लेगा और दुनियाभर की तमाम खुशियां इसकी झोली में समां जाएंगी।''
कहानीकार राजेंद्र यादव अमिताभ बच्चन के पिताश्री हरिवंशराय बच्चन की पीढी के सजग साहित्यकार रहे हैं। उन्होंने उन्हें करीब से देखा और समझा था। तभी तो वे यह बताने से भी नहीं चूके कि अमिताभ बच्चन तो अपने पिता को अपना आदर्श मानते हैं। ऐसे में वे कैसे भूल गये कि उनके पिता नास्तिक थे। अंधविश्वास से उनका कोई लेना-देना नहीं था। ऐसे कवि पुत्र का विभिन्न देवी-देवताओं से प्रमाणपत्र बटोरने फिरना यही दर्शाता है कि एक ढोंगी बेटा अपने पिता के जीवन मूल्यों का सरासर अपमान कर रहा है। देशभर के और भी कई विद्धानों ने भयग्रस्त नायक पर जमकर तीर चलाये। हर किसी ने यही कहा कि मंदिरों और मजारों को करोडों की दान-दक्षिणा देने वाला यह शख्स वास्तव में अगर सच्चा नायक होता तो इस धन को गरीबों, बदहालों के विकास और उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए अर्पित कर देता। पर्दे के नायक ने घोर आडंबरबाजी कर अपना असली चेहरा दिखा दिया है। बुद्धिजीवियों की आलोचनाओं की तीखी बौछारों ने अमिताभ को इस कदर आहत किया था कि आखिर उन्हें अपने पिता की लिखी कविता की इन पंक्तियों का सहारा लेना पडा था:
''छुपाना जानता तो, जग मुझे साधु समझता
शत्रु बन गया है, छल रहित व्यवहार मेरा''
अमिताभ ने उपरोक्त पंक्तियों के माध्यम से यह बताने की पुरजोर कोशिश की, कि, मुझे लुकाना और छुपाना नहीं आता। मैं ऐसा ही हूं। यह लोग ही हैं जो जब-तब उनकी तुलना उनके महान पिता हरिवंशराय बच्चन से करने लगते हैं। नायक ने इशारों ही इशारों में यह भी कहा कि जो छुपाते हैं लोग उन्हें सिर पर बिठाते हैं और साधु-संत का दर्जा देते नहीं थकते। कोई छल-कपट न करते हुए मैंने वही किया जो मैंने चाहा और मुझे अच्छा लगा। ऐसे में मैं बुरा हो गया...!
बहरहाल, अमिताभ बच्चन तो मंजे हुए अभिनेता हैं। कइयों के भगवान भी हैं जो उन्हें सतत पूजते हैं। भगवान कभी झूठ नहीं बोला करते। भगवान गलत भी नहीं हो सकते। देश के भूतपूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव भले ही राजनीति के जोकर हैं पर वे भी कभी-कभी सच बोल दिया करते हैं। उन्होंने रहस्योद्घाटन किया है कि जब वे देश के रेल मंत्री थे तब उन्होंने रेलभवन में विश्वकर्मा और कृष्ण भगवान की मूर्तियां स्थापित करवायी थीं। उन्होंने उनसे कह रखा था कि मेरी और रेल की देखभाल की जिम्मेदारी आप पर ही है...। विद्वान नेता लालूप्रसाद यादव यकीनन यह कहना चाहते हैं कि अगर पवन बंसल ने मुझे अपना गुरु माना होता और मेरे पदचिन्हों पर चलते तो उनकी सत्ता और इज्जत पर कभी कोई आंच नहीं आती।
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