Thursday, May 9, 2013

जनता किसके साथ है?

देश अब क्या करे? कितना रोये और कितनी बार अपना माथा पीटे! जिन लोगों के हाथों में सत्ता है उनमें से आधे से ज्यादा भ्रष्टाचार के दलदल में धंसे हैं। यह इतने जिद्दी और बेशर्म हैं कि इन्होंने कभी भी न सुधरने की कसम खायी हुई है। जिस देश का प्रधानमंत्री ही सवालों के घेरे में हो वहां के मंत्रियों और संत्रियों को भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का नंगा तांडव मचाने से कौन रोक सकता है? देश की वर्तमान केंद्र सरकार अपना एक पाप धोने की कोशिश करती है कि दूसरा सिर तानकर खडा हो जाता है। सरकार की असली मंशा तो यही दिखती है कि वह अपने इर्द-गिर्द के भ्रष्टाचारियों को बेनकाब होते देखना ही नहीं चाहती। पारदर्शिता से तो जैसे उसने अपना नाता ही तोड लिया है। सीबीआई को भी उसने अपनी कठपुतली बनाकर रख दिया है। ऐसे में मंत्री तो मंत्री उनके रिश्तेदार भी बहती गंगा में हाथ धोने का कोई मौका नहीं छोड रहे हैं।
कभी किसी का दामाद तो कभी किसी का भतीजा और बेटा अरबों-खरबों के घोटाले कर गुजरता है तो कभी खुद मंत्री महोदय ही अपने काले चेहरे के साथ मीडिया में सुर्खियां पाते हैं और फिर बडी निर्लज्जता के साथ बयानबाजियों पर उतर आते हैं। कुछ माननीय सांसद और राज्यसभा सदस्य खुद तो कोयले की खदाने हडपते ही हैं, अपने मित्रों को भी नामी-बेनामी कंपनियों का मालिक दिखाकर हजारों करोड की खदानों की सौगात दिलाने में कामयाब हो जाते हैं। ऐसे ही राष्ट्रीय संपदा के लुटेरों ने रेलवे को भी नहीं बख्शा। रेलमंत्री के भांजे के रिश्वतकांड के सामने आने के बाद कई सवालों के जवाब खुद-ब-खुद मिल गये हैं। रेलमंत्री की कुर्सी हथियाने के लिए राजनेता क्यों जमीन-आसमान एक कर देते हैं इसके पीछे छिपे असली मकसद का भी पर्दाफाश हो गया है। वैसे तो हर रेलयात्री जानता-समझता है कि रेलवे में जमकर भ्रष्टाचार होता है। टी.सी. की रिश्वतखोरी एकदम आम बात है। मंत्री-अधिकारी भी खूब मिल-बांटकर खाते हैं। पर रेलमंत्री पवन बंसल के भांजे ने तो उस रहस्य से भी पर्दा हटा दिया है जो अभी तक पूरी तरह से उजागर नही हुआ था। मात्र कयास लगाये जाते थे। रेलमंत्री के भांजे के रंगे हाथ दबोचे जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि रेलवे में वरिष्ठता और योग्यता कोई मायने नहीं रखती। चाटुकारिता और संबंध काम आते हैं। पदों की बोलियां लगती हैं जिनकी जेब में दम होता है वही बाजी मार ले जाते हैं। वैसे तो यह फार्मूला हर कमाऊ विभाग में अपनाया जाता है। पर रेलवे में रेलें धीमीं और थैलियां बडी तेजी से दौडती हैं जो बैठे-बिठाये थैलीशाहों को मनचाही मंजिल तक पहुंचा देती हैं।
रेलमंत्री के भांजे को रेलवे के एक अफसर से ९० लाख रुपये की घूस लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया गया पर मंत्री महोदय यह कहकर बचने की कोशिश में लग गये कि मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है। उनका बस चलता तो भांजे को पहचानने से ही इंकार कर देते। अपनी बहन को मुंह दिखाना था इसलिए संवेदनशील रिश्ते को नकार नहीं पाये। भांजे और मामा में जबर्दस्त तालमेल नजर आता है। तभी तो रिश्वत देने वाले अफसर को पदोन्नति का जो पत्र थमाया गया उस पर मंत्री जी के ही हस्ताक्षर हैं। यानी सबकुछ पहले से ही मिल-बैठकर तय कर लिया गया था। यह भी बताया जा रहा है कि भांजा और मामा बडे ही मंजे हुए खिलाडी हैं। मामा के इशारे पर नाचने वाला यह कमाऊ भांजा तरह-तरह के गुल खिलाता रहा है। शातिर भांजे के हाथ काफी लंबे हैं। वह रेलवे प्रशासन में काफी अंदर तक अपनी पहुंच रखता है। रेलवे में स्थानांतरण, नियुक्तियां और अन्य कार्य करवाना उसके बायें हाथ का खेल रहा है। भांजा ही मामा के सभी आडे-तिरछे लेन-देन का काम देखता था। यह कोई छोटी-मोटी रिश्वत का मामला नहीं था। दरअसल यह दस करोड की रिश्वत का खेल था जिसका पर्दाफाश हो गया और रेलमंत्री पवन बंसल का असली चेहरा सामने आ गया। जिस महेश कुमार नामक अधिकारी ने यह सौदेबाजी की और ९० लाख की किश्त देते वक्त धर लिया गया उसका इरादा भी ढेर सारा माल कमाने का था। रेलवे में अरबों-खरबों के विद्युत-सामानों की आपूर्ति के ठेके दिये जाते हैं। महेश कुमार रेलवे में मेंबर इलेक्ट्रिकल बनकर पचासों करोड कमाने के मंसूबे बना चुका था। कई सप्लायरों से उसने पहले से ही मामला तय कर लिया था। किसको कितना देना है और भारतीय रेलवे को कितना चूना लगाना है उसकी भी पूरी तैयारी कर ली गयी थी। रेलवे को मनचाहा चूना लगाने का यह खेल भी कोई नया नहीं है। जितने के विद्युत उपकरण सप्लाई किये जाते हैं उससे कई गुणा ज्यादा के बिल बनाये जाते हैं। इसलिए तो रेलवे वहीं का वहीं है और मंत्री-अधिकारी और कर्मचारियों के ठाठ देखते बनते हैं। रेलमंत्री पवन बंसल तो वैसे भी पुराने घुटे हुए खिलाडी हैं। सांसद और रेलमंत्री बनने के बाद उन्होंने बेहिसाब धन कमाया और सम्पतियां बनायीं। उनके तमाम रिश्तेदारों की संपत्ति में लगातार जो इजाफा हुआ वह भी कम चौंकाने वाला नहीं है। २००६ में बंसल के वित्त राज्यमंत्री बनते ही उनके करीबी रिश्तेदारों की तो जैसे लाटरी ही खुल गयी। सभी ने दोनों हाथों से दौलत बटोरी और आलीशान कोठियों और तमाम सुख-सुविधाओं का साम्राज्य खडा कर लोगों को हैरत में डाल दिया। बदकिस्मती से भांजा सीबीआई की चपेट में आ गया और मक्कार मामा की पोल खुल गयी। इतना सबकुछ होने के बाद भी मनमोहन सरकार भ्रष्ट रेलमंत्री के साथ खडी है! उन्हें पाक-साफ बताया जा रहा है। अपने भ्रष्ट मंत्रियों का साथ देना कांग्रेस के लिए कोई नयी बात नहीं है। कर्नाटक में मिली जीत ने उसके हौसले बढा दिये हैं। उसे लग रहा है कि देश की जनता उसके साथ है...।

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