जैसा भारतवर्ष में होता है वैसा शायद ही कहीं होता हो। यह ऐसा देश है जहां तो लोग भ्रष्टाचारियों के समर्थन में भी सडकों पर उतर आते हैं। अदालती फैसलों का अनादर किया जाता है। खलनायक को जबरन नायक बनाने की कुचेष्टाएं की जाती हैं। उनके प्रति अंधभक्ति और आस्था रखने वाले सभी हदें पार कर जाते हैं। तामिलनाडु की तथाकथित करिश्माई नेता जे. जयललिता के जीवन की किताब के कई पन्ने बडे हैरान करने वाले हैं। अभिनेत्री से मुख्यमंत्री बनने का सफरनामा भी कम रोचक नहीं है। अभिनेत्री ने राजनीति के क्षेत्र में पदार्पण करने के बाद भी अभिनेत्रियों वाले लटके-झटके और सभी शौक अपनाए रखे। दस हजार पांच सौ बेहतरीन साडियां, महंगी से महंगी पचासों घडियां, सात सौ पचास सेंडिल, अट्ठाइस किलो सोना, आठ सौ किलो चांदी और कई बंगले, फार्म हाऊस खुद-ब-खुद बयां कर देते हैं कि जयललिता सिर्फ और सिर्फ मुखौटे की राजनीति करती रही हैं। अपने महलनुमा बंगले में राजसी ठाठ-बाट और बाहर गरीबों की मसीहा का उन्होंने रोल बखूबी निभाया। दरअसल, जयललिता उर्फ अम्मा ने राजनीति में आने के बाद भी विलासितापूर्ण जीवन जीने का मोह नहीं छोडा।
गौरतलब है कि १४ जून १९९६ के तत्कालीन जनता पार्टी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अदालत में शिकायत दाखिल कर आरोप लगाया था कि जयललिता के पास उनके ज्ञात स्त्रोतों से काफी अधिक सम्पत्ति है। १९९१ में जब जयललिता तामिलनाडु की मुख्यमंत्री बनी तब उनके पास २.०१ करोड की सम्पत्ति थी। यह भी गौर करने लायक तथ्य है कि जयललिता ने उस समय बडे गर्व के साथ यह घोषणा की थी कि वह केवल एक रुपया वेतन ले रही हैं। यानी देशहित में बहुत बडा त्याग कर रही हैं। उन जैसे नेता शायद ही देश में मिलें। यानी यहां भी भरपूर अभिनय। ऐसे में ताली बजाने वालों की संख्या बढती चली गयी। नेताओं को यही तो चाहिए होता है। वे जहां जाएं भीड लग जाए। जनता उनकी राह में बिछ जाए। जयललिता ने अपने गुरु (एमजी रामचंद्रन) से राजनीति की दीक्षा ली ही कुछ इस तरह से थी कि राजनीति में नाटकीयता बरकरार रखो। चेहरे का नकाब उतरने मत दो। जनता को उल्लू बनाते रहो। पर यह कुदरत का नियम है कि सच ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रह सकता। वह तो सौ पर्दे फाडकर बाहर आ ही जाता है। मायावी नारी जयललिता ने जब पांच साल बाद सत्ता का भरपूर सुख भोगने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडी तो उनकी सम्पत्ति का आंकडा ६६ करोड को पार कर गया था। वाकई ऐसा जादू और चमत्कार सिर्फ और सिर्फ राजनीति में ही हो सकता है। जया जैसे मंजे हुए कलाकार ही इस फन में माहिर होते हैं। आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में मुख्यमंत्री जयललिता को चार साल की सजा के साथ सौ करोड का जुर्माना जहां ईमानदार नेताओं को प्रफुल्लित कर गया वहीं बेइमानों के चेहरों के तो रंग ही उड गये हैं। उन्हें अपना भविष्य खतरे में नजर आने लगा है। यह तो तय हो गया है कि इस देश में कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। देर-सबेर हर भ्रष्टाचारी का जेल जाना तय है। जया को उनके भ्रष्टाचारी दुष्कर्मों की सजा सुनाये जाने के बाद सवाल उठा कि तामिलनाडु का मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। इसमें भी गजब की नाटकीयता हुई। जया के गुलाम और भरोसेमंद प्यादे पन्नीसेलवम ने तामिलनाडु के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली। शपथ समारोह के दौरान वे ऐसे दहाड-दहाड कर रोये जैसे उनका कोई करीबी गुजर गया हो। उनके साथ शपथ लेने वाले तीस मंत्रियों का भी रो-रोकर बुरा हाल था। वे भी ऐसे मातम मना रहे थे जैसे उनका सबकुछ लुट गया हो। जहां मुख्यमंत्री और मंत्रियों के ऐसे हाल हों वहां अम्मा के प्रशंसकों का फांसी के फंदों पर झूल जाना, जहर खाकर मर जाना और रेल और बसों के सामने कूदकर जान दे देना आम बात मान लिया गया। इसी अम्मा के जेल जाने के सदमे में जो दस अंधभक्त दिल के दौरे के शिकार होकर इस दुनिया से कूच कर गए उनकी भावुकता और समर्पणशीलता भी हैरान करने वाली रही। जयललिता अब दस साल तक चुनाव नहीं लड सकेंगी। अच्छा हुआ कि देश को एक भ्रष्टाचारी से कुछ वर्षों के लिए मुक्ति तो मिली। देश की सवा सौ करोड जनता अब उन तमाम भ्रष्टाचारियों के जेल में सडाये जाने का इंतजार कर रही है, जिन्होंने राजनीति को बेईमानी का अखाडा बनाकर रख दिया है। यह भ्रष्ट नेता काली कमायी के बलबूते पर चुनाव जीतते हैं। मंत्री भी बन जाते हैं। कुछ भ्रष्टाचारी ही कानून के शिकंजे में आ पाते हैं। क्योंकि अधिकांश भ्रष्टों को सारे कानूनी दांव-पेंचों की भरपूर जानकारी होती है। भ्रष्टाचारी नेता कानून व्यवस्था की मशीनरी को भी भ्रष्टाचारी बनाने से नहीं चूकते। यानी रिश्वतखोर मानते हैं कि जिस तरह से वे रिश्वत के लालच में बिकते रहे हैं वैसे ही वे हर किसी को रिश्वत देकर अपनी हर बाधा पार कर सकते हैं। तामिलनाडु की भ्रष्टाचारी मुख्यमंत्री को बेनकाब कर जेल पहुंचाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी वर्षों से ऐसे तमाम भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जंग लडते चले आ रहे हैं।
हिन्दुस्तान के वे इकलौते नेता हैं जो आखिरी दम तक बडे से बडे भ्रष्टाचारी के खिलाफ डटे रहते हैं। अगर इन्होंने साहस नहीं दिखाया होता तो घपलेबाज महारानी की लूट का सिलसिला चलता ही रहता। जयललिता के प्रशंसकों की गुंडागर्दी तो देखिए... जैसे ही उनकी नेता दोषी ठहरायी गयीं तो उन्होंने सुब्रमण्यम स्वामी की तस्वीरें जलानी शुरु कर दीं। चप्पलें बरसाकर भी अपना नपुंसक रोष जताया। जिन लोगों के 'आदर्श' ही भ्रष्ट हों उनके लिए ऐसी हरकतें मर्दानगी की निशानी होती हैं। स्वामी तो आदर के हकदार हैं। उनका तो देश के कोने-कोने में सत्कार होना चाहिए। चंद चापलूसों के शर्मनाक कारनामे, उनकी तथा उन जैसे तमाम नेताओं की लडाकू छवि का बाल भी बांका नहीं कर सकते। यह देश न तो भ्रष्टाचार को बर्दाश्त कर सकता है और न ही भ्रष्टाचारियों को। भ्रष्टाचारियों के पाले-पोसे चेले-चपाटे और अंधभक्त तो ईमानदार योद्धाओं के पुतले जलाते ही रहेंगे। उनका बस चले तो वे उन्हें जिन्दा ही जला दें।
गौरतलब है कि १४ जून १९९६ के तत्कालीन जनता पार्टी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अदालत में शिकायत दाखिल कर आरोप लगाया था कि जयललिता के पास उनके ज्ञात स्त्रोतों से काफी अधिक सम्पत्ति है। १९९१ में जब जयललिता तामिलनाडु की मुख्यमंत्री बनी तब उनके पास २.०१ करोड की सम्पत्ति थी। यह भी गौर करने लायक तथ्य है कि जयललिता ने उस समय बडे गर्व के साथ यह घोषणा की थी कि वह केवल एक रुपया वेतन ले रही हैं। यानी देशहित में बहुत बडा त्याग कर रही हैं। उन जैसे नेता शायद ही देश में मिलें। यानी यहां भी भरपूर अभिनय। ऐसे में ताली बजाने वालों की संख्या बढती चली गयी। नेताओं को यही तो चाहिए होता है। वे जहां जाएं भीड लग जाए। जनता उनकी राह में बिछ जाए। जयललिता ने अपने गुरु (एमजी रामचंद्रन) से राजनीति की दीक्षा ली ही कुछ इस तरह से थी कि राजनीति में नाटकीयता बरकरार रखो। चेहरे का नकाब उतरने मत दो। जनता को उल्लू बनाते रहो। पर यह कुदरत का नियम है कि सच ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रह सकता। वह तो सौ पर्दे फाडकर बाहर आ ही जाता है। मायावी नारी जयललिता ने जब पांच साल बाद सत्ता का भरपूर सुख भोगने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडी तो उनकी सम्पत्ति का आंकडा ६६ करोड को पार कर गया था। वाकई ऐसा जादू और चमत्कार सिर्फ और सिर्फ राजनीति में ही हो सकता है। जया जैसे मंजे हुए कलाकार ही इस फन में माहिर होते हैं। आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में मुख्यमंत्री जयललिता को चार साल की सजा के साथ सौ करोड का जुर्माना जहां ईमानदार नेताओं को प्रफुल्लित कर गया वहीं बेइमानों के चेहरों के तो रंग ही उड गये हैं। उन्हें अपना भविष्य खतरे में नजर आने लगा है। यह तो तय हो गया है कि इस देश में कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। देर-सबेर हर भ्रष्टाचारी का जेल जाना तय है। जया को उनके भ्रष्टाचारी दुष्कर्मों की सजा सुनाये जाने के बाद सवाल उठा कि तामिलनाडु का मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। इसमें भी गजब की नाटकीयता हुई। जया के गुलाम और भरोसेमंद प्यादे पन्नीसेलवम ने तामिलनाडु के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली। शपथ समारोह के दौरान वे ऐसे दहाड-दहाड कर रोये जैसे उनका कोई करीबी गुजर गया हो। उनके साथ शपथ लेने वाले तीस मंत्रियों का भी रो-रोकर बुरा हाल था। वे भी ऐसे मातम मना रहे थे जैसे उनका सबकुछ लुट गया हो। जहां मुख्यमंत्री और मंत्रियों के ऐसे हाल हों वहां अम्मा के प्रशंसकों का फांसी के फंदों पर झूल जाना, जहर खाकर मर जाना और रेल और बसों के सामने कूदकर जान दे देना आम बात मान लिया गया। इसी अम्मा के जेल जाने के सदमे में जो दस अंधभक्त दिल के दौरे के शिकार होकर इस दुनिया से कूच कर गए उनकी भावुकता और समर्पणशीलता भी हैरान करने वाली रही। जयललिता अब दस साल तक चुनाव नहीं लड सकेंगी। अच्छा हुआ कि देश को एक भ्रष्टाचारी से कुछ वर्षों के लिए मुक्ति तो मिली। देश की सवा सौ करोड जनता अब उन तमाम भ्रष्टाचारियों के जेल में सडाये जाने का इंतजार कर रही है, जिन्होंने राजनीति को बेईमानी का अखाडा बनाकर रख दिया है। यह भ्रष्ट नेता काली कमायी के बलबूते पर चुनाव जीतते हैं। मंत्री भी बन जाते हैं। कुछ भ्रष्टाचारी ही कानून के शिकंजे में आ पाते हैं। क्योंकि अधिकांश भ्रष्टों को सारे कानूनी दांव-पेंचों की भरपूर जानकारी होती है। भ्रष्टाचारी नेता कानून व्यवस्था की मशीनरी को भी भ्रष्टाचारी बनाने से नहीं चूकते। यानी रिश्वतखोर मानते हैं कि जिस तरह से वे रिश्वत के लालच में बिकते रहे हैं वैसे ही वे हर किसी को रिश्वत देकर अपनी हर बाधा पार कर सकते हैं। तामिलनाडु की भ्रष्टाचारी मुख्यमंत्री को बेनकाब कर जेल पहुंचाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी वर्षों से ऐसे तमाम भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जंग लडते चले आ रहे हैं।
हिन्दुस्तान के वे इकलौते नेता हैं जो आखिरी दम तक बडे से बडे भ्रष्टाचारी के खिलाफ डटे रहते हैं। अगर इन्होंने साहस नहीं दिखाया होता तो घपलेबाज महारानी की लूट का सिलसिला चलता ही रहता। जयललिता के प्रशंसकों की गुंडागर्दी तो देखिए... जैसे ही उनकी नेता दोषी ठहरायी गयीं तो उन्होंने सुब्रमण्यम स्वामी की तस्वीरें जलानी शुरु कर दीं। चप्पलें बरसाकर भी अपना नपुंसक रोष जताया। जिन लोगों के 'आदर्श' ही भ्रष्ट हों उनके लिए ऐसी हरकतें मर्दानगी की निशानी होती हैं। स्वामी तो आदर के हकदार हैं। उनका तो देश के कोने-कोने में सत्कार होना चाहिए। चंद चापलूसों के शर्मनाक कारनामे, उनकी तथा उन जैसे तमाम नेताओं की लडाकू छवि का बाल भी बांका नहीं कर सकते। यह देश न तो भ्रष्टाचार को बर्दाश्त कर सकता है और न ही भ्रष्टाचारियों को। भ्रष्टाचारियों के पाले-पोसे चेले-चपाटे और अंधभक्त तो ईमानदार योद्धाओं के पुतले जलाते ही रहेंगे। उनका बस चले तो वे उन्हें जिन्दा ही जला दें।
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