Thursday, January 29, 2015

मरना और जीना

बिहार ने एक से बढकर एक शख्सियतें दी हैं। शिक्षाविद्, साधु-महात्मा, लेखक, पत्रकार, सम्पादक, उद्योगपति, अभिनेता और धुरंधर राजनेता। अधिकांश की गाथाओं से लोग वाकिफ हैं। उन पर बहुत कुछ लिखा और सुना-सुनाया जा चुका है। बिहार की राजधानी पटना की भी अपनी एक खास पहचान है। देश की नामी-गिरामी शहरों की तरह उसका भी अपना रूतबा है। जब रूतबे की बात आती है तो एक ताकतवर तस्वीर उभरती है। जुनूनी और मेहनती लोगों की बदौलत ही कोई शहर बुलंदियों को छूने में सफल होता है। कमजोर और मुफ्तखोर शहर की शान में बट्टा लगाते हैं। निकम्मे और भ्रष्ट नेता यह काम बखूब करते आये हैं। उन्हें अपना आदर्श मानने वाले भी कम नहीं। पटना की यात्रा के दौरान एक युवक को जाना और समझा। यूं तो हर यात्रा में कई किस्म के लोगों से वास्ता पडता है। कुछ याद रहते हैं। अधिकांश आये-गए हो जाते हैं। इस युवक को भूला पाना आसान नहीं। दरअसल, यह मात्र कोई युवक नहीं, एक चुभने वाला सवाल है जिससे न मैं बच पाया और न ही आप बच पाएंगे। पहेली बुझाने और भूमिका बांधने का मेरा कोई इरादा नहीं। जो सच है उसी से आपको रूबरू करवा रहा हूं। जब कभी आप रेल से पटना जाएं तो पटना जंक्शन पर वह आपको सहज ही भीख मांगता दिख जाएगा। आप कहेंगे यह तो आम बात है। इस देश में जब भिखारियों और लुटेरों की भरमार है तो उसके भीख मांगने पर अचंभा कैसा?
बत्तीस साल का भिखारी पप्पु कुमार शहर के भीखमंगों का आदर्श है। उसने अपने इसी करतब से दो एकड जमीन, आलीशान घर, और लाखों की नगदी जुटा ली है। पप्पू ऐसा करोडपति है जिसने दस लाख रुपये से ज्यादा की रकम ब्याज पर चढायी हुई है और अच्छा-खासा मुनाफा पाता है। उसके चार बैकों में खाते हैं। जिनकी रकम का आंकडा कभी भी ढलान पर नहीं जाता। उसके हाथ मुडे-तुडे हैं। इसी खासियत की बदौलत वह अपनी दीनता दर्शाता है और सतत मोटी भीख पाता है। उसके करोडपति होने का खुलासा तब हुआ जब उसे रेलवे स्टेशन से 'भिखारी भगाओ' अभियान के तहत हिरासत में लिया गया। उसकी रईसी ने आरपीएफ के अधिकारियों को भी हैरत में डाल दिया। इतनी दौलत तो उनकी किस्मत में भी नहीं आयी जितनी पप्पू भिखारी ने हाथ फैलाकर कमायी। उसे कई बार भगाया गया, लेकिन वह अडियल टट्टू की तरह पटना जंकशन के फुट ओवर ब्रिज पर आकर जम जाता है। इस जगह को वह अपने लिए बेहद लक्की मानता है। आने-जाने वाले हजारों लोग उसकी हालत पर तरस खाकर उसकी मुराद पूरी कर देते हैं। इस धनवान भिखारी को कई लोगों ने अपना इलाज करवाने की सलाह दी। डॉक्टर भी कहते हैं कि समुचित इलाज होने पर वह पूरी तरह से सही-सलामत हो सकता है। उसके हाथ-पैर आम लोगों की तरह दिखने और काम करने लग सकते हैं। लेकिन वह साफतौर पर मना कर देता है। कहता है कि यदि उसने अपने हाथ पैरों को दुरुस्त करवा लिया तो फिर उसे भीख कौन देगा? उसका तो धंधा ही चौपट हो जाएगा। यही अपंगता ही उसकी पूंजी है जिस पर तरस खाकर लोग अपनी अंटी ढीली करते हैं। इसलिए वह अपनी अपंगता को खोना नहीं चाहता। मुफ्तखोर पप्पू को अपना आदर्श मानने वालों की तादाद बढती चली जा रही है। कुछ ने तो अपने हाथ-पैर तुडवा कर पप्पू की तरह भीख के धंधे में उतरने की ठान ली है। अपने नाम का डंका बजने से पप्पू गदगद है। उसने एक स्कूल खोलने की भी सोची है जिसमें बेरोजगारों को भीख मांगने की कला से परिचित कराया जाएगा। वैसे भी पप्पू एक चलती-फिरती अनोखी पाठशाला है। इस पाठशाला के विद्यार्थी दूसरों की जेबों पर नजर रखते हैं। यह लोग मेहनतकशों और ईमानदारों को बेवकूफ समझते हैं।
अगर नीयत में खोट न हो और अपने बलबूते पर कुछ कर गुजरने की जिद्दी तमन्ना हो तो हर तकलीफ और मुश्किल को चुटकियां बजाते हुए मात दी जा सकती है। भोपाल की सांत्वना आरस ने हाथ-पैर से लाचार होते हुए भी वो कर दिखाया है जिससे सार्थक प्रेरणा लेकर हालात के घने से घने अंधेरे को उजाले में बदला जा सकता है। सांत्वना बचपन से ही एक ऐसी बीमारी से पीडित हैं जिसने उसे लाचार बनाकर रख दिया। लेकिन वह टूटी और हारी नहीं। वह अपने दम पर खडी हो पाने में अक्षम हैं। किसी सहारे के बिना हाथ ऊपर नहीं उठ पाता। शारीरिक निर्बलता के चलते वह टेबल पर हाथ रखने में असमर्थ हैं। इसके लिए दूसरे का सहारा लेना पडता है। तब कहीं जाकर लिख और पढ पाती हैं। माता-पिता ने उसके इलाज के लिए ढेरों कोशिशें कीं। बडे से बडे काबिल डाक्टरों ने आखिरकार असमर्थता जता दी। सांत्वना ने बचपन में ही चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने का सपना देखा था। अपने सपने को साकार करने के लिए सांत्वना ने मजबूत इरादों का हाथ थामा और आखिरकार चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने में सफल हो गयीं। जो लडकी खडी भी नहीं हो पाती उसका सीए बनने का सफर वाकई काफी चौंकाने वाला है। सांत्वना अपनी मनपसंद कोचिंग में पढायी करने से भी वंचित रहीं। भोपाल में सीए की ज्यादातर कोचिंग दूसरे या तीसरे माले पर हैं और उस पर लिफ्ट का भी अभाव। जिसके लिए अपने पैरों पर खडे होना नामुमकिन है, वह कष्टदायक सीढियां कैसे चढ पाती। बार-बार तबीयत बिगडने के कारण सांत्वना के समक्ष कई अडचने आयीं। पर उन्होंने अपनी जिद नहीं छोडी, अपने सपने को पूरा कर ही दम लिया।
पप्पू कुमार कितनी भी माया जुटा ले, लेकिन अंतत: उसे ऐसी मौत मरना है जहां कोई दो आंसू भी नहीं बहाने आता। कर्मठ और जुनूनी सांत्वना आरस की दास्तान हमेशा लोगों को प्रेरणा देती और उन्हें जगाती रहेगी।

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