Thursday, December 30, 2021

काले कुबेरों के कवच

     मैं आज दावे के साथ लिख रहा हूं कि अपने देश हिंदुस्तान में भ्रष्टाचार का कभी भी पूरी तरह से खात्मा नहीं हो सकता। मेरी इस धारणा के विरोध में जिन्हें जो कुछ भी कहना और सोचना है, उन्हें मुझे कुछ भी नहीं कहना। यहां भ्रष्टाचार, वहां भ्रष्टाचार, कहां नहीं है भ्रष्टाचार। इसने तो देश के रहनुमाओं को भी असहाय बना दिया है। कुछ विद्वानों का तो यहां तक कहना है कि रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को एक कारोबार के रूप में अब वैध कर दिया जाए। इसका विरोध वही लोग करते हैं, जिन्हें लूटने-खसूटने का मौका नहीं मिलता। मोटा माल कमाने के अवसर की तलाश तो उन्हें भी रहती है, जो ईमानदारी और सदाचार के गीत गाते हैं। पांच-सात प्रतिशत भारतीय ही ऐसे बचे हैं, जिन्हें हराम की कमायी से परहेज है, बाकी तो ऊपर से भ्रष्टाचारी नेताओं, अफसरों, उद्योगपतियों को गरियाते भी हैं और अंदर ही अंदर उनसे निकटता बनाये रखने की कोशिशों में भी लगे रहते हैं। कुछ दिन पहले देशभर के अखबारों में यह खबर छपी थी कि एक भ्रष्ट इंजीनियर ने रेलवे का स्टीम इंजन कबाड़ियों को बेचकर दिखा दिया है कि भारत देश का कोई मां-बाप नहीं है। यह तो लावारिस है। जहां... मौका मिले लूट लो इसे। इसकी नस-नस के खून को राक्षस की तरह चूस लो। यहां की व्यवस्था पूरी तरह से अपाहिज हो चुकी है। सभी चोर-चोर मौसेरे भाई हैं यहां। किसी का भी बाल बांका नहीं होने वाला। बस ‘मैनेज’ करने का तरीका आना चाहिए। चालाक वकीलों की फौज है तो कानून गया तेल लेने।
    उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक इत्र कारोबारी के हाल ही में छापे में लगभग 290 करोड़ से अधिक की नगद रकम बरामद हुई। सोने-चांदी का अपार भंडार मिला। दीवारों में नोट, जमीन के अंदर नोट और तिजोरियों में नोटों का जखीरा देखकर आयकर अधिकारी माथा पकड़ कर बैठ गये। कई अफसरों ने इतनी असीम काली माया पहली बार ही देखी। नोटों को गिनने के लिए मशीनें मंगवानी पड़ीं। इत्र के व्यापारी पीयूष जैन का खुशबू का धंधा पूरे देश में फैला है। विदेशों में भी उसकी महक का डंका बजता है। अंधाधुंध कमाते तो हैं, लेकिन टैक्स भरने का मन नहीं होता। इसी खिलाड़ी ने कुछ दिन पहले ‘समाजवादी इत्र’ बाजार में पेश की थी। इस काले कुबेर की समाजवादी पार्टी के दिग्गजों से गहरी छनती रही है।
    अधिकांश भ्रष्ट राजनेता और अफसर अपने काले धन को ऐसे ही टैक्स चोरों के यहां रखवाते हैं। जब उनकी तूती बोलती है, तो इन्हें अवैध धंधे करने की खुली छूट होती है। प्रदेश और देश को दोनों हाथों से लूटने की इन्हें पूरी-पूरी आजादी मिल जाती है। राजनीतिक दबंगों और सत्ता के चित्तेरों के ऐसे कई ठिकाने हैं, जहां उनका काला धन जमा रहता है। चुनाव आने पर इसी काली माया को बाहर निकलवाकर विभिन्न तरीकों से वोटों को खरीदते हैं। लोकतंत्र के साथ धोखाधड़ी करते हैं। यह गुनाह भारत देश का लगभग हर नेता और राजनीतिक दल करता चला आ रहा है। उद्योगपतियों और व्यापारियों में इतना दम नहीं कि वे सत्ताओं, नेताओं और भ्रष्ट अफसरों के वरदहस्त के बगैर अपने काले धंधों को चमकाते रहें और देखने वालों की आंखों को चुंधियाते रहें। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की फोटो के साथ समाजवादी इत्र लांच करने वाले काले कुबेर जैन को अब पहचानने से ही इंकार किया जा रहा है। कहा जा रहा है हमारा तो उनसे कोई लेना-देना ही नहीं है। तो यह है हमारे यहां के नेताओं का असली भ्रष्ट चरित्र। यहां एक से एक झूठे और मक्कार भरे पड़े हैं। एक पुरानी कहावत है, ‘जैसा राजा वैसी प्रजा।’ इस कहावत के एकाएक याद हो आने की असली वजह है, यह खबर,
    ‘‘छत्तीसगढ़ में स्थित गांव बंसुला में 54 मकान चोरी हो गये और कोई शोर-शराबा नहीं हुआ। अटल आवास योजना के तहत बने इन आधे-अधूरे मकानों की ईंटें, छड़ें और यहां तक मलबा भी चोरों ने गायब कर दिया, लेकिन हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी, कर्मचारी नकली निद्रा में लीन रहे। जब उन तक इस हैरतअंगेज डकैती की खबर पहुंचायी गई तब उन्होंने हड़बड़ाने का वैसा ही नाटक किया जैसा हमेशा बेइमान, नौकरशाह, नेता, राजनेता और सत्ताधीश करते आये हैं। अपने खून-पसीने की कमायी लुटी होती तो उन्हें कोई दर्द होता और चिंता-फिक्र भी करते। उनके पास तो इन 54 मकानों का कोई रिकॉर्ड ही नहीं था, जबकि नियम कहता है कि इन सभी मकानों की तस्वीरें फाइलों में होनी ही चाहिए थीं। अफसरों की खामोशी और टालमटोल चीख-चीख कर कह रही है कि यह तो ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ वाली नंगी कारस्तानी है। रेल यानी देश की संपत्ति रेलवे स्टीम इंजन को जिस इंजीनियर ने कबाड़ियों को बेचा उसका दमखम पुरस्कार के काबिल है। आदर सत्कार के हकदार तो रेलवे के अन्य अधिकारी और वो पुलिस दरोगा और उसके चेले-चपाटे भी हैं, जिन्होंने साथी बनकर सरकारी संपत्ति को बेचने का अदम्य साहस दिखाया। यह तो इन डकैतों और लुटेरों की बदकिस्मती है कि उनके अखंड भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हो गया, लेकिन फिर भी उन्हें पता है कि उनका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। सफेदपोश डकैत देश की व्यवस्था के रेशे-रेशे से वाकिफ हैं। वे यह भी जानते हैं कि मामले को उसी कोर्ट में ही तो चलना है, जहां महंगे और ऊंचे वकीलों की फौज अपनी ‘कलाकारी’ दिखाती है और अक्सर मनचाहे फैसले का ‘उपहार’ दिलाती है। यदि अपने पक्ष में फैसला नहीं भी आता तो पेशी पर पेशी का चक्कर चलवाकर वर्षों मामले को लटकाये रखने का मायावी खेल होता रहता है। उनके मान-सम्मान और प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं आती। काले धंधे भी सतत चलते रहते हैं। नोटों की बरसात में मौज-मज़े करते हुए कानून के बौने और खुद के ताकतवर होने का डंका पीटते रहते हैं। धीरे-धीरे वो समय भी आ जाता है, जब ऊपरवाले का बुलावा आ जाता है और सारा खेला खत्म हो जाता है...।

No comments:

Post a Comment